सिलगेर के सवालों पर केंद्र और राज्य दोनों सरकारें मौन क्यों ?

(सिलगेर से लौट कर – पी सी रथ )

रायपुर , विगत 17 मई 2022 को छत्तीसगढ़ के दक्षिण पश्चिमी इलाके के बीजापुर सुकमा जिले के मध्य, बीहड़ में स्थित सिलगेर ग्राम में पुलिस कैम्प के पास स्थित धरना स्थल में 5 शहीदों की शहादत को याद करने बरसी मनाई गई। ये इलाका तब से चर्चा में है जब यहां कदम कदम पर खुल रहे पुलिस कैम्पों की श्रृंखला में एक और पुलिस कैम्प बिना गांव वालों की जानकारी के , रातों रात 4 किसानों की जमीन पर जबरिया कब्जा करके मई 2021 के पहले हफ्ते में बना लिया गया। ग्रामीणों के बयान के अनुसार सुबह अचानक उगे पुलिस कैम्प की खबर पा कर गांव में प्रतिष्ठित नागरिकों का एक प्रतिनिधि मंडल जो हिंदी में संवाद कर सकता था कैम्प गया और निवेदन किया कि हमारी जमीन छोड़ दी जाय और बिना गांव वालों, ग्राम सभा की अनुमति के इस तरह इस इलाके में निर्माण कार्य न किया जाय क्योकि यहां 5 वीं अनुसूची लागू है। शुरुआत में आश्वासन मिला कि जल्दी ही सब हटा लिया जाएगा किन्तु 3 दिनों तक नही हटाये जाने पर ग्रामीणों ने शांतिपूर्ण धरना, प्रदर्शन शुरू किया। पुलिस अर्ध सैनिक बल उन्हें धमकाने आया और फिर पिछले वर्ष 17 मई के दिन पुलिस ने धरना रत ग्रामीणों पर गोलियां चलाई जिससे 3 ग्रामीण मौके पर और 1 गर्भवती स्त्री घायल हो कर 2 दिन बाद मारी गयी। इस तरह कुल 5 लोगों के शहीद होने की गणना ग्रामीण करते हैं और स्थल पर दो अलग अलग मृत्यु स्तंभ बना कर उन शहीदों की स्मृतियों को संजोए रखा गया है।

सवाल यह उठता है कि राज्य सरकार ने बीते एक साल में न तो FIR दर्ज की न ही कोई न्यायिक जांच आयोग बनाया, क्या प्रदेश के आम नागरिकों की पुलिस की गोलियों से इस तरह मौत पर कोई प्रतिक्रिया नही होनी चाहिए ? क्या वस्तुतः सरकार ऐसे ग्रामीण आदिवासियों को नागरिक  मानती है ?

कुल मिला कर मूलवासी बचाओ मंच का ये आंदोलन और उसके सवाल अपने आप मे बेहद महत्वपूर्ण सवाल खड़ा करते हैं।

उनके इस आंदोलन को उनके पर्चे से समझने का प्रयास कीजिये।

 

लोकतंत्र के रास्ते आंदोलन कर रहे मूलवासी बचाओ मंच में ज्यादातर चेहरे 10 वी से 12 वीं पढ़े युवाओं के हैं जिनमे ज्यादातर अपने गांवों से बारी बारी से आंदोलन में आते हैं।

इस अनगढ़ और पत्थरों की पिरामिड नुमा संरचना को भी इस पक्के हरे रंग से पुते स्मृति स्तंभ के साथ साथ ही बनाया गया है।
जिन मांगो के साथ सिलगेर में ये आन्दोलन पिछले एक वर्ष से भी अधिक दिनों से जारी है उन मांगो पर एक नज़र डाल लें।

मूलवासी बचाओ मंच का  परचा बहुत सी बातों को स्वयं स्पष्ट करता है।

ये आंदोलन सरकार और पुलिस की नज़र में बार बार नक्सलियों द्वारा प्रायोजित आंदोलन बताया जाता है। इस संबंध में पुलिस ने पिछले वर्ष फायरिंग में मारे गए लोगों को शुरू में नक्सली बताया था और बाद में ये कहा कि भीड़ में नक्सल तत्व थे जिन्होंने पुलिस पर गोलियां चलाई जिसके जवाब में पुलिस को गोलियां चलानी पड़ी जिससे ये मौतें हुई। खुद पुलिस के संभाग के सबसे बड़े अधिकारी ने अपने बयानों में ये बदलाव किया था। सत्तारूढ़ कांग्रेस और प्रतिपक्षी भाजपा के नेताओ कुछ विधायकों ने भी उस दौरान सिलगेर का सीमित दौरा किया, मुख्यमंत्री ने प्रतिनिधि मंडल को रायपुर बुलाया, वीडियो कान्फ्रेंसिंग से बात की, किन्तु आज एक साल होने तक भी मूल निवासी मंच के कार्यकर्ता रघु के मुताबिक उन्हें कोई न्याय नही मिला। कैम्प हटाने का कोई प्रयास सरकार का नही दिखाई देता बल्कि आंदोलन को कमजोर करने की तमाम कोशिशें की जाती रही, मुख्यमंत्री से चर्चा के बाद कैम्प के पास राशन दुकान खोल दिया गया है किंतु बाकी मांगो पर चुप्पी है।

सिलगेर जाने के लिये आवापल्ली से आगे जाने पर बासागुड़ा के बाद कुछ किलोमीटर के बाद के तररेम थाने को पार करते ही सभी तरह के मोबाइल नेटवर्क का समापन हो जाता है और संचार के लिए सिर्फ पुलिस का वायरलेस सेट काम करता है।
साल भर के इस प्रदर्शन में सर्दी, गर्मी, बरसात सारी प्राकृतिक विपदाओं के बीच आंदोलन जारी रहा हालांकि कोरोना काल सरकार द्वारा धारा 144 लगा कर इकट्ठा होने को अपराध घोषित किया गया , बीते साल से अब तक बाहर से आने वालों को बार बार रोका गया, बातचीत में समाधान न होने पर भी आंदोलन खत्म होने की कहानियां फैलाई गई पर आंदोलन उसी जोश से जारी रहा।
ज्यादातर अनचीन्हे और बदलते जाते युवाओं के हाथों संचालित ये आंदोलन बहुत प्रभावित करता है। इसमें भागीदारी कर रहे ग्रामीणों की संख्या 17 मई 2022 को 20 हजार से ज्यादा नज़र आ रही थी और उनमें 90% 12 से 35 वर्ष के युवा थे जिनमे युवतियों की संख्या सर्वाधिक थी।

युवा रघु से कुछ बातचीत हुई जिससे ये सारी बातें पता चली, वस्तुतः प्रेस को ब्रीफ करने का काम वही कर रहा था जो बमुश्किल 18 से 20 वर्ष का दिखाई दे रहा था। कुछ लोगों से ही हिंदी में संवाद हो पाता था जिनके अनुसार वे 40 से 50 किमी दूर गांवों से आये थे और बारी बारी से आंदोलन में अपनी क्षमता अनुसार समय और धन का योगदान करते हैं।

भोजन और चाय की व्यवस्था कर रहे युवाओं के बीच सुनीता से बात हुई तो उसने कहा कि पंचायत स्तर पर घूम घूम कर चावल और रुपयों की व्यवस्था करते रहे। यहां तक कि छोटी मोटी बीमारियों , चोट , दस्त के लिए दवाइयां भी आने जाने वालों के लिए फ्री में उपलब्ध थी। किसी भी लंबे चलने वाले आंदोलन के लिये जरूरी सभी व्यवस्थाएं अपने स्थानीय संसाधनों से करने की पूरी कोशिश की गई थी। तेज गर्मी में लोगों के बैठने के लिये ताड़ के पत्तों से ढका मात्र 6 फ़ीट ऊंचा तकरीबन 1,20,000 वर्ग फ़ीट का मंडप बनाया गया था। मिट्टी की लिपाई से बना मंच जिसकी लंबाई करीब 40 फ़ीट और चौड़ाई करीब 20 फ़ीट होगी रंगबिरंगे कागजों के फूलों से सजाया गया था। मंच पर सोलर फोटोवोल्टिक शीट से ऊर्जा प्राप्त माईक सिस्टम और लैपटॉप , प्रिंटर की व्यवस्था थी जिससे मूल वासी मंच की विज्ञप्ति और सूचनाएं प्रिंट करके बांटी जा रही थी। इस दूरस्थ स्थल पर कव्हरेज के लिए आने वाले पत्रकारों को लिखित धन्यवाद पत्र भी बांटा गया।

कुछ लोगों ने बातचीत में बताया कि प्रदेश के विभिन्न इलाकों में तूफानी दौरा कर रहे मुख्यमंत्री के लिये ये अच्छा अवसर था कि वे सिलगेर में आ कर आंदोलनरत युवाओं से मिलते और सारे प्रदेश के आदिवासी समाज में अच्छा संदेश जाता किन्तु अफ़सोस कि उनके लिए इस लाखों की आबादी के लिये शायद प्राथमिकता और समय नही है।

इन दस्तावेजों में आंदोलन की अब तक की घटनाओं को सिलसिलेवार रखने की कोशिश की गई है। पूरे आयोजन में कम से कम 5 से 10 मोबाइल कैमरे निरंतर वीडियो रिकार्डिंग करते रहते हैं , कोई भी कार्यकर्ता जब बयान देता या बातचीत करता है तो बेहद गंभीरता से एक एक मुद्दे को बताता है जिसे रिकार्ड करने उनका कोई साथी भी मौजूद रहता है।

कार्यक्रम में रायपुर से आये अखिल भारतीय किसान सभा छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष संजय पराते और सदस्य ऋषि गुप्ता अम्बिकापुर भी थे, पराते जी ने अपने उद्बोधन में कहा चूंकि सरकार की पुलिस की फायरिंग से गांव वालों की मौत हुई है तो आरोपियों पर एफ आई आर होना चाहिए और पीड़ित परिवारों को उचित मुआवजा दिया जाना चाहिए था। जो कि एक साल पूरा होने तक नही होना दुर्भाग्यपूर्ण है।

राजनांदगांव से सुदेश, मानपुर , बालोद , कांकेर से भी किसान आदिवासी नेता कार्यक्रम में शिरकत करने आये थे। इसी तरह  मूलवासी मंच के आमंत्रण पर सहयोग के लिये दूर दूर से शिक्षाविद, बुद्धिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ता , वकील, पत्रकार आदि के आने का सिलसिला जारी था दिल्ली विवि से प्राध्यापक सरोज गिरि, पत्रकार संदीप कुमार, जगदलपुर से बेला भाटिया, कांकेर से माटी संस्था से सागरिका और रायपुर जगदलपुर दंतेवाड़ा बीजापुर कांकेर सुकमा के पत्रकार सिलगेर में मौजूद थे।

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