न्याय और अन्याय का नोट करो डिफरेंस ,
जिसकी लाठी बलवती ,हाँक ले गया भैंस !

हास्य -व्यंग्य के बेजोड़ कवि काका हाथरसी की
जयंती और पुण्यतिथि ,दोनों आज एक साथ
(आलेख : स्वराज करुण)
जीवन नीरस नहीं ,बल्कि सरस होना चाहिए और इसके लिए हास्य रस का होना भी बहुत ज़रूरी है ,जिसे हमारी सेहत के लिए टॉनिक भी माना जाता है। लेकिन हास्य रस को भी स्वयं स्वस्थ होना चाहिए ,तभी वह टॉनिक के रूप में हमारी सेहत और हमारे समाज के लिए फायदेमंद होगा। साहित्य में हास्य रस के साथ अगर देश और दुनिया की सामाजिक ,आर्थिक बुराइयों पर प्रहार करने वाला तीखा व्यंग्य जुड़ा हो तो हमारे सामाजिक स्वास्थ्य के लिए इस टॉनिक की गुणवत्ता बहुत बढ़ जाती है।
काका हाथरसी हास्य व्यंग्य के ऐसे लोकप्रिय कवि थे ,जो अपने दोहों और अपनी कुंडलियों के माध्यम से हँसी-हँसी में ही व्यंग्य के तीखे तीर चलाकर समाज व्यवस्था के सूत्रधारों को सोचने विचारने के लिए मज़बूर कर देते थे। लेकिन इन दिनों कवि सम्मेलनों के अधिकांश मंचों पर हास्य कविता के नाम पर फूहड़ और अशोभनीय मजाक के अलावा और चलता भी क्या है ? हास्य व्यंग्य के ज्यादातर तथाकथित कवि कॉमेडियन नज़र आते हैं ,जिन्हें सर्कस का जोकर भी कहा जा सकता है। पर हमारे काका जी ऐसे नहीं थे। उनके हास्य में व्यंग्य का भी ग़ज़ब का सम्मिश्रण होता था।
हास्य – व्यंग्य सम्राट काका हाथरसी जी की आज 18 सितम्बर को जयंती भी है और पुण्यतिथि भी।ऐसा संयोग बहुत कम देखने – सुनने में आता है कि किसी महान विभूति की जयंती और उनके निधन की तारीख़ भी एक ही हो । उन्हीं विलक्षण विभूतियों में काका हाथरसी का नाम भी सम्मान के साथ लिया जाता है। काका जी का पारिवारिक नाम प्रभुलाल गर्ग था । उनका जन्म 18 सितम्बर 1906 को उत्तरप्रदेश के हाथरस में हुआ था । निधन 18 सितम्बर 1995 को हुआ । जन्म और कर्म भूमि हाथरस को उन्होंने अपना साहित्यिक उपनाम ‘हाथरसी’ बनाकर देश -विदेश में मशहूर कर दिया। वह हिन्दी काव्य जगत में हास्य -व्यंग्य के बेहतरीन , बेजोड़ और बेताज बादशाह थे । कवि सम्मेलनों के मंचों पर साफ -सुथरे हास्य के साथ व्यंग्य की मीठी छुरी चलाने में उन्हें महारत हासिल थी । हिन्दी कविता में हास्य – व्यंग्य की विधा को उन्होंने लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचाया । भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 1965 में पद्मश्री अलंकरण से नवाजा ।
उनकी पुस्तकों में ‘ काका की चौपाल ‘ और ‘ जय बोलो बेईमान की ‘ उल्लेखनीय हैं । अपनी प्रसिद्ध रचना ‘ जय बोलो बेईमान की ‘में वह कहते हैं –

मन मैला ,तन उजरा ,भाषण लच्छेदार
ऊपर सत्याचार है ,भीतर भ्रष्टाचार ।
झूठों के घर पण्डित बांचे कथा सत्य भगवान की ।
जय बोलो बेईमान की ,जय बोलो ..!
चैक कैश करवा कर लाया ठेकेदार ,
आज बनाया पुल नया ,कल पड़ गयी दरार ।
बाँकी -झाँकी कर लो काकी फाइव ईयर प्लान की ।
जय बोलो बेईमान की ,जय बोलो ।
न्याय और अन्याय का नोट करो डिफरेंस,
जिसकी लाठी बलवती हाँक ले गया भैंस ।
निर्बल धक्के खाएं तूती बोल रही बलवान की ।
जय बोलो बेईमान की ,जय बोलो ।

काका जी ने आज की छद्म पत्रकारिता पर भी अपने व्यंग्य का निशाना साधा ।
बानगी देखिए –
पत्रकार दादा बने, देखो उनके ठाठ।
कागज़ का कोटा झपट, करें एक के आठ।।
करें एक के आठ, चल रही आपाधापी ।
दस हज़ार बताएं, छपें ढाई सौ कापी ।।
विज्ञापन दे दो तो, जय-जयकार कराएं।
मना करो तो उल्टी-सीधी न्यूज़ छपाएं ।।

आलेख : स्वराज करुण ( छत्तीसगढ़)

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