–गुलशेर खां शानी जी पर केंद्रित कार्यक्रम का दूसरा दिन,

शानी की रचनाओं को संवेदना से पढ़ने पर हमें अंतर्दृष्टि मिलती है- वैभव सिंह

दिनांक- 08/01/23
रायपुर. छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद की साहित्य अकादमी द्वारा शानी फाउंडेशन के सहयोग से आयोजित देश के चर्चित रचनाकार गुलशेर खां ‘शानी’ जी पर केंद्रित कार्यक्रम के दूसरे दिन की शुरुआत ‘कथाकार शानी ‘ सत्र से हुई।

झारखंड से आये मौजूदा दौर के समर्थ आलोचक राहुल सिंह ने शानी की कहानियों की बुनावट और भाषा शिल्प पर अपने विचार रखे, हाशिये पर खड़े समाज की बेबसी, भूख और गरीबी के किस्से उनकी रचनाओं में सहजता से अभिव्यक्त होते हैं। ईदगाह कहानी के कथानक में प्रेमचंद और शानी की प्रस्तुति के अंतर को राहुल सिंह ने स्पष्ट किया।
जगदलपुर से आये वरिष्ठ रचनाकार योगेंद्र मोतीवाला ने शानी के समय की स्थितियों को उनकी कहानियों में रेखांकित किया, उन्होंने ‘कालाजल’ की कुछ पंक्तियों का पाठ करके उसे स्पष्ट किया। अम्बेडकर विवि से आये वैभव सिंह ने देश की स्थितियों में साहित्यकारों और उनकी रचनाओं के आधार पर बताया कि साम्प्रदायिकता के प्रति मुस्लिम लेखक अधिक संवेदनशील होते हैं। किसी रचनाकार में ईमानदारी कितनी है , ये उसके किरदारों की भाषा और चित्रण से व्यक्त हो जाता है ।


बनारस से आये नीरज खरे ने बताया – नई कहानी आंदोलन में अनुभव की प्रामाणिकता को बहुत महत्व दिया गया था और उस आधार पर शानी जी की सभी कहानियां सटीक हैं। 1958 में पहले संग्रह और 1984 के आखरी कथा संग्रह के माध्यम से शानी इस समूचे समय की प्रतिनिधि रचनाओं में दर्ज होते हैं।
सत्र की अध्यक्षता कर रहे दिल्ली से आये प्रसिद्ध लेखक अशोक कुमार पांडे ने कहा- शानी की रचनाओं में आने वाले विपन्न समाज को मैंने भी करीब से देखा है, उनकी सटीक प्रस्तुति शानी की सफलता है। पिता -पुत्र के रिश्तों में जो दूरी पहले हुआ करती थी उसे भी पूरी स्वाभाविकता से शानी ने कथाओं में व्यक्त किया है।
“शाल वनों का द्वीप एक पुनर्यात्रा” शीर्षक के अंतर्गत दूसरे सत्र में कवर्धा से आये अजय चंद्रवंशी ने शानी जी की रचना शालवनो के द्वीप में नृतत्वशास्त्री और समाजशास्त्रीय नजरिये के साथ साथ रचनाकार की संवेदनशीलता से किये गए लेखन का जिक्र किया।
प्रदेश साहित्य अकादमी के अध्यक्ष ईश्वर सिंह दोस्त ने कहा कि शानी सबसे अलग इसलिए हैं क्योंकि वे कोई रोमांटिक स्टीरियो टाइप आदिवासियों का नही बनने देते। वे घोटुल की गहरी ऐंद्रिकता के साथ साथ गरीबी, बीमारी, वीरानगी और उदासी को भी साथ साथ ही व्यक्त करते हैं।
तीसरे सत्र में आज के दौर में शानी विषय पर अम्बिकापुर से आये वरिष्ठ साहित्यकार विजय गुप्त ने कहा शानी ख्वाब नही दिखाते पूरी ईमानदारी से सच का बयान करते हैं।
दिल्ली से आये पत्रकार प्रशांत टंडन ने देश के वर्तमान हालातों का जिक्र करते हुए शानी की तत्कालीन चिंताओं को याद किया, पहलू खान और अखलाक खान के मोब लिंचिंग की स्थितियों को उन्होंने बताते हुए युद्ध जैसी कहानी के आज फिल्मांकन की जरूरत बताई।


अशोक कुमार पांडे ने अल्पसंख्यक , महिलाओं और दलितों के सभी क्षेत्रों में कम प्रतिनिधित्व को ले कर चिंता जाहिर की। काश्मीर के मुसलमान अधिकारी का उदाहरण भी उन्होंने सामने रखा।

सत्र के अध्यक्ष के रूप में कथाकार शशांक ने शानी की रचनाओं के तीन अलग-अलग हिस्सों में बांट कर बस्तर से ग्वालियर, भोपाल और दिल्ली की कहानियों के अलग अलग विषयों को रेखंकित किया।
अंतिम सत्र में वरिष्ठ रचनाकारों रमाकांत श्रीवास्तव, शशांक, वैभव सिंह और मनोज रूपड़ा ने अपनी अपनी कहानियों का पाठ किया ।
अंत में संस्कृति परिषद की ओर से मुख्यमंत्री के सलाहकार विनोद वर्मा ने अकादमी को सफल आयोजन के लिये बधाई दी, शानी फाउंडेशन के फीरोज शानी और साहित्य अकादमी, छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष ईश्वर सिंह दोस्त ने आभार वक्तव्य किया।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here