इंसान तब अधिक स्वतंत्रता मांगता है जब उसे ज्यादा दबाया जाता है.

( हिमांशु जोशी )

2022 में साल भर पूरे विश्व में उथल पुथल मची रही. रूस ने यूक्रेन की सीमा लांघ करोड़ों लोगों को बेघर किया तो जलवायु परिवर्तन की वजह से विश्व के करोड़ों लोग प्रभावित हुए. युद्ध और प्रकृति की इस मार के बीच दुनिया भर के लोगों में अपनी स्वतंत्रता को लेकर संघर्ष जारी रहा, खासतौर पर महिलाओं ने अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाई. भारत में हिजाब पहनने को लेकर तो ईरान में हिजाब उतारने को लेकर अपने अधिकार की लड़ाई लड़ी गई. अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा शिक्षा के अधिकार से महरूम कर दी गई युवतियां, शिक्षा के अधिकार के लिए सड़क पर हैं.

साल 2022 में अपने अधिकारों के लिए जागरूक महिलाएं.

11 अक्टूबर 2022 को अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर संयुक्त राष्ट्र महिला कार्यकारी निदेशक सुश्री सिमा बाहौस ने अपने बयान में कहा था कि जलवायु, शिक्षा, मानसिक कल्याण, लिंग आधारित हिंसा, यौन और प्रजनन स्वास्थ्य अधिकारों के लिए लड़कियां खुद को एक नेता, अधिवक्ता और बदलाव लाने वाले के रूप में आगे बढ़ा रही हैं.

भारत में इस साल महिला अधिकारों के लिए लड़े गए सबसे बड़े आंदोलन की बात करी जाए तो इस साल की शुरुआत में कर्नाटक के कॉलेज में हिजाब पहनने वाली छात्राओं को कॉलेज में प्रवेश करने की अनुमति देने से मना करने पर लोग सड़क पर उतर आए और सिर ढकने वाला हिजाब मुस्लिम महिलाओं के अधिकार की लड़ाई का प्रतीक बन गया.

वहीं ईरान में हिजाब न पहनने के मामले में 22 वर्षीय महसा अमिनी की पुलिस कस्टडी में मौत हो गई, जिसके बाद ईरान की महिलाएं सड़कों पर प्रदर्शन के लिए उतर आई. वहां अब भी महिलाएं हिजाब में आग लगाकर प्रदर्शन कर रही हैं और
सरकार प्रदर्शनकारियों का जितना दमन कर रही है, यह प्रदर्शन उतना ही उग्र हो रहा है.

अमेरिकी में भी महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए लड़ना पड़ रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में पचास साल पुराने गर्भपात का अधिकार देने वाले कानून को पलट दिया और इसके बाद से ही बड़ी संख्या में अमेरिकी महिलाएं इसके खिलाफ सड़कों पर उतरी हुई हैं.

कैमरून में महिलाओं द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विरोध प्रदर्शन किया था. उन्होंने इस प्रदर्शन में अधिक राजनीतिक शक्ति और सरकारी नौकरियों की मांग की. कैमरून में महिलाओं और पुरुषों की लगभग बराबर आबादी है लेकिन देश के दस क्षेत्रीय गवर्नरों या परिषद अध्यक्षों में एक भी महिला नहीं है.

साल खत्म होने से पहले अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा महिलाओं की शिक्षा पर लगाए गए प्रतिबन्धों के बाद महिलाएं प्रदर्शन कर रही हैं. हेरात शहर के विश्वविद्यालयों में खुद की शिक्षा पर प्रतिबंध के खिलाफ प्रदर्शन कर रही छात्राओं पर वाटर केनन का इस्तेमाल किया गया है और इससे जुड़ा हुआ एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. इस वीडियो में तालिबान के फैसले का विरोध कर रहीं छात्राएं ‘एजुकेशन इज अवर ह्युमन राइट’ के नारे लगा रही हैं.

आखिर ऐसा क्या हुआ जो सालों से चुप महिलाएं अब शांत नही हैं.

साल 1994 में अफगानिस्तान में तालिबान ने अपना शासन जमाया और महिलाओं के अधिकारों पर प्रतिबंध लगाए ,तो वहां की महिलाओं ने तालिबान की धार्मिक पुलिस के सामने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी थी. लेकिन अब स्थिति अलग है और अफगानी महिलाएं अपने अधिकारों के लिए सड़कों पर उतरी हुई हैं. विश्व भर की महिलाएं इस तरह के आंदोलन कर रही हैं और इन महिलाओं में इस तरह की हिम्मत कहां से आई, इस बारे में महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाली देहरादून निवासी उमा भट्ट और गीता गैरोला से बात की गई.

उमा भट्ट (Uma Bhatt) ने बताया कि आज विश्व भर में उदारवाद, बहुलतावाद और सहिष्णुता विरोध पर आधारित दक्षिणपंथी विचारधारा ज्यादा हावी हैं. इस वजह से महिलाओं पर ज्यादा दबाव बन रहा है लेकिन महिलाएं दबाव में नही आएंगी. महिलाओं की शिक्षा पर बहुत काम हुआ है और इस वजह से अब महिलाएं पहले से कहीं अधिक शिक्षित हैं और अच्छे पदों पर भी हैं. वह अपनी स्वतंत्रता मांगेंगे ही, वैसे भी इंसान तब अधिक स्वतंत्रता मांगता है जब उसे ज्यादा दबाया जाता है.

गीता गिरोला (Geeta Gairola) ने कहा कि दुनिया ग्लोबल हो रही है. पहले कहीं कुछ घटित होता था तो किसी को पता नही चलता था या बहुत देर से पता चलता था, पर अब संचार के उचित माध्यमों से विश्व भर की महिलाएं यह देख रही हैं कि दूसरी जगह अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए लोगों द्वारा कैसा आंदोलन चलाया जा रहा है, इससे उन्हें अपने आंदोलन की योजना बनाने की हिम्मत और सहायता मिलती है.

(हिमांशु जोशी जी का आलेख आभार सहित सोशल मीडिया से )

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