5 राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिप्रेक्ष्य में प्रसिद्ध लेखक-पत्रकार राकेश अचल का बढ़िया आलेख-

गांधीवाद फिर खतरे में?
-राकेश अचल

विधानसभा चुनावों में हार-जीत की गर्द अभी कुछ दिन और उड़ती दिखाई देगी.इसी गर्द में देश को गांधीवाद को तलाश करना होगा,क्योंकि गाँधी प्रासंगिक होकर भी खतरे में हैं .गांधीवादियों की हवा लगातार निकलती जा रही है .वे सत्ता प्रतिष्ठान से लगातार दूर होते जा रहे हैं ,ये केवल एक चमत्कार नहीं है बल्कि इसके पीछे एक गहन अभियान है जो नजर नहीं आ रहा .
देश की राजनीति में गांधी कभी अप्रासंगिक नहीं हुए,गांधीऔर उनके वाद ने हमेशा देश को दिशा दी ,दुनिया में उन्हें मान्यता दी गयी किन्तु अब गांधी और गांधीवाद दोनों खतरे में है .देश में गांधी से घृणा करने वालों की राजनीतिक ताकत लगातार बढ़ रही है .वे येन-केन सत्ता पर हावी होते जा रहे हैं और इसे जनादेश कहा जा रहा है .जनादेश है भी क्योंकि जनादेश अब मशीनों से निकलता है .मशीने अपने आप नहीं चलतीं,उनके बटन दबाने होते हैं.मशीने अपने कमांडर का कमांड मानती हैं .
देश में भाजपा को कभी गांधीवादी नहीं माना गया हालाँकि भाजपा मन मारकर गांधी जी को ढोती है और राजघाट पर जाकर गाहे-वगाहे ढोक भी लगाती है .ये सत्ता में रहने की मजबूरी है ,यदि आप गांधी के सामने जाकर नहीं झुकते तो ये देश मुमकिन है आपको खारिज कर दे .भाजपा ने गांधी के बरक्श डॉ भीमराव अंबेडकर का इस्तेमाल किया.सावरकर को पुनर्जीवित किया ,दूसरी तमाम प्रतिमाएं गढ़ीं ,लेकिन कोशिश यही है कि गाँधी और गांधीवाद को समूल उखाड़ फेंका जाये .भाजपा में ये ताकत है भी और यदि भाजपा कांग्रेस की तरह लगातार दो-तीन दशक सत्ता में रही तो ये करके भी दिखा देगी .
भाजपा की तर्ज पर ही राजनीति में पैर पसार रही ‘आप ‘ भी गांधी और गांधीवाद के बहुत करीब नहीं है. दिल्ली में जहां आप पहले ही गांधी को स्कूली पाठ्यक्रमों से चुपके से बाहर कर चुकी है वहां भी अम्बेडकर इस्तेमाल किये जा रहे हैं .आप कांग्रेस के बजाय भाजपा के साथ ज्यादा सहज है और जहाँ भाजपा को पांव रखने की जगह नहीं मिलती वहां जाकर खड़ी हो जाती है .जाहिर है कि जब भी देश में भाजपा हरिज की जाएगी उसकी जगह आप लेही ,क्योंकि उसका चरित्र भी भाजपा से मैच करता है .
पंजाब में आप का उदय और भाजपा का पराभव यही संकेत देता है .आप माने या न माने भाजपा और आप के बीच कहीं न कहीं कोई खिचड़ी जरूर पक रही है . इस खिचड़ी में गांधी का नमक नहीं है .गांधी और गांधीवाद की पोषक कांग्रेस के पास गांधी और गांधीवाद को बचाने की तो छोड़िये अपने आपको बचाने की ताकत नहीं बची है .सियासी शब्दावली में कांग्रेस इन दिनों वेंटिलेटर पर है .अब कांग्रेस में कांग्रेस का नेतृत्व तो जान फूंक नहीं सकता,भगवान ही कोई चमत्कार कर दे तो और बात है .कांग्रेस में जान फूंकने का इस दशक का पहला और अंतिम अवसर कांग्रेस के हाथ से निकल चुका है .प्रियंका वाड्रा ने बड़े प्रयास किये किन्तु उन्हें कामयाबी नहीं मिल पायी .
कांग्रेस की लगातार चुनावी हार की वजह गांधी या गांधीवाद नहीं है. गांधी और गांधीवाद आज भी सबल है लेकिन कांग्रेस खुद कमजोर हो रही है,इसीलिए गांधीवाद कांग्रेस की कोई मदद नहीं कर पा रहा है .गांधी आखिर कब तक बीमार कांग्रेस के लिए संजीवनी बने रह सकते हैं ? कांग्रेस का लगातार कमजोर होना गाँधी और गांधीवाद के लिए चिंता का विषय है.क्योंकि गांधी और गांधीवाद को भाजपा या कोई और दूसरा दल अपना आका मानने से रहा .अब सवाल ये है कि क्या आने वाले दिनों में देश में गैर कांग्रेस के साथ ही क्या गैर गांधीवादी राजनीति का श्रीगणेश होगा ?
अतीत को तो आप खंगाल कर देख सकते हैं भविष्य के गर्भ में क्या पल रहा है ये किसी भी स्केनर से नहीं जाना जा सकता .इसलिए ये कहना बड़ा कठिन है कि भाजपा किस शिखर तक और कांग्रेस किस गर्त तक जाएगी .दोनों की कुंडलियों में क्या लिखा है ये अब साफ़ दिखाई देने लगा है .भविष्य में शायद गांधी का चश्मा भी किसी काम का न रहे,गांधी स्वच्छता का प्रतीक न माने जाएँ ,उनकी जगह कोई और ले ले .भविष्य में सब कुछ हो सकता है .इसलिए उत्सुकता को मरने मत दीजिये .
आप इसे दुर्भाग्य कहिये या कुछ और कि इस देश की सियासत में मौजूद गांधीवादी कांग्रेस,लोहिया के समाजवादी अनुयायी और मार्क्स-लेनिन के वामपंथी मिलकर भी हिंदूवादी भाजपा को आगे बढ़ने से नहीं रोक पा रहे हैं .इसका मतलब ये नहीं है कि आने वाले दिनों में देश हिन्दू राष्ट्र घोषित होने जा रहा है ,किन्तु इतना अवश्य है कि यदि भाजपा इसी तरह आगे बढ़ती रही तो भविष्य में संविधान से ‘धर्मनिरपेक्षता’ जैसे शब्द को उसी तरह निकला जा सकता है जिस तरह से जोड़ा गया था .भाजपा के शब्दकोश में धर्मनिरपेक्षता है ही नहीं .भाजपा आरम्भ से धर्मनिरपेक्षता को एक छल बताती रही है .
पिछले कुछ वर्षों में देश की संवैधानिक संस्थाओं की क्या स्थिति है,ये किसी से छिपी नहीं है. न्यायपालिका और कार्यपालिका की सेहत में भी बहुत बदलाव आया है.सब एक सुर में सुर मिलाकर बोलने कि कोशिश कर रहे हैं.ऐसे में अब बारी संविधान की ही है .यदि 2024 में भाजपा लगातार तीसरी बार केंद्र की सत्ता में वापस लौटी तो आप संविधान को बदलता हुआ देखने के लिए तैयार रहिये . बदलाव एक नैसर्गिक क्रिया है ,भले ही बदलाव आपको अच्छा लगे या न लगे .देश में गांधी से बड़ी प्रतिमाएं पहले से लगाई जा चुकी हैं .आगे गांधी और गांधीवाद को क्या झेलना है ये कोई नहीं जानता ,लेकिन गांधी और उनका गांधीवाद एक विषैले गर्द -गुबार में जरूर घिरा दिखाई दे रहा है .यदि आप गांधीवादी हैं तो सतर्क हो जाएँ और चाहें तो गांधी और गांधीवाद को बचाने के लिए जतन करना शुरू कर दें.
Rakesh Achal ( राकेश अचल)

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