उर्मिलेश जी वरिष्ठ पत्रकार तथा विचारक हैं उन्होंने पिछले दिनों अंग्रेजी भाषा में आई दानिश खान व रूही खान की इस किताब के बारे में जरूरी टिप्पणी की है, किस तरह राजनैतिक संबंधों और आर्थिक समृद्धि से कानूनों को तोड़ मरोड़ कर आर्थिक अपराधी अपनी ऐश आराम की जिंदगी गुजारते हैं, उनके लिये कानून का कोई भय नही होता।

पाठकों के लिये प्रस्तुत है।

ESCAPED लंदन में रहने-विचरने वाले उन अमीर भारतीय भगोड़ो की बहुत विस्तार और ठोस तथ्यों के साथ लिखी दिलचस्प सत्य-कथा है, जो विभिन्न क़िस्म के अपराधों, घोटालों या गंभीर अनियमितताओ में जांच एजेंसियों या न्यायिक कार्रवाई से बचने के लिए भारत से भाग गये ! इनमे कइयों पर मामले अब भी लंबित हैं, कुछ पर तो लंदन में भी. कुछ जेल भी गये और जमानत पर लौट भी आये. कुछ बिल्कुल मस्ती से जी रहे हैं. इनमें कुछ ऐसे भी हैं, जो भारतीय एजेंसियों या अदालतों द्वारा आरोपित होने से पहले लंदन चले गये. जाहिर है, उन्हें उच्च स्तर से अपने बारे में एजेंसियों के हर कदम की पूर्व सूचना मिलती रही होगी.
ESCAPED: True Stories of Indian Fugitives in London(Penguin Random House, Year:2021, Price-Rs. 399) के लेखक हैं Danish Khan और Ruhi Khan.
ज्यादातर के मामले में प्रत्यर्पण की भारतीय एजेंसियों की कोशिशे नाकाम रहीं. कुछेक भगोडो ने स्वयं भारत आकर अपना मुक़दमा लड़ने और जांच एजेंसियों की कार्रवाई का सामना करने का फैसला किया. लेकिन इनमें वे कुख्यात अरबपति नही हैं, जो अपने राजनीतिक और व्यवस्थागत संपर्कों का फायदा उठाकर देश के सरकारी या निजी बैंको में जमा जनता की गाढ़ी कमाई से अपने ‘व्यापारिक साम्राज्य और मस्ती के संसार’ का लगातार विस्तार करते रहे.. इनमें कुछ तो भारतीय संसद के माननीय सदस्य भी बने!
जिन कुछ भगोडो ने भारत लौटने की इच्छा जताई और प्रत्यर्पण के लिए भारतीय एजेंसियों को कृतार्थ किया, वे भी प्रकारांतर से अपने राजनीतिक संपर्कों से लैस थे और संभवतः आश्वस्त भी कि उन्हें स्वदेश में देर-सबेर राहत मिल जायेगी! उदाहरण के लिए गुजरात के गोधरा से जुड़े सांप्रदायिक दंगों आदि के आरोपी रहे समीर भाई वीना भाई पटेल ने सन् 2016 में प्रत्यर्पित किये गये. इसके अलावा एक और प्रत्यर्पण संजीव चावला का था, जो सन् 2000 के बहुचर्चित क्रिकेट मैच फिक्सिंग मामले का आरोपी था, जिसका फरवरी, 2020 में प्रत्यर्पण हुआ था. वह कथा भी बेहद दिलचस्प है.
भगोडो की कहानी के साथ यह किताब सरकारों और सरकारी एजेंसियों की भी रहस्योद्घघाटक कहानी कहती है. इससे प्रत्यर्पण के सरकारी प्रयासों की असलियत भी उजागर होती है.
दानिश और रूही खान पुस्तक की भूमिका में ही बताते हैं कि सन् 1993 में यूके के साथ की गई प्रत्यर्पण संधि के बाद से सन् 2020 तक भारत की तरफ से तकरीबन 40 भगोडो के प्रत्यर्पण के लिए अनुरोध दर्ज कराया गया. इसमें अभी तक सिर्फ दो मामलों में भारत को कामयाबी मिली.
पुस्तक विजय माल्या, नीरव मोदी, संजीव चावला, इकबाल मेमन उर्फ मिर्ची, नदीम सैफी, हनीफ़ पटेल, रेमंड वार्रले, रवि शंकरन, नारंग ब्रदर्स और धरम तेजा जैसे 12 कुख्यात मामलों की गहन पड़ताल करती है. इन मामलों में पहले से उद्घाटित तथ्यों के अलावा दानिश और रूही खान अनेक नये तथ्य और ठोस सूचना भी सामने लाते हैं. पुस्तक का सबसे उल्लेखनीय पहलू यह तथ्यात्मक पडताल ही है. इसमें हमारी सरकारों और सरकारी एजेंसियों का ‘दयनीय चेहरा’ भी झांकता है. पुस्तक में कई एक्सक्लूसिव चित्र भी हैं जो देश छोडकर भागे हुए इन लोगों या ब्रिटेन में इनकी परिसम्पत्तियों के हैं, मसलन, लंदन स्थित इनके भव्य बंगले, आलीशान प्लैट्स या स्टोर्स!
यह सिर्फ कुछ अमीरों की अपराध कथाओं का संकलन ही नहीं है, इससे अपराध, अमीरी और राजनीति के रिश्तों पर भी रोशनी पड़ती है. वाणिज्यिकता से बदलती सामाजिकता का भी अवलोकन है. संजीव चावला पर केन्द्रित Bowled-Out-Bookie अध्याय में लेखक द्वय दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट टीम के प्रतिभाशाली खिलाड़ी हंसी क्रोनिये(Hansie Cronje) और चावला की कहानी बताने के क्रम में भारत में क्रिकेट की लोकप्रिय होते जाने के सिलसिले को भी बताते हैं. और यह सब बहुत मेहनत और शोध के बल पर किया गया है.
दानिश और रूही खान की ‘Escaped’ तकरीबन सात दशकों से जारी अमीर भगोडो के भागने और उन्हें प्रत्यर्पित करने के लटकते प्रयासों के दिलचस्प और हैरतंगेज सिलसिले पर एक पठनीय किताब है. यह किसी रोचक उपन्यास की तरह पाठक को बाधे रखती है. साथ ही वह किसी गंभीर शोधपरक काम की तरह पाठकों को तथ्यों और सूचनाओं से लैस करती हैं.
दानिश खान लंदन स्थित पत्रकार हैं और ET Now, Times Now और Mumbai Mirror के लिए यूरोप के विभिन्न घटनाक्रम को कवर करते रहे हैं. वह ऑक्सफोर्ड में इतिहास के अध्यापक भी रहे हैं. उन्ही की तरह रूही खान भी लंदन में बसी पत्रकार के अलावा एक प्रखर शोधार्थी हैं.
गंभीर शोध और पड़ताल के आधार पर लिखी इस किताब के लिए दोनों लेखक बधाई के पात्र हैं.

उर्मिलेश

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