विश्व आदिवासी दिवस की शुभकामनायें
सभी साथियों को विश्व आदिवासी दिवस 2020 पर विस्थापन और वनाधिकार कानूनों को लागू किये जाने के मुद्दों पर व्यापक जनचेतना फैलाने और वैश्विक कारपोरेट घरानों के प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जे की होड़ के युग में आदिवासी ओर मजदूर किसान समाज के एकजुटता का आह्वान करते हुए शुभकामनायें
सभ्यता के इस कालखंड में मानव समाज के सामने अपनी सामूहिकता और लोभ रहित, प्रकृति रक्षक जीवन शैली के कारण आदिवासी समाज तथाकथित विकसित सभ्य समाज के समक्ष आज सीख प्रस्तुत कर रहा है प्रकृति से तादात्म्य का। जंगलों में आदिम शैली के जीवन से ले कर महानगरों में अत्याधुनिक जीवन के साथ ही प्रशासनिक , राजनैतिक उच्च पदों पर सफलतापूर्वक कार्यरत आदिवासी समाज आज भी अपने सामूहिकता की वजह से अलग पहचान रखता है और एक बड़ा हिस्सा विकास की मूलभूत जरूरतों से वंचित है, संघर्षरत समूहों में भी बड़ा हिस्सा शामिल है।
प्रसिद्ध कवि भवानी प्रसाद मिश्र की कविता प्रस्तुत है
मैं असभ्य हूँ क्योंकि खुले नंगे पाँवों चलता हूँ !!
मैं असभ्य हूँ क्योंकि धूल की गोदी में पलता हूँ !!
मैं असभ्य हूँ क्योंकि चीरकर धरती धान उगाता हूँ !!
मैं असभ्य हूँ क्योंकि ढोल पर बहुत ज़ोर से गाता हूँ !!
आप सभ्य हैं क्योंकि हवा में उड़ जाते हैं ऊपर !!
आप सभ्य हैं क्योंकि आग बरसा देते हैं भू पर !!
आप सभ्य हैं क्योंकि धान से भरी आपकी कोठी !!
आप सभ्य हैं क्योंकि ज़ोर से पढ़ पाते हैं पोथी !!
आप बड़े चिंतित हैं मेरे पिछड़ेपन के मारे !!
आप सोचते हैं कि सीखता यह भी ढँग हमारे !!
मैं उतारना नहीं चाहता जाहिल अपने बाने !!
धोती-कुरता बहुत ज़ोर से लिपटाए हूँ याने !!
भवानी प्रसाद मिश्र