नई दिल्ली। देश की शीर्ष अदालत ने बच्चे की कस्टडी को लेकर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि एक बच्चे के लिए उसके नाना-नानी के साथ रहने से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है, उसका माता-पिता के साथ रहना। माता-पिता के साथ से बच्चा बहुत कुछ सीखता है। यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने सात साल के बच्चे की कस्टडी के मामले में सुनवाई करते हुए की।
उन्होंने बच्चे को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में बुलाकर उससे बातचीत भी की। बच्चे की कस्टडी को लेकर अलग रह रहे पति-पत्नी के बीच अदालत में मुकदमा चल रहा है। इस समय बच्चा मां और नाना-नानी के साथ रह रहा है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने मामले की सुनवाई शुरू होते ही कहा कि उन्हें यह कतई पसंद नहीं कि बच्चे को एक तरह से नान-नानी पर थोप दिया जाए। नान-नानी को बच्चे के साथ तब होना चाहिए जब वे बच्चे के साथ खुद रहना चाहते हैं। उन्हें इसलिए बच्चे के साथ नहीं रहना चाहिए कि उन्हें बच्चे की देखभाल करने की जरूरत है। बच्चे का माता-पिता के साथ रहना ज्यादा आवश्यक होता है, न कि नान-नानी के साथ रहना। बच्चे के पिता ने दलील दी कि वह हमेशा से चाहते हैं कि पत्नी को वापस अपने साथ अपने घर ले जाए, जिससे कि बच्चे को उसके माता-पिता दोनों का प्यार एक साथ मिल सके। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि इसके लिए यह भी जरूरी होना चाहिए कि आपकी पत्नी भी आपके साथ जाने को राजी हो।
अविवाहित बेटी नहीं कर सकती दावा: सुप्रीम कोर्ट
वहीं एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि अविवाहित बेटी अपने पिता से रखरखाव का दावा करने की हकदार नहीं है, अगर वह मानसिक या शारीरिक असामान्यता नहीं झेल रही है। जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और एमआर शाह की पीठ ने कहा कि हिंदू कानून ने हमेशा अविवाहित बेटी के पालन के प्रति पिता के दायित्व को मान्यता दी है। मुस्लिम कानून भी पिता की बाध्यता को मान्यता देता है कि वे अपनी बेटियों की शादी होने तक देख रेख करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here