‘बैलाडीला’ कॉन्स फ़िल्म फेस्टिवल में पहुंच चुकी है बता रहे हैं कवि ,लेखक तथा समीक्षक पीयूष कुमार
रायपुर, 16 मई 2022 . छत्तीसगढ़ के सिनेमा के लिए अच्छी खबर है। बिलासपुर जिले के एक बेहद छोटे गुमनाम से गांव टेंगनमाड़ा के शैलेन्द्र साहू द्वारा निर्मित और निर्देशित डेढ़ घण्टे की फ़िल्म ‘बैलाडीला’ विश्व प्रसिद्ध कॉन्स फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित हो रही है। इस फेस्टिवल में भारत से पांच फिल्मों का चयन किया गया है।

‘बैलाडीला’ फिल्म की भाषा हिंदी और छत्तीसगढ़ी है। शैलेन्द्र साहू ने इस फ़िल्म की शूटिंग पिछले साल मार्च – अप्रैल शैलेन्द्र ने इस फिल्म की शूटिंग बस्तर संभाग के दंतेवाड़ा जिले के बैलाडीला में की है। बैलाडीला नक्सल प्रभावित इलाका है, ऐसे में सुरक्षा की दृष्टि से अनुमति के साथ ही अन्य समस्याओं के बीच उन्होंने यह फ़िल्म पूरी की। बैलाडीला की कहानी रिंकू नाम के बच्चे पर केंद्रित है। फ़िल्म में बहुत से हिस्से निर्देशक शैलेन्द्र के अपने जीवन के अनुभवों से लिये गए हैं। बताया गया है कि बैलाडीला फ़िल्म में स्वयं एक चरित्र की तरह पेश हुआ है। खास बात यह फ़िल्म शैलेन्द्र साहू ने क्राउड फंडिंग से बनाई है।

एक तरफ कई सौ करोड़ में फिल्में बन रही, उन्हें हजारों स्क्रीन्स मिल रहीं और उसी के अनुरूप कमाई भी हो रही पर वे हिंसा और पुरुषसत्ता को ही मजबूत कर रही हैं। इधर एक तरफ गांव देहात के लोग बिना संसाधन जरूरी मुद्दों पर क्राउड फंडिंग से सार्थक फिल्में बना रहे हैं। झारखंड के नेतरहाट के Sriram Dalton की ‘स्प्रिंग थंडर’ हो या दिलीप देव की ‘अनवांटेड’ हो। इधर छत्तीसगढ़ के मनोज वर्मा निर्देशित और संजीव बख्शी के उपन्यास पर फ़िल्म ‘भूलन कांदा’ भी इसी श्रेणी की फ़िल्म है। इसी तरह अभी अभी नीलांबर कोलकाता वालों ने फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी ‘संवदिया’ पर 40 मिनट की सार्थक फ़िल्म बनाई है।

यह भारतीय सिनेमा की नई करवट है। भारत मे अब सार्थक, स्थानीय और सरोकारों वाले सिनेमा का भविष्य चुनौतियों के बावजूद उज्ज्वल लग रहा है। शैलेन्द्र साहू की फ़िल्म ‘बैलाडीला’ का पोस्टर प्रभावित कर रहा है। फ़िल्म निश्चित ही अच्छी होगी, इसमें कोई शक नहीं। शैलेन्द्र साहू जी को बहुत बधाई इसके लिए, बहुत शुभकामनाएं। जब फ़िल्म रिलीज होगी, जरूर देखी जाए।

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