विशेष आलेख  – कोयला संकट के बहाने सार्वजनिक परिवहन पर शिकंजा , कभी प्रदेश के धान , चावल परिवहन के लिये इतनी मालगाड़ियां चलाई गई ?

रायपुर, कोयला संकट के नाम पर केवल छत्तीसगढ़ प्रदेश में 3 माह में 240 यात्री ट्रेनों के 2997 फेरे रद्द करके लाखों यात्रियों को यात्रा रद्द करने और दूसरे सड़क मार्ग को चुनने पर विवश किया गया। इन तीन महीनों में छत्तीसगढ़ की पटरियों से हो कर 2 – 2 किलोमीटर से ज्यादा लंबी 1031 एनाकोंडा नाम से लंबी मालगाड़ियां चला दीं।
इस दौरान रेलवे को दूसरे प्रदेशों में कोयला भेजने का लक्ष्य तय किया गया था उससे 25 प्रतिशत से ज्यादा कोयला भेजा गया, इस दौरान बिलासपुर रेल जोन में लगातार यात्री ट्रेनें कैंसिल की जाती रही । राज्य सरकार के लिखित पत्रों द्वारा आपत्ति किये जाने के बाद भी राज्य के रेल यात्रियों के हितों को नज़र अंदाज़ किया गया। इस दौरान पहले की तुलना में 400 प्रतिशत ज्यादा मालगाडियो के परिचालन किया गया। रेलवे ने मई में 167 , जून माह में 367 और जुलाई 2022 ।के397 एनाकोंडा मालगाड़ियां चलाई जा चुकी है।
दरअसल इस वित्तीय वर्ष में बिलासपुर जोन का 253 मिलियन टन माल ढुलाई का लक्ष्य है, इसमें 75 मिलियन टन यानी 25 प्रतिशत से अधिक माल ढुलाई की जा चुकी है, अभी भी बिलासपुर ज़ोन से रोज 360 से अधिक मालगाड़ियां चलाई जा रही है।
यदि देखा जाय तो इस वर्ष जनवरी 2022 से अब तक औसतन 50 लाख यात्रियों के हित केवल पैसेंजर ट्रेनों के 5000 से अधिक फेरे ट्रेनों के केंसिल होने के कारण प्रभावित हो चुके हैं। प्रति ट्रेन 1000 यात्रियों के औसत से ऐसे सारे यात्रियों को मजबूरी में यात्रा का माध्यम बदल कर सड़क मार्ग पर निर्भर होना पड़ा।
माल ढुलाई खासकर कोयला ढुलाई के अधिक दबाव के कारण रेलवे के अफसरों ने करीब 2 किमी लंबी एनाकोंडा यानी दो मालगाड़ियों को जोड़ कर चलाई फिर और दबाव बढ़ने पर तीन मालगाड़ियों को जोड़ कर तीन किमी लंबी शेषनाग चलाई फिर भी ढुलाई का लालच बढ़ता रहा तो फिर 4 मालगाड़ियों को जोड़ कर उससे भी अधिक यानी 6000 टन कोयला एक बार मे ले जाने के लिये लंबी सुपर शेषनाग के नाम से मालगाड़ी चलाई लेकिन वो बिलासपुर इलाके से 180 किमी चल कर दुर्ग के पास थम गई। फिर इस फेल गाड़ी को दो एनाकोंडा के रूप में आगे बढ़ाया गया।
देश और राज्य के इन हालातों पर छत्तीसगढ़ अखिल भारतीय किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते ने कहा कि- जब प्राकृतिक संसाधनों के दोहन पर चर्चा की जाती है तो माना जाता है कि ये केवल वर्तमान पीढ़ी के लिये नही है बल्कि आगे आने वाली पीढ़ियों के लिये भी इन्हें सुरक्षित बचाया जाना चाहिए किन्तु जब से नई केंद्र सरकार ने संविधान के प्रावधानों को ताक में रख कर राष्ट्रीयकृत कोल खदानों को पीछे के रास्ते से निजी कारपोरेट को खुदाई के लिए सौंपा है, लोभ और लालच की अंतहीन भूख दिखाई दे रही है और छत्तीसगढ़ की संसाधन सम्पन्न धरती से ऐसी क्रूरता से खनिजों की लूट की जा रही है और उस जल्दबाजी की लूट में सरकारों के वरद हस्त के कारण भारतीय रेल का ऐसा इस्तेमाल किया जाना अत्यंत आपत्तिजनक है। यात्री सेवाओं को ताक पर रख दिया गया है और रेलवे के सस्ते परिवहन सुविधा से नागरिकों को वंचित किया जा रहा है, कारपोरेट को अंतहीन लाभ पहुचाने के लिये ये सब किया जा रहा है। श्री पराते आगे कहते हैं कि वर्तमान राज्य सरकार भी इन मुद्दों पर प्रखरता से विरोध नही कर रही है,न ही जनता के सामने पिछले 10 वर्षों के आंकड़े रखे जा रहे हैं कि जब 2002 में बाहर भेजे जाने वाले कोयले की मात्रा इतनी कम थी तो अब पिछले 3 वर्षों में वह इतने अधिक कैसे हो गयी, क्या कारण है कि खुदाई 100 गुना बढ़ा दिया गया। उपरोक्त आंकड़ो के हिसाब से देखा जाय तो यदि एक एनाकोंडा मालगाड़ी से सरकार 3000 टन कोयला भेज रही है तो विगत तीन माह में 31 लाख 50 हजार टन कोयला बाहर भेज चुकी है। क्या इस हिसाब से माल भाड़ा और रॉयल्टी का भुगतान प्राप्त हो रहा है ?

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