2024 के चुनाव को लेकर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। नीतीश कुमार विपक्षी दलों को एकजुट करने की नई मुहिम शुरू कर चुके हैं। सियासत इस देश का सबसे प्रिय शगल है। अनेक राजनीतिक पंडित और संपादक 2024 का अपना आकलन शुरू कर चुके हैंं।

यहां देखिए 2024 के आम चुनाव को लेकर पत्रकार साथी सुदीप ठाकुर का आलेख

( ब्लॉग से साभार )

– अगले आम चुनाव में अहम हो सकती हैं 383 सीटें

सुदीप ठाकुर

हमारे बहुदलीय लोकतंत्र की संरचना कुछ इस तरह की है कि विगत सत्तर सालों में ऐसे बहुत कम मौके आए हैं, जब कोई एक मजबूत विपक्षी दल रहा हो। दरअसल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की 2024 के चुनाव के मद्देनजर विपक्षी दलों को एकजुट करने की ताजा मुहिम को इस तथ्य के साथ भी देखने की जरूरत है।

जनता दल (यू) नेता नीतीश ने अपने उपमुख्यमंत्री राजद नेता तेजस्वी के साथ कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी तथा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से अलग-अलग मुलाकातें की हैं। इस बीच, दूसरे विपक्षी नेताओं की आपस में मुलाकातों की खबरें भी हैं। नीतीश कुमार ने 2024 में भाजपा को चुनौती देने के लिए ‘एक सीट एक उम्मीदवार’ का फॉर्मूला दिया है। यानी भाजपा उम्मीदवारों के खिलाफ संयुक्त विपक्ष का एक-एक उम्मीदवार। देखा जाए तो यह कोई नया फॉर्मूला नहीं है, और जैसा कि खुद नीतीश ने भी कहा है कि 1977 और 1989 में ऐसा किया जा चुका है। हालांकि 1977 और 1989 की परिस्थितियां भिन्न थीं और तब कांग्रेस प्रभुत्व वाली पार्टी थी। आज भाजपा प्रभुत्व वाली पार्टी है।

क्या एकजुट विपक्ष का यह फॉर्मूला इस बार कारगर होगा? क्या 2024, 1977 और 1989 को दोहराएगा?

पूरे देश के पैमाने पर विभिन्न राज्यों में भाजपा और विपक्षी दलों की स्थिति को देखें, तो दिलचस्प तस्वीर उभरती है। करीब बीस छोटे बड़े दल हैं, जिन्हें गैर भाजपा या गैर एनडीए की श्रेणी में रखा जा सकता है। जाहिर है, इतने सारे दलों के बीच सामंजस्य बिठाना कोई आसान काम नहीं है। तो नीतीश किस आधार पर संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार की बात कर रहे हैं? या विपक्ष की ऐसी किसी भी मुहिम का आधार क्या है?

इसका सबसे बड़ा आधार यही है कि 2019 के चुनाव में भाजपा को 37.7 फीसदी वोट मिले थे, यानी 63 फीसदी वोट बिखरे हुए हैं। यदि विपक्षी दल एकजुट हो जाएं, तो भाजपा का आधार दरक सकता है। इस अंक गणित में यदि विभिन्न दलों की केमेस्ट्री को भी मिलाकर देखें, तो स्थितियां काफी साफ होती जाती हैं।

हम इस विश्लेषण में राज्यों को तीन समूहों या ग्रुप में बांट रहे हैं। पहले ग्रुप में ऐसे राज्य हैं, जहां भाजपा का किसी भी एक दल या गठबंधन से सीधा मुकाबला है। इसे हम यहां ‘ग्रुप-ए’ कहेंगे। दूसरे समूह में ऐसे राज्य हैं, जहां विपक्षी दल (भाजपा के विपक्षी) एकजुट नहीं हैं या एक दूसरे से भी चुनाव लड़ते हैं। ऐसे राज्यों को हम ‘ग्रुप-बी’ कहेंगे। तीसरा समूह ऐसे राज्यों का है, जहां प्रभुत्व वाले दल न तो भाजपा की अगुआई वाली एनडीए में हैं और न ही विपक्षी दलों की मुहिम में शामिल हैं। ऐसे राज्यों को इस विश्लेषण में हम ‘ग्रुप-सी’ कहेंगे।

आइए सबसे पहले ‘ग्रुप-ए’ पर नजर डालते हैं। यानी उन राज्यों और वहां की लोकसभा सीटों पर जहां भाजपा तथा उसके गठबंधन का किसी एक दल या गठबंधन से सीधा मुकाबला है, और हो सकता है। (मुकाबले में शामिल छोटे दलों को इसमें शामिल नहीं कर रहे हैं, क्योंकि उनकी उपस्थिति बहुत प्रभावकारी नहीं है) ये राज्य हैं, तमिलनाडु (39), महाराष्ट्र (48), बिहार, (40) झारखंड (14), मध्य प्रदेश (29), छत्तीसगढ़ (11), राजस्थान (25), गुजरात (26), असम (14), हरियाणा (10), हिमाचल प्रदेश (04) और उत्तराखंड (05)। ये कुल 265 सीटें होती हैं, जहां मौजूदा स्थिति में विपक्ष को एकजुट कहा जा सकता है और जहां वह भाजपा या एनडीए को सीधे चुनौती देने की स्थिति में है। यानी ‘ग्रुप-ए’ में 265 सीटें हैं।

‘ग्रुप-ए’ में शामिल तमिलनाडु में द्रमुक, कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियां एक साथ हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह लगातार तमिलनाडु में भाजपा का आधार बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। अन्नाद्रमुक एनडीए का हिस्सा है। महाराष्ट्र में शिवसेना (उद्धव ठाकरे), एनसीपी और कांग्रेस का महाअघाड़ी भाजपा-शिवसेना (शिंदे) के गठबंधन के खिलाफ संयुक्त उम्मीदवार खड़ा करने की स्थिति में है। यही स्थिति बिहार में है, जहां जनता दल (यू), राजद और कांग्रेस का महागठबंधन है। झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस का गठबंधन है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, असम, हरियाणा, हिमाचल और उत्तराखंड में कांग्रेस और भाजपा तथा उसके गठबंधन के बीच सीधी लड़ाई है।

अब ग्रुप-बी की बात करते हैं, जहां विपक्षी दलों की आपस में भी लड़ाई है। इनमें हम उत्तर प्रदेश (80), पश्चिम बंगाल (42), केरल (18), तेलंगाना (17), कर्नाटक (28), पंजाब (13) और दिल्ली (07)। ग्रुप-बी में कुल सीटें हुईं 205। उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा और कांग्रेस के बीच अभी कोई तालमेल नहीं है। 2014 से देश का यह सबसे बड़ा सूबा भाजपा का गढ़ बन गया है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस तथा कांग्रेस और वामदलों के बीच अभी कोई तालमेल नहीं है। 2019 में भाजपा ने यहां 18 सीटें जीत ली थीं। और अभी अमित शाह ने 35 का टारगेट रखा है! केरल में कांग्रेस और वाम दल पारंपरिक रूप से प्रतिद्वंद्वी हैं। तेलंगाना के चंद्रशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) की स्थिति ममता के तृणमूल की तरह है, जिसने कांग्रेस से दूरी बना रखी है। कर्नाटक में कांग्रेस और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के जनता दल (एस) के बीच अभी तालमेल नहीं है। पंजाब और दिल्ली में अब आम आदमी पार्टी भी बड़ी दावेदार है, जहां कांग्रेस के साथ उसका अभी तालमेल नहीं है।

अब ग्रुप-सी को देखते हैं, जिन राज्यों के प्रभुत्व वाले दल प्रत्यक्षतः न तो भाजपा के साथ हैं और न ही विपक्ष के साथ। ये राज्य हैं, ओडिशा (21) और आंध्र प्रदेश (25)। ओडिशा में करीब पच्चीस साल से बीजू जनता दल का शासन है। बीजद नेता और मुख्यमंत्री नवीन पटनायक न तो एनडीए का हिस्सा हैं और न ही विपक्ष की ताजा मुहिम का। आंध्र प्रदेश में 2019 से वाईएसआर कांग्रेस पार्टी सत्ता में है। इसके नेता और मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी भी पटनायक की तरह न तो एनडीए का हिस्सा हैं और न ही विपक्ष की ताजा मुहिम का। हालांकि यह भी सच है कि कुछ विशेष मौकों पर विधेयक पारित करवाने में बीजू जनता दल और वाईएसआर कांग्रेस ने मोदी सरकार का साथ दिया है। लेकिन ये दोनों दल अकेले ही चुनाव मैदान में जाना चाहेंगे। आंध्र प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी भी है। ग्रुप-सी में इस तरह 46 सीटें हैं।

इस तरह ग्रुप-ए की 265, ग्रुप-बी की 205 और ग्रुप-सी की 46 सीटों को जोड़ें तो ये 516 सीटें होती हैं। लोकसभा की कुल 543 सीटें हैं।इस तरह बची 27 सीटें जम्मू-कश्मीर, गोवा तथा पूर्वोत्तर के राज्यों की हैं, जिन्हें मोटे तौर पर इस विश्लेषण में शामिल नहीं किया गया है। जम्मू-कश्मीर, गोव को छोड़ दें, तो बाकी के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में भाजपा की स्थिति मजबूत है और वहां एकजुट विपक्ष की संभावनाएं कम ही हैं।

ग्रुप-ए की 265 सीटों में सीधे मुकाबले के आसार हैं। वहीं ग्रुप-बी के उत्तर प्रदेश (80) और दिल्ली (07) ही ऐसे राज्य हैं, जहां लोकसभा चुनाव के लिहाज से भाजपा वर्चस्व वाली पार्टी है और जहां विपक्ष बिखरा हुआ है। जबकि ग्रुप-बी के पश्चिम बंगाल (42), केरल (18), तेलंगाना (17), कर्नाटक (28), और पंजाब (13) ऐसे राज्य हैं, जहां विपक्ष एकजुट भले न हो, लेकिन वहां की प्रभुत्व वाली विपक्षी पार्टियां भाजपा को सीधे चुनौती दे सकती हैं। ये सीटें होती हैं, 118। इन्हें यदि ग्रुप-ए की 265 सीटों के साथ जोड़ दें तो ये 383 सीटें होती हैं, जहां विपक्ष सही रणनीति बनाकर भाजपा को सीधे चुनौती दे सकता है।

निस्संदेह भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लिए 2024 के चुनाव बेहद अहम हैं, क्योंकि 2025 में आरएसएस की स्थापना के सौ वर्ष पूरे हो रहे हैं। भाजपा के रणनीतिकार तो इस बार मोदी की अगुआई में 400 से अधिक सीटें जीतने की बात कर रहे हैं, जैसा कि कुछ दिन पहले द टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट (shorturl.at/mwBH1)में कहा गया था।

क्या 2024 के लोकसभा चुनाव में 383 सीटों का अंक गणित काम करेगा? इसका जवाब विपक्ष को तलाशना है।

सुदीप ठाकुर

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