वैक्सीन कोविशील्ड को लेकर सामने आए तथ्यों को देखते हुए सरकार को त्वरित निर्णय ले कर स्वतंत्र वैज्ञानिक संस्थानों से इसकी जांच करानी चाहिए।

केंद्र सरकार कब तक सीरम इंस्टीच्यूट में बन रही ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन पर उठ रहे सवालों को कालीन के नीचे दबाती रहेगी? दुनिया भर के देशों में इस वैक्सीन को लेकर सवाल उठ रहे हैं और सरकार बुनियादी जांच के लिए भी तैयार नहीं है। जब भी इस वैक्सीन में किसी किस्म की गड़बड़ी की बात आती है सरकार तत्काल उसे खारिज कर देती है। आखिर ऐसी क्या मजबूरी है, जो इस वैक्सीन का इस तरह से बचाव किया जा रहा है? क्या सरकार ने देश के नागरिकों को गिनी पिग समझ रखा है? या वैक्सीन डिप्लोमेसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विश्व नेता की छवि बनाने में यह वैक्सीन काम आ रही है इसलिए इस पर उठ रहे सवालों को दबाया जा रहा है? अब तो दुनिया के सभ्य देशों ने इस वैक्सीन पर पाबंदी लगानी भी शुरू कर दी है तब भी भारत सरकार इसकी जांच नहीं करा रही है।

हो सकता है कि वैक्सीन में कोई कमी नहीं हो, जैसा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्लुएचओ ने कहा है कि यह दूसरी किस भी वैक्सीन की तरह अच्छी वैक्सीन है, फिर भी जांच कराने में क्यों हिचक होनी चाहिए।

ये माना जा रहा है कि इस समय सरकार का पूरा ध्यान ज्यादा से ज्यादा लोगों को जल्दी से जल्दी वैक्सीन लगा कर बीमारी पर प्रभावी नियंत्रण हासिल करने का है तो भी वैक्सीन पर उठे संदेह के बादल को साफ करने की जिम्मेदारी भी तो सरकार की ही है।

भाजपा के सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी ने केंद्र सरकार से आरटीआई के तहत मांगी गई एक जानकारी सोशल मीडिय में साझा की है, जिसमें सरकार ने माना है कि सीरम की वैक्सीन कोवीशील्ड लगाने के बाद देश में 48 लोगों की मौत हो चुकी है। सोचें, ऑस्ट्रिया में यह वैक्सीन लगाने के बाद एक व्यक्ति की मौत हुई तो उस देश ने इसका इस्तेमाल बंद कर दिया। लेकिन भारत में 48 लोगों की मौत के बाद भी किसी तरह का सवाल नहीं उठ रहा है। ऑस्ट्रिया के अलावा इटली, डेनमार्क, नार्वे, आइसलैंड, लक्जमबर्ग, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया आदि देशों ने इसके इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी है। डब्लुएचओ की मंजूरी के बाद भी अमेरिका ने अपने यहां इसके इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी नहीं दी है। साथ ही भारत में जब फोटो लगा कर लोगों को वैक्सीन उपलब्ध कराने का क्रेडिट पी एम मोदी का है ये जताया जा रहा है तो मौतों की जिम्मेदारी भी उन्हें ही लेनी होगी ये आम लोगों का मानना है।

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