संयुक्त किसान मोर्चा की सात सदस्यीय समन्वय समिति द्वारा नई दिल्ली के प्रेस क्लब में मीडिया से की गई बात के मुख्य अंश :

🔴 संयुक्त किसान मोर्चा ने आज मीडिया के सामने आकर बात इसलिए रखी, ताकि सरकार की ओर से फैलाए जा रहे भ्रम और झूठ से जनता को अवगत कराया जा सके। ये आंदोलन अनुशासित और व्यवस्थित है। पंजाब के 32 किसान यूनियन आंदोलन के दौरान रोज मीटिंग करते हैं, जबकि हर दूसरे-तीसरे दिन 100 किसान यूनियन बैठती हैं और सात सदस्यीय समन्वय समिति देश स्तर पर कोआर्डिनेशन करती है।

■ मीडिया और सरकार द्वारा 50 प्रतिशत मांगे मानने की बात झूठ है। अभी तो सिर्फ़ पूंछ निकली है, हाथी बाकी है। ये पूंछ भी हाथी की है या गधे की, वो हमें नहीं मालूम, क्योंकि सरकार ने अभी वो भी लिखित में नहीं दिया है। कृषि क़ानूनों पर सरकार टस से मस नहीं हो रही है। एमएसपी की खरीद पर कानूनी दर्जा देने की बात तो छोड़ो, सरकार इसे मानने तक को राजी नहीं है।

■ ये प्रेस कॉन्फ्रेंस सरकार को अल्टीमेटम देने के लिए हैं। यदि 26 जनवरी तक बात नहीं पूरी होती, तो किसान पूरी दिल्ली में गणतंत्र परेड निकालेंगे। देश के हर घर से एक किसान ट्रैक्टर लेकर चले। जो लोग दिल्ली नहीं आ सकते, वो जिले स्तर पर आंदोलन में भाग लें। पूरे देश में किसान राज्यों के राजभवन के बाहर घेराव करके बैठेंगे।

■ इस देश में किसानों की औकात और मूल्य क्या है ये आंदोलन तय करेगा। सरकार ने इनडायरेक्टली सुप्रीम कोर्ट को अप्रोच किया है। हम किसानों ने नहीं। कोर्ट का फैसला आने दीजिए हम बैठकर सोचेंगे कि क्या करना है। (#योगेंद्र_यादव)

🔵 50 से ज़्यादा किसानों की मौत हुई है। आज उत्तराखंड के रामपुर के एक 50 वर्षीय किसान ने आत्महत्या कर ली है। उन्होंने अपने सुसाइड नोट में अपनी मौत के लिए मोदी सरकार को जिम्मेदार बताया है। हमारे 50 साथियों के शहीद होने के बाद भी सरकार हमारी मांगे नहीं मान रही है। हम सरकार की कड़ी निंदा करते हैं। हमारी तीन मांगे हैं, कृषि क़ानून रद्द हों। एमएसपी और खरीद की गारंटी का क़ानून बने। बिजली बिल वापिस हो। हमारे ये मुद्दे जब तक सरकार नहीं मानती तब तक आंदोलन वापस नहीं लिया जाएगा। ये किसान संयुक्त मोर्चा का एलान है।

■ महाराष्ट्र के नासिक से किसान निकले और 25 दिसंबर को शाहजहांपुर पहुंचे। आज पूरे देश में आंदोलन पहुंच चुका है। अब इसे कुचलना सरकार के लिए नामुमकिन है। विशेष तौर पर जो किसान क़ानून, लेबर कानून बना है, वो बताता है कि कॉरपोरेट इस सरकार को चला रहा है। इस आंदोलन से ये बात पूरे देश की जनता तक पहुंची है। सभी राज्यों को केरल की तर्ज पर कृषि कानून के विरोध में प्रस्ताव पास करके सरकार पर दबाव बनाना चाहिए।

■ पिछले 15 साल में चार लाख किसानों ने कर्ज की वजह से आत्म हत्या की है। इसको रोकने के लिए एमएसपी पर खरीद की गारंटी क़ानून लागू होना चाहिए। गेहूं-चावल छोड़ सरकार और कुछ नहीं खरीदती। कृषि संकट और आत्महत्या को रोकने के लिए कृषि कानूनों को रद्द करने के अलावा स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक एमएसपी लागू किया जाए और कानून बनाया जाए। (#डॉ_अशोक_ढवले)

⚫ किसान नेताओं की चार जनवरी को सरकार से वार्ता है। वार्ता में प्रगति के आधार पर अगले हफ्ते किसी निश्चित तारीख तक अगर सरकार के साथ कोई प्रगति नहीं होती है, 5 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट से भी कुछ नहीं होता, तो 6 जनवरी को रिहर्सल परेड होगी और शाहजहांपुर सीमा नाकाबंदी को दिल्ली की ओर ले जाया जाएगा। 7 से 20 जनवरी तक देश जागृति अभियान पखवाड़ा का आयोजन होगा। आंदोलन को राष्ट्रव्यापी स्वरूप देते हुए जिला स्तरीय धरना, रैलियां और प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया जाएगा। 18 जनवरी को महिला किसान दिवस मनाया जाएगा। 23 जनवरी को सुभाष चंद्र बोस जयंती को किसान चेतना दिवस का आयोजन होगा। 26 जनवरी को पूरे देश में किसान ट्रैक्टर और वाहन परेड निकालेंगे।

■ पूर्व निर्धारित कार्यक्रम जारी रहेंगे। इसमें अडानी-अंबानी के उत्पादों और सेवाओं का बहिष्कार जारी रहेगा। एनडीए के सहयोगियों को एनडीए छोड़ने और बीजेपी के साथ साझेदारी छोड़ने के लिए प्रदर्शन जारी रहेगा। पंजाब और हरियाणा में टोल प्लाजा को टोल-फ्री रखा जाएगा। (#डॉ_दर्शनपाल_सिंह)

🔷 सरकार इस क़ानून के बारे में जो-जो प्रचार कर रही है हमने उसे गलत साबित किया है। सरकार कह रही है, ये कानून किसानों की सेवा के लिए है। हम कह रहे हैं : किसने मांग की थी। उनका कहना है कि हमने एक देश एक मंडी बना दी। हम कहते हैं : आपने दो मंडियां बना दीं।

■ सरकार कह रही है, हमने बिचौलियो को हटा दिया। हम कह रहे हैं, पहले बिचौलियों की परिभाषा बता दो। आप जिसे बिचौलिया कह रहे हो, वो सर्विस प्रोवाइडर है। जितना सर्विस देता है, उसका कमीशन लेता है। वो हमें सर्विस देता है, हमारी मदद करता है। उसे खत्म करके आप हमारा बुरा कर रहे हैं। हमारी मार्केट में तो बिचौलिया है ही नहीं।

■ बिचौलिया रखना तो आपका स्वभाव है। बिना बिचौलियों के आप का काम नहीं होता। बात करने के लिए भी आपको बिचौलियों की ज़रूरत होती है।

■ हमने सरकार से कहा है कि कृषि राज्य का विषय है। इसमें दखल नहीं दे सकते। स्टेट लिस्ट में 14 नंबर पर आती है, इसमें दखल देकर आप राज्य के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप करके आपने संविधान का उलंल्घन किया है। सरकार कह रही है, हमने ट्रेड के लिए ये क़ानून बनाया है। हमने कहा, हम अपनी फसल ट्रेड करते ही नहीं। हम अपनी फसल मार्केट करते हैं। मार्केंटिग भी राज्य का विषय है। उन्होंने कहा है कि हमने कंकरेट लिस्ट से 33 नंबर इंट्री से उठाकर ये क़ानून बनाए हैं। तो हमने कहा कि हम किसान फूड ग्रेन उगाते हैं, फूट स्टफ नहीं उगाते। आप फूड स्टफ पर क़ानून बना सकते हैं फूड ग्रेन पर नहीं।

■ सच्चाई ये है कि भारत सरकार ने संविधान का उल्लंघन करके राज्य सरकार के अधिकारों पर अतिक्रमण किया है। हमारा विरोध इसलिए भी है कि केंद्र सरकार राज्य के संवैधानिक अधिकारों का हनन न कर सकें। ये क़ानून खत्म होना चाहिए। इसका अभी विरोध नहीं हुआ तो सरकार संविधान द्वारा राज्यों को दिए अधिकारों का हनन करके संघीय ढांचे को खत्म कर देगी। आज उन्होंने राज्यों के अधिकार क्षेत्र में दखल देकर कृषि क़ानून बनाया है, कल को वो राज्य अधिकारों वाले अन्य क्षेत्रों में दखल देकर ऐसे दर्जनों क़ानून बना देंगे, इसलिए भी इसका विरोध होना चाहिए। सिर्फ़ किसानों के लिए नहीं राज्य के संवैधानिक अधिकारों को अक्षुण्ण रखने के लिए भी तीनों कृषि क़ानून रद्द होने चाहिए। (#बलवीर_सिंह_राजेवाल)

🔶 सरकार जो भ्रम फैला रही है उसे दूर करने के लिए हम ये प्रेस कान्फ्रेंस कर रहे हैं। सरकार भ्रम फैला रही है कि किसान अड़ियल रवैया अपना रहे हैं। सरकार तो बहुत कुछ दे रही है। हमने आठ दिसंबर की बैठक में अमित शाह से पूछा था कि केवल तीन मुख्य फसलों को जिस पर आप एमएसपी देते हो, क्या एमएसपी पर खरीदने को तैयार हो, उन्होंने कहा था : ‘नहीं’। फिर हमने एमएसपी वाली 23 फसलों की खरीद पर पूछा, तो उन्होंने कहा, ‘सवाल ही नहीं है’। तब हमने कहा कि जब आप खरीद नहीं सकते, तो भ्रम क्यों फैला रहे हो।

■ एमएसपी देना और एमएसपी पर खरीदना दो बातें हैं। पूरे देश में सरकार ने मक्के की एमएसपी निर्धारित की है, पर सरकार ने इस साल एक भी कुंटल मक्का नहीं खरीदा है। मक्के का 1850 रुपये एमएसपी है। किसानों को बाज़ार में 700-800 में बेचना पड़ा। लाखों-करोड़ों रुपये सरकार दाल के आयात पर खर्च करती है, लेकिन अपने देश के दलहन किसानों को एमएसपी पर खरीद की गारंटी देकर प्रोत्साहित नहीं करती।

■ पिछले 15 साल में हमें एमएसपी से 45 लाख करोड़ रुपये कम मिले हैं। 3-4 लाख करोड़ रुपये हमें कम मिलता है हर साल, जबकि ये हमारा अधिकार है, जिसे सरकार 1977 से तय कर रही है पर खरीद नहीं रही है। हम हर साल घाटा खा रहे हैं। लुट रहे हैं। सरकार एमएसपी पर खरीद की गारंटी दे। इस सवाल पर सरकार टाल मटोल कर रही है। देश के खजाने पर बोझ की बात कहकर टाल रही है। किसान की बात आती है, तब सरकार को सरकारी खजाना याद आता है। पिछले साल उन्होंने कॉरपोरेट के पांच लाख करोड़ रुपये माफ किए, तब सरकारी खजाने का नहीं सोचा। सरकार हमें कमेटी बनाने का झांसा देकर टाल रही है। (#गुरनाम_सिंह_चढूनी)

🔺 बिहार में सरकार ने लाठी चार्ज किया है। वो किसान नहीं हैं क्या? तमिलनाडु, कर्नाटक, हैदराबाद में आंदोलन चल रहा है। पूरे हिंदुस्तान में आंदोलन हो रहा है। पूरा विश्व हमारे समर्थन में है। संयुक्त राज्य तक ने हमारे समर्थन में इनको डांट लगाई है। सरकार को समझना चाहिए और हमारी मांगें मान लेनी चाहिए, वर्ना ये आंदोलन अब जनांदोलन बनता जा रहा है। सरकार को इसको खामियाजा उठाना पड़ सकता है। हमारी मांग सिर्फ किसान कानून को रद्द कराने के लिए है। सरकार किसान आंदोलन को लंबा खींच रही है। सरकार इसमें अराजक तत्व भेजकर नुकसान पहुंचाना चाहती है। (#जगजीत_सिंह_दल्लेवाल)

💠 ये आंदोलन सही और गलत के बीच है। झूठ और सच के बीच है। देश बेचने और बचाने वालों के बीच है। किसानों को इतनी बार ठगा गया है, इतनी बार झूठ बोला गया है कि किसान अब मोदी सरकार पर भरोसा नहीं करना चाहती है। नरेंद्र मोदी के ताजा झूठ का एक उदाहरण देखिए। 18 दिसंबर को उन्होंने मध्य प्रदेश के किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि उनकी सरकार ने मध्य प्रदेश के किसानों को सी2+50 फार्मूले के आधार पर एमएसपी खरीद दिया है, जबकि 2015 में इसी मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर करके बताया था कि एमएसपी नहीं बढ़ा सकते हैं इससे बाज़ार खराब हो जाएगा।

■ दूसरी बात, किसान आंदोलन में अब तक 55 किसान शहीद हुए, लेकिन सरकार की ओर से उन्हें श्रद्धांजलि तक नहीं दी गई है। हम पर आतंकवादी-खालिस्तानी और विदेशी फंडिंग का आरोप लगाया। दरबारी सरकारी संगठनों को हमारे समानंतर खड़ा करने की कोशिश की, लेकिन जब हमने पता किया, तो सब फर्जी निकले। वो लोग किसान और किसान नेता नहीं, बल्कि बीज और दवाई बनाने वाली कंपनी में काम करने वाले लोग थे। (#अभिमन्यु_गोहाट)

⬛ अनाज नहीं तो समाज नहीं। अनाज पैदा करने वाला नहीं रहेगा, तो समाज नहीं रहेगा। 4 जून से जब से अध्यादेश आया है, तभी से आंदोलन चल रहा है, लेकिन शांतिपूर्ण ढंग से। यदि सरकार शंतिपूर्ण आंदोलन करने वालों की बात नहीं सुनती है, तो ये सरकार देश को किस ओर ले जाना चाहती है। साल 1907 में शहीद भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह ने ‘पगड़ी संहाल जट्टा’ आंदोलन करके अंग्रेजों की चूलें हिला दी थीं। 113 साल बाद ये इतना बड़ा आंदोलन हुआ है और फैल रहा है। सरकार ने इसे पहले पंजाब का आंदोलन बताया, फिर पंजाब-हरियाणा का आंदोलन बताया। फिर नार्थ इंडिया के किसानों का बताया, लेकिन ये आंदोलन कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश में भी हो रहा है।

■ जिस लेबर लॉ को लोगों ने इतनी कुर्बानियां देकर लिया था, उसे भी इस सरकार ने खत्म कर दिया। ये सरकार बहुत ही घमंडी और इगो वाली सरकार है। ये सरकार और तमाम प्रोटेस्ट के बावजूद पीछे नहीं हटी, लेकिन कृषि क़ानून पर सरकार फंस गई है। सरकार अपनी इमेज बचाने के लिए संशोधन का राग अलाप रही है। सरकार संशोधन तक आई है कि संशोधन करेंगे, पर हटाएंगे नहीं। तो हम कहते हैं कि सरकार लगातार पीछे हट रही है और जिस इमेज को बचाने के लिए मोदी सरकार हमारी बात नहीं सुन रही है, वो ध्वस्त हो चुकी है। (#राजेन्द्र_सिंह)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here