महिला की अवैध नियुक्ति पर मौन आयोग पत्रकार को ‘पत्रकारिता’ और पुलिस को ‘कानून’ की शिक्षा  दे रहा
रायपुर ( इंडिया न्यूज रूम)बस्तर के कांकेर से 25 वर्षों से प्रकाशित बस्तर बंधु साप्ताहिक अखबार के संपादक सुशील शर्मा का कहना है – पत्रकारिता पर भ्रष्टाचार उजागर करने के खतरे  बढ़ गए हैं , इसमें सभी सत्ता रूढ दल कमोबेश एक से हैं , शंकर गुहा  नियोगी , रतनेश्वर नाथ के साथ जनसंघर्षों मे काम कर चुके 60 बरस के पत्रकार, संपादक सुशील शर्मा  के इन शब्दों में  उनकी पीड़ा भी है और आक्रोश भी, उनको सच के प्रकाशन पर जो झेलना पड़ रहा है उसमें प्रकाशन उद्योग पर लागू कानून की बजाय सत्ता के निर्देशों से , दबावों से किए जाने वाले तानाशाही की  कार्रवाही की तकलीफ़ अधिक है   :-

छत्तीसगढ़ की छवि अब पत्रकार प्रताड़ना प्रदेश के रूप में सारे भारत में स्थापित हो चुकी है। बस्तर से लेकर सरगुजा तक अनेक पत्रकार इस राज्य सरकार के अत्याचार के शिकार बनकर तड़प रहे हैं, हैरान, परेशान हो रहे हैं और सोच रहे हैं कि क्या पत्रकारिता करनी बंद कर दी जाए , साथी पत्रकारों से सबसे  अधिक परेशान जिसे किया जा रहा है, वह हम ही हैं अर्थात बस्तर बन्धु जिसके लिए सारी राज्य सरकार और उसकी पुलिस हाथ धोकर पीछे पड़ी हुई है। ये कहना है बस्तर बंधु साप्ताहिक अखबार के संपादक सुशील शर्मा का जिनका मानना है कि नियुक्ति की खुलेआम धोखाधड़ी को नजरअंदाज करते हुए उसके बचाव के लिए अब नया पैंतरा खेला गया है, राज्य महिला आयोग को एक हथियार की तरह इस्तेमाल करते हुए सत्य तथ्यों पर आधारित खबर को छिपाने, बस्तर बन्धु का दमन करने की कोशिश की जा रही है। वे कहते हैं  जिस शिकायत पर खम्हारडीह पुलिस थाने में  भा. द. विधान की धारा 509 व 504 के तहत मामला दर्ज कर हमारी गिरफ्तारी, जमानत की कार्रवाई तक की जा चुकी है, 06 माह बाद उस शिकायत की धूल झाड़ कर  दिनांक 11/05/2020 को हमारे विरुद्ध महिला आयोग में की गयी, नोटिस जारी कर दी गई है, राज्य सरकार यदि हमें परेशान करके ही खुश है तो यही सही,हमने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सभी सरकारों की जेल, कचहरी देखी है और भविष्य में भी देखनी पड़ी तो देखेंगे।

यदि कोई मतिमंद यह सोचे कि हम इन बातों से डर जाएंगे और पत्रकारिता छोड़ देंगे तो वह बहुत धोखे में है। महिला आयोग को पत्रकार के खिलाफ हथियार बनाना कहां तक उचित और कारगर होगा ? यह आपको समय ही बता देगा। पत्रकार प्रताड़ना में राष्ट्रीय स्तर पर कुख्यात भूपेश बघेल  सरकार की कैबिनेट की कृपा पात्रा  ने हमें सच लिखने की सजा देने अब एक नया हथियार  राज्य महिला आयोग को बनाया है।
भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे अफसरों को बचाने का काम भ्रष्ट अफसरों की जाति व लिंग आधारित आयोग करेगा, यह नया पैतरा आजमा रही हैैं छत्तीसगढ़  सरकार के कैबिनेट की कृपापात्र पर्यटन मंडल की बर्खास्त शुदा पर्यटन अधिकारी व मौजूदा जनसंपर्क अधिकारी । हमारे जैसे गरीब सिद्धांतवादी पत्रकार को तो इन बातों से  बिल्कुल भी नहीं घबराते ।

कांग्रेस पार्टी के पक्ष में वातावरण निर्माण करने का ईनाम हमें कांग्रेस की सरकार से ये मिल रहा है, एक भ्रष्ट अफसर को बचाने में पूरी सरकार को उसी प्रकार दांव पर लगा दिया गया है जैसे कांकेर में पत्रकारों की पिटाई के मामले में  एक गुंडे कांग्रेसी को बचाने मे सरकार की बदनामी करा ली गयी ।

एक गैर छत्तीसगढ़िया पत्रकार की पत्नी, जिन्होंने चार सौ बीसी से अनुसूचित जनजाति वर्ग का हक मारकर अपने पति के प्रभाव  के दम पर पर्यटन मंडल में पर्यटन अधिकारी के पद पर निजी स्कूल की नृत्य शिक्षिका से प्रतिनियुक्ति पर नियुक्ति करा संविलयन भी करा, नौकरी प्राप्ति के शार्ट कट रास्ते के मामले में इतिहास रच लिया  और 2012 में पोल खुलने पर जब  पर्यटन मंडल से बर्खास्त कर दी गयीं, उन्हें  सरकार ने आंखें मूंद कर तमाम अयोग्यताओं के बावजूद जनसंपर्क अधिकारी का निहायत गैरजरूरी नया पद सृजित कर उसी पर्यटन मंडल में बना दिया और राम वन गमन परिपथ परियोजना का नोडल अधिकारी का प्रभार भी जाने किस विशेष योग्यता के चलते बोनस में दे दिया है।

हमारे द्वारा उठाये गये प्रखर  मुद्दों पर कोई जाँच या कोई कार्यवाही सरकार की ओर से हो ही नहीं रही है। बल्कि हमें ज्ञान दिया जा रहा है कि क्या लिखें क्या नहीं ।


हमने  महिला आयोग के अधिकार व कर्तव्य को नेट में खंगाल डाला, पत्रकारिता कैसे करें, कैसा लिखें, कैसा ना लिखें ? यह सिखाना तो कम से कम महिला आयोग के अधिकार क्षेत्र में नहीं दिया गया है।

क्या हम पत्रकारों द्वारा अब यह मान लिया जाए कि सरकार ने जिन-जिन वर्गों हेतु आयोग बना रखे हैं, उस वर्ग के लोगों का भ्रष्टाचार इस सरकार में हम पत्रकार अब उजागर नहीं कर सकते? अनुसूचित जनजाति वर्ग का अधिकारी/कर्मचारी, अनुसूचित जाति वर्ग का, अल्पसंख्यक वर्ग का अथवा पिछड़ा वर्ग से आने वाले किसी भी अधिकारी/कर्मचारी के खिलाफ हम पत्रकारिता नहीं कर सकते ? किये तो इन आयोगों का चाबुक ऐसे ही चलेगा जैसा पूरा कानून जानने वाली किरणमयी नायक (अधिवक्ता) की अध्यक्षता वाली महिला आयोग का हम पर चल रहा हैं। नायक मैडम जैसी वरिष्ठ अधिवक्ता से तो हम जैसों की स्वाभाविक अपेक्षा यही थी कि आपराधिक रिकॉर्ड वाली आवेदिका को यदि उसका अपराध प्रथम दृष्टि में ही साफ साफ दिखाई दे रहा है तो ऐसे फरियादी की शिकायत दी जानी चाहिए क्या ?
माना कि आप महिला आयोग की अध्यक्ष हैं, आपकी जिम्मेदारी महिलाओं के संरक्षण की है, पर बेगुनाह पुरूषों को प्रताड़ित करना तो आयोग के उद्देश्य में नहीं ही होगा।

आवेदिका  का हम पर आरोप है उनकी स्त्री लज्जा भंग का, जबकि यह सवाल ही कहां उठता है, जब हम आज तक उनके रूबरू ही नहीं हुए हैं? हमने उन के दर्शन ही नहीं किए हैं। बिना दर्शन किए स्त्री लज्जा भंग किस तरह से संभव है ? यह वे  हमें  समझाएंगी ?

हम पर दूसरा आरोप जो आदिवासियों को भड़काने का है, वह भी आधारहीन है। हमने कब किस आदिवासी से हथियार उठाने कहा है ? हमने तो सिर्फ यही लिखा था कि जगदलपुर में पत्रिका समाचार पत्र से जुड़े होने के दौरान इनके पति  ने गोटुल को लेकर गलत तथ्य छापे थे, फलस्वरूप आदिवासी समाज में व्याप्त नाराजगी के चलते उनके खिलाफ बस्तर में स्थान स्थान पर प्रदर्शन हुए और उन्हें जगदलपुर पत्रिका से हटना पड़ा। आगे आर.टी.आई.से हुए खुलासे के बाद हमने छापा कि आदिवासी का हक मारकर जब इनको जबरदस्ती का पद सृजन कर उस पर बैठा दिया गया है जबकि उस पर किसी आदिवासी उम्मीदवार का चयन तथा नियुक्ति का अधिकार है ?

इंडिया न्यूज रूम की छानबीन मे यह पता चलता है की इस मामले मे जो सरकारी दस्तावेजों का प्रकाशन बस्तरबंधु ने किया है, जिनके आधार पर महिला की  बर्खास्तगी पूर्व मे की गई थी तथा वर्तमान सरकार के मंत्रिमंडल ने विशेषाधिकार का प्रयोग करके अन्य पद का सृजन करके नियुक्ति की है उसमें तथ्य है तथा इस संबंध मे मामले के उजागर होने के बाद भी कोई संज्ञान लेने की खबर नहीं है। किसी आपत्तिजनक खबर के प्रकाशन के पश्चात सिविल कोर्ट मे मामले चलाए जाने की प्रक्रिया के लिए हर कोई स्वतंत्र है किन्तु यहाँ अस्वाभाविक  तरीकों से नियुक्ति का प्रकरण होने की वजह से मामले को दबाने की कोशिक्षे सक्षम अधिकारियों द्वारा जारी है.
दूसरी ओर महिला आयोग की विज्ञप्ति मे पत्रकार को आरोपी निर्धारित कर दिया गया है तथा अवैध नियुक्ति वाली महिला के बारे मे  मूल खबर का कोई जिक्र नहीं किया गया है जबकि खबर की बुनियाद वही है, इसके अंतर्गत  10/11/2020 को महिला आयोग ने  जो आदेश जारी किया है उसमें पी टी आई ट्रस्ट आफ  इंडिया जो एक न्यूज एजेंसी है को बस्तर बंधु की मान्यता रद्द करने का अनुरोध किया गया है, यह बेहद हास्यास्पद है, हालांकि पुलिस डी जी पी को बाद में लिखे पत्र मे कानून की धाराओं के अंतर्गत प्रकरण दर्ज करने का निर्देश देते हुए इस त्रुटि को सुधार लिया गया है । 

let for DO letter DGP Raipur (1)

किन्तु  प्रदेश पुलिस के सर्वोच्च अधिकारी को कानून की धाराओं का ज्ञान देते हुए प्रकरण दर्ज करने का महिला आयोग का आग्रह भी अनूठा प्रतीत होता है जिसमें उन्हे कानून की शिक्षा दिए जाने की भावना परिलक्षित हो रही है।

कुल मिला कर ये पूरा मामला अब और भी रोचक इसलिए हो गया है क्योंकि मुख्यमंत्री ने आज 12 नवंबर को फर्जी प्रमाणपत्रों ( जाति ) के आधार पर कार्य कर रहे शासकीय कर्मचारी अधिकारियों पर तत्काल कार्रवाही करने का आदेश जारी किया है,जिसके अंतर्गत प्रदेश मे ऐसे मामलों मे न्यायालय से स्थगन प्राप्त करके जॉब कर रहे 267 अधिकारी, कर्मचारियों पर बर्खास्तगी की कार्रवाही होने वाली है, आज ही किसी पुराने मामले मे पर्यटन मण्डल के महाप्रबंधक स्तर  के बड़े अधिकारी को निलंबित करके 2007-08 के भ्रष्टाचार की जांच का आदेश जारी हुआ है ऐसे मे इस हाई प्रोफ़ाईल  मामले में भी कुछ प्रशासनिक कार्यवाही हो सकती है।

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here