आने वाले जुलाई 2022 से राज्यों को जीएसटी का झटका बहुत तेज लगेगा क्योकि

ब्यूरो रिपोर्ट( इंडिया न्यूज रूम) आने वाले महीने जुलाई के बाद से राज्यों को केंद्र की तरफ से जीएसटी क्षतिपूर्ति के रूप में एक रुपया भी नहीं मिलने वाला.  इस जी एस टी क्षतिपूर्ति बंद होने के बाद छत्तीसगढ़ राज्य को कम से कम साढ़े पांच हजार करोड़ रुपए के अतिरिक्त राजस्व का इंतजाम करना होगा.

देश में राज्यों और केंद्र के बीच जीएसटी को लेकर एक नया टकराव आकार लेता दिख रहा है. केंद्र सरकार ने हाल में राज्यों को माल एवं वस्तु कर या जीएसटी क्षतिपूर्ति के रूप में 86,912 करोड़ रुपए जारी किए हैं. और साफ कर दिया है कि मई 2022 तक का पूरा हिसाब-किताब हो चुका है. इसके बाद केंद्र सरकार पर केवल जून 2022 की ही देनदारी बाकी रहेगी. करीब पांच साल पहले जुलाई 2017 में जब “एक देश एक टैक्स ” सिस्टम के रूप में जीएसटी को लागू किया गया था, तो दावा किया जा रहा था कि कर संग्रह में सालाना 14 फीसदी की वृद्धि होगी. राज्यों से केंद्र ने वादा किया था कि कर संग्रह इतना नहीं बढ़ा, तो वह अगले पांच सालों तक अंतर की राशि राज्यों को देगा. ये पांच साल इस महीने जून में खत्म हो रहे हैं. अगले महीने जुलाई के बाद से राज्यों को केंद्र की तरफ से जीएसटी क्षतिपूर्ति के रूप में एक धेला नहीं मिलने वाला.
छत्तीसगढ़ जैसे राज्य की बात करें, तो जीएसटी क्षतिपूर्ति के रूप में राज्य को साढ़े छह हजार करोड़ रुपए मिल रहे हैं. क्षतिपूर्ति बंद होने के बाद छत्तीसगढ़ को कम से कम साढ़े पांच हजार करोड़ रुपए के अतिरिक्त राजस्व का इंतजाम करना होगा. ये बहुत मुश्किल होने वाला है, क्योंकि कमाई बढ़ाने के ज्यादातर स्रोत राज्यों से छीने जा चुके हैं. पेट्रोल, डीजल पर वैट, जमीन और वाहनों के पंजीयन, शराब पर टैक्स, बिजली दर, खनिज रॉयल्टी जैसे गिनती के ही स्रोत शेष हैं, जिन पर राज्यों को कर बढ़ाने की छूट है. अगर राज्यों ने इन स्रोतों से अतिरिक्त कमाई करने की सोची, तो महंगाई और बढ़ना तय है, जो पहले से ही अपने चरम पर है. लगभग सारे राज्य केंद्र पर दबाव बना रहे हैं कि जीएसटी क्षतिपूर्ति की अवधि को और 10 साल बढ़ाया जाए, पर केंद्र सरकार साफ इनकार कर चुकी है.
घरेलू रेटिंग एजेंसी ‘इंडिया रेटिंग्स’ की पिछले महीने जारी रिपोर्ट भी राज्यों की इसी चिंता को दिखाती है, जिसमें दावा किया गया है कि जीएसटी लागू होने के बाद से राज्यों को टैक्स के रूप में बहुत ज्यादा फायदा नहीं हुआ है. अब तक जो आंकड़े आए हैं, उसे देखते हुए जीएसटी लागू होने के बाद कर संग्रह में खासी वृद्धि के दावों की हवा निकलती दिख रही है. राज्य जीएसटी की राज्यों के अपने कर राजस्व में हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2017-18 से वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान 55.4 प्रतिशत रही. जबकि वित्त वर्ष 2013-14 से 2016-17 के दौरान यह 55.2 प्रतिशत थी. इसमें एक दूसरा पक्ष भी है. कर वसूली के लिए जिस तरह की ईमानदारी और सख्ती राज्यों में होनी चाहिए थी, वह भी नहीं हुई. जीएसटी लागू होने के पहले सरकार ने एक सर्वेक्षण करवाया था, जिसमें ये तथ्य आया था कि 50 फीसदी से ज्यादा कारोबारी टैक्स चोरी कर रहे हैं. मूल जीएसटी कानून में 170 के आसपास धाराएं थीं, लेकिन कानून में अब तक 1500 से ज्यादा संशोधन हो चुके हैं. टैक्स चोरी करने वाले उनका पूरा फायदा उठा रहे हैं. दूसरी चुनौती असल टैक्स संग्रह की गणना भी है. अभी जो जीएसटी संग्रह बढ़ा हुआ दिख रहा है, वह महंगाई की वजह से है. अगर महंगाई से आए फर्क को हटा दिया जाए, तो असल टैक्स संग्रह में वृद्धि 5 फीसदी भी नहीं बचती.
कमाई घटने की राज्यों की चिंता के बीच सुप्रीम कोर्ट का हाल का फैसला उम्मीद जगाता है, जिसमें कहा गया है कि जीएसटी काउंसिल का हर फैसला मानने की बाध्यता केंद्र या राज्य की नहीं है. इस फैसले का गैरभाजपा शासित राज्यों ने स्वागत किया है, लेकिन इस फैसले का व्यापक रूप से क्या असर होगा, ये साफ होना बाकी है. क्योंकि ये फैसला एक केस विशेष पर है. यह भी देखना होगा कि कौन सा राज्य जीएसटी परिषद के फैसलों के खिलाफ जाकर अपने यहां टैक्स बढ़ाने की दिशा में आगे बढ़ता है. सारी आशंकाओं के बीच जीएसटी परिषद की जून में प्रस्तावित बैठक अहम होने वाली है. इसमें केंद्र सरकार को बहुत सारी चीजों पर स्पष्टता देनी होगी. इसमें क्षतिपूर्ति बंद होने के बाद राज्यों के मिलने वाली रकम से लेकर, करों को लेकर राज्यों के अधिकार, टैक्स बढ़ाने के राज्यों के विकल्प जैसे मुद्दे भी आएंगे. एक तरह से कर राजस्व का पूरा ढांचा जून के बाद नए सिरे से तैयार होगा. इसमें राज्यों के लिए मुश्किलें कहीं ज्यादा होंगी. जीएसटी के अनुशासन को बनाए रखने की कवायद में केंद्र सरकार को भी बहुत पसीना बहाना होगा.

दरअसल दशकों से संघीय प्रणाली के अंतरगत भारत गणराज्य के राज्यों की केंद्र से असमान फंड वितरण की शिकायत रही है। महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक जैसे राज्य जो अलग-अलग टैक्स के रूप में केंद्र को अनुपातिक रूप से बहुत ज्यादा राशि देते हैं किंतु जनसँख्या और क्षेत्रफल में कम होने के कारण केंद्रीय बजट आवंटन इन राज्यों को कम मिलता है जबकि यूपी बिहार जैसे राज्यों को अनुपातिक रूप से बहुत ज्यादा आवंटन मिलता है जिसे ले कर ये राज्य पहले भी आपत्ति उठाते रहे हैं। अब जी एस टी के क्षतिपूर्ति के बंद होने से ये परस्पर विश्वसनीयता का संकट और बढ़ जाएगा।

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