मोहरा हैं लाला रामदेव ?
अनिल मालवीय (लखनऊ) कोविड 19 की दूसरी वेव में लगातार हो रही आम और ख़ास लोगों की मौत का ठीकरा आखिरकार लाला रामदेव ने एलोपैथ पद्धति की प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों के सिर फोड़ दिया । लाला रामदेव ने यह तोहमत एकाएक नहीं लगाई है, इसके पीछे एक सोची समझी रणनीति है । लाला रामदेव तो मात्र मोहरा हैं । इसके पीछे कई महीनों जाल बुना जा रहा था ।
याद कीजिए कुछ माह पहले आयुर्वेद पद्धति से इलाज करने वाले लोगों को शल्य चिकित्सा करने की बात कही गई थी । इसे लेकर आई एम ए के पदाधिकारियों ने विरोध दर्ज करवाया था जो भाजपा और उससे जुड़े संगठनों को नागवार गुजरा था । क्योंकि वे इसी बहाने अपने लोगों को एडजस्ट करना चाहते थे । सरकार से मिलकर आयुर्वेद पद्धति के लोग यह सिद्ध करना चाहते हैं कि वो एलोपैथी करने वाले चिकित्सकों से किसी मामले में कम नहीं हैं । ये अलग बात है कि आयुर्वेद पद्धति के लोग अपने को वैद्य कहलाने में शर्म महसूस करते हैं । डॉक्टर शब्द शायद ज्यादा गौरवशाली है ।यही कुंठा लंबे समय से है । वास्तविक यह है कि आम और ख़ास लोग उन्हें वो तवज्जो नहीं देते जो एलोपैथी के डॉक्टरों को मिलती है । सरकार से लेकर आम जनता तक एलोपैथ डॉक्टरों को गंभीरता से लेती है ।
लाला रामदेव ने योग और आयुर्वेद का काकटेल करके एलोपैथी डॉक्टरों की साख कम करने की कोशिश जरूर की है। लेकिन वो सम्मान हासिल नहीं कर पाये हैं ।
जबकि ,वास्तविकता यह है कि आज भी सड़कों और रेलवे लाइन के किनारे आयुर्वेद पद्धति से इलाज करने वाले लोगों के इश्तहार नजर आ जाएंगे जिसमें सबसे ज्यादा जोर सेक्स , गुप्त रोगऔर नि:संतान के इलाज की गारंटी दिखेगी। जबकि एलोपैथी पद्धति से इलाज करने वाले डॉक्टरों का इश्तहार गंभीर रोगों का मिलेगा। इसी छटपटाहट के चलते इस पद्धति पर हमला किया जा रहा है । उनपर तमाम आरोप लगाकर नाकारा सिद्ध करने की कोशिश है ।
इस अंतर को पाटने की कवायद बड़े स्तर पर की जा रही है ताकि मरीजों का झुकाव आयुर्वेद की तरह हो और मुनाफे का बड़ा हिस्सा उन्हें भी मिल सके ।

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