मुख्य मीडिया पूरी तरह कारपोरेट के कब्जे में, देश हित की खबरों के लिए छोटे मीडिया समूहों को मदद जरूरी
रायपुर, 17 फरवरी 2025। राजधानी के वृंदावन हॉल के सभागृह में दर्जनों पुरस्कारों से सम्मानित भारत के वरिष्ठ पत्रकार पी साईनाथ ने अपने व्याख्यान में देश की मूल समस्याओं के लिए जिम्मेदारों के बारे में विस्तार से बताया। अवसर था राजधानी से प्रकाशित मासिक पत्रिका निरंतर पहल के स्थापना दिवस वार्षिक समारोह का जिसमे संपादक समीर दीवान ने पी साईनाथ का स्वागत किया । हिंदू के संपादक रहे, ग्रामीण पत्रकारिता के पुरोधा पत्रकार पी साईनाथ ने देश के अखबारों और मीडिया के आज बड़ी पूंजी के दास हो जाने से उत्पन्न परिस्थितियों, विसंगतियों पर अपनी बात रखी। प्रेस की स्वतंत्रता या पर्स की स्वतंत्रता, इस विषय पर देश के ख्यातिनाम पत्रकार पी. सांईनाथ ने बहुत खुलकर अपने विचार रखे। उन्होंने कारपोरेट मीडिया के हथकंडों की जमकर बखिया उधेड़ी। पी सांईनाथ ने किसान आंदोलन के समय किस तरह सरकार और कारपोरेट मीडिया ने व्यवहार किया इसे बताया। उन्होंने वैकल्पिक मीडिया यानी इंडिपेंडेंट मीडिया की वकालत करते हुए इसकी हरसंभव मदद करने कहा। उन्होंने कहा कि यदि आपको कारपोरेट मीडिया या ऑनलाईन मीडिया से शिकायत है तो अपना विरोध दर्ज करायें तथा जो लोग इंडिपेंडेंट मीडिया चला रहे वैकल्पिक मीडिया हैं जो कारपोरेट नहीं हैं उनकी खुलकर मदद करें।
वरिष्ठ पत्रकार मधु डी. जोशी ने भी अपने विचार रखे। डॉ. सुशील त्रिवेदी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। इस अवसर पर बड़ी संख्या में पत्रकार, साहित्यकार, संस्कृति कर्मी उपस्थित रहे। निरंतर पहल पत्रिका के 5 वें स्थापना दिवस समारोह के अवसर पर जनसंपर्क विभाग छत्तीसगढ़ शासन के सहयोग से यह आयोजन हुआ। पत्रिका के संपादक समीर दीवान ने अतिथियों का स्वागत किया।
कार्यक्रम के प्रारंभ में बीजापुर में मारे गये पत्रकार मुकेश चन्द्राकर को मौन श्रद्धांजलि दी गई।इ स अवसर पर रायपुर प्रेस क्लब अध्यक्ष प्रफुल्ल कुमार ठाकुर को प्रदेश के चर्चित पत्रकार रहे मुकेश चंद्राकर की एक हस्तनिर्मित तस्वीर भी भेंट की गई।।
व्याख्यान की शुरूआत में पी साईनाथ ने कहा कि आज जब मझोली पूंजी मीडिया संचालित कर रही है तब देश में खबरों में सेंसर और प्रतिबंधों का ये हाल है आने वाले भविष्य में जब अंतरराष्ट्रीय बड़े कारपोरेट का मालिकाना हो जाएगा तो क्या हो जाएगा, सोचा जा सकता है।
राजधानी के पत्रकारों , बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों और नागरिकों के समक्ष उन्होंने कहा बड़े चैनलों के बड़े बड़े ताकतवर माने जाने वाले पत्रकार केवल तब तक ताकतवर रहते हैं जब तक वे ताकतवर कारपोरेट प्रभुओं के पक्ष में रहते हैं, जैसे ही वे उस पक्ष की जगह छोड़ कर जनहित की बात करते हैं, दीन हीन और दुर्बल हो जाते हैं। एक आध अपवाद रवीश कुमार जैसे का छोड़ दीजिए, जिन्होंने अपने श्रोता और पाठक वर्ग का फॉलोइंग अलग तैयार कर लिया था तो वे यू ट्यूब में भी लोकप्रिय हैं बाक़ी का हाल देख सकते हैं। वैसे भी अब देश में यू ट्यूब, पोर्टल्स में ही पत्रकार बचे हैं। पिछले चुनावों में यू ट्यूबरों ने ही बताया था कि यूपी में भाजपा को 40 सीटों का नुकसान है जो परिणाम निकलने पर बिल्कुल सही साबित हुआ। मुख्यधारा की कथित मीडिया तो केवल गुणगान में लगी हुई थी।
यह समझना जरूरी है कि सोशल मीडिया के इस दौर में इंटरनेट आपकी आवाज जरुर है पर कितने लोगों तक आपकी ये आवाज़ पहुंचेगी इसकी गारंटी नही है। ट्विटर या एक्स के मेरे 80 हजार से अधिक फॉलोअर्स में से मात्र 2% तक मेरी कोई भी पोस्ट पहुंच पाती है। देश के विभिन्न क्षेत्रों में एकाधिकार तोड़ने के लिए 1970, 80 में अभियान चलाया गया था, ओपन इंटरनेट एज कहे जाने के युग में आज सबसे ज्यादा एकाधिकारवाद इंटरनेट सेवाओं के क्षेत्र में है। इतने बड़े देश में अभी मात्र 4 कंपनिया है जो कुछ साल पहले 8 हुआ करती थीं।
अमरीकी सीनेट ( कांग्रेस) की एक जांच कमिटी के सामने बड़ी कंपनियों के व्हीसल ब्लोअरों ने जो बयान दिए उनमें बताया है कि पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा बार और ज्यादा समय तक इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगाने के आदेश पूरी दुनिया में भारत देश में सरकार द्वारा दिए गए हैं। लोगों के नेट खाते बंद करने, काश्मीर जैसे राज्य में 2 वर्ष तक इंटरनेट सेवाओं से नागरिकों के वंचित करने का काम भी इसमें शामिल है। फेसबुक के व्हिसिल ब्लोअर ने सीनेट की जिरह में फेसबुक के खातों को बंद करने के सबसे ज्यादा आदेश भारत से मिलने की बात भी बताई। 2020 और 2021में दुनिया के इतिहास में किसानों का सबसे बड़ा आंदोलन दिल्ली की सीमाओं में हुआ। देश की किसी भी कथित राष्ट्रीय मीडिया ने इसका यथोचित कव्हरेज नहीं किया। ज्यादातर यू ट्यूब, पोर्टल्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स में ही इसका उचित कव्हरेज हुआ कि आखिर आंदोलनकारी चाहते क्या हैं , क्यों वे हजारों किमी की कठिन यात्रा करके दिल्ली तक आए है और तेज गर्मी, सर्दी और बरसात में सरकार के सामने 350 से अधिक दिनों से फुटपाथ में बैठे हैं।
इसी तरह कोरोना के विकराल दिनों में कितनी मौतें भारत में हुई इसके आंकड़े जब WHO ने जारी किए तो उसी WHO के दिशा निर्देशों का पालन करके देश में कोरोना नियंत्रण का काम करने वाली सरकार ने उन आंकड़ों को मानने से इनकार कर दिया, जबकि सौम्या स्वामीनाथन ही उन आंकड़ों की रिसर्च हेड WHO थीं जो कृषि अर्थशास्त्री तथा स्वामीनाथन आयोग के अध्यक्ष एम एस स्वामीनाथन की पुत्री हैं। जिस आयोग रिपोर्ट को लागू करके किसानों की आय बढ़ाने का दावा किया गया था। इसी तरह जब कोरोना से हुई मौतों की सही रिपोर्टिंग कोई भी मीडिया घराना नही कर रहा था, सोशल मीडिया पर भी खबरें बैन थी तब गंगा नदी के तट रेत पर हजारों लाशों को दबाए जाने की खबर तस्वीरें और वीडियो जारी करने वाले भास्कर मीडिया समूह पर लगातार आयकर, ईडी व अन्य एजेंसियों के छापे डलवा कर उन्हें डराया गया। ऐसे में देश में मीडिया की स्वतंत्रता और फ्री प्रेस या पर्स प्रेस की हकीकत को समझा जा सकता है।
दुनिया में आज कहीं कोई फ्री डिजिटल स्पेस नही है आज दुनिया का जो सबसे बड़ा धनी व्यक्ति एलेन मस्क मालिक एक्स है वही सबसे बड़ा एकाधिकारवादी है। अपने बेहद बड़े नेटवर्क के बावजूद फेसबुक का संचालन में वेतनभत्तों पर खर्च मात्र 1% तक सीमित है जबकि उसके सबसे ज्यादा एकाउंट भारत में है जो खुद ही सबसे ज्यादा कंटेंट भी फेसबुक में अपलोड करते हैं। भले ही फेसबुक के अल्गोरिदम के कारण हमारी पोस्ट मात्र 2% फेसबुक मित्रों तक पहुंच पाती है। वॉशिंगटन पोस्ट के पूर्व एडिटर बेन बेडिग्स जिन्होंने पेंटागन पेपर्स का खुलासा किया था वास्तव में ये ( सोशल मीडिया, इंटरनेट) कारपोरेट का ही मीडिया है।
आप सभी ने पिछले वर्ष देश विदेश में 6000 करोड़ से अधिक खर्च वाले एक हाई प्रोफाइल विवाह ( अनंत अंबानी) का कव्हरेज देखा होगा। जरा याद करें कि किसी अखबार के संपादकीय में क्या इसकी आलोचना या समीक्षा में कोई आलेख कभी प्रकाशित हुआ? नही बिल्कुल नही, ऐसा इसलिए क्योंकि श्रीमान मुकेश अंबानी ही 50 से 55 प्रतिशत मीडिया घरानों के वास्तविक मालिक हैं जिनके मालिक नही उनके सबसे बड़े विज्ञापनदाता हैं। I 28 अरब डॉलर का भारत का मीडिया बाज़ार एक हफ्ते के अंदर 36 बिलियन डॉलर का हो गया जिसका एक तिहाई से अधिक का शेयर मुकेश अंबानी के पास है। इसकी ताकत को देखते हुए थोड़ी बहुत निरपेक्ष आवाज़ वाले NDTV को खरीद कर अडानी ग्रुप भी मीडिया मार्केट में भागीदारी करने पहुंच गया, फिर उसने क्विंट, ब्लूम बर्ग को खरीदा और कई चर्चित यूट्यूब न्यूज संचालकों से भी संपर्क कर लिया।
इस चर्चित विवाह समारोह के लिए गुजरात के जामनगर एयरपोर्ट को केंद्र सरकार द्वारा एक रात के लिए इंटरनेशनल एयरपोर्ट का स्टेटस दिया गया । भारतीय वायुसेना के अधिकारियों द्वारा यहां एयरपोर्ट की कमान संभाली गई । केंद्र तथा राज्य की सुरक्षा एजेंसियों ने व्यवस्था तथा सुरक्षा का पूरा जिम्मा उठाया। अंबानी के 6000 करोड़ रुपयों के अलावा जनता का भी करोड़ों रुपया इस तरह बहाया गया। कुल मिला कर यह विवाह अंबानी जी का स्ट्रेटेजिक बिजनेस इन्वेस्टमेंट था। मीडिया, सरकार , अधिकारी,कारपोरेट और विदेशी मेहमानों सभी क्षेत्रों के हाई प्रोफाइल अतिथियों के भागीदारी के कारण अंबानी समूह की क्रेडिबिलिटी तेजी से बढ़ी। उनके कुल नेटवर्थ यानि कुल आर्थिक साम्राज्य,संपत्तियों का 0.27% से भी कम खर्च करके उन्होंने इस विवाह समारोह को कई श्रृंखलाओं में किया। जब सभी केंद्रीय मंत्री और अधिकारी वहां अतिथि सत्कार का आनंद ले रहे थे तो उनकी कोई भी फाइल किसी विभाग में भला कैसे रुकेगी?
आज किसी भी बड़े अधिकारी के चेंबर में रोज कोई न कोई कारपोरेट प्रतिनिधि अपने प्रस्तावों के साथ उपस्थित होता है। खनन, ऑयल एंड गैस मंत्रालय, भूतल परिवहन विभाग, वन विभाग, रक्षा मंत्रालय, सूचना एवं प्रौद्योगिकी विभाग सभी में कारपोरेट की दखल इसीलिए बढ़ी है।
दूसरे पहलू को देखें तो केवल महाराष्ट्र में हर साल एक से दो लाख किसान परिवारों में आर्थिक तंगी के कारण विवाह स्थगित किए जाते हैं। कुछ वर्षों पहले की महाराष्ट्र के सिर्फ 6 जिलों में एक सर्वे का डेटा आया था जिसमें आर्थिक दिक्कतों की वजह से 3 लाख से अधिक किसान परिवार अपनी बेटियों की शादी नही कर पाए थे। अब ताजा आंकड़ों में बेटों की शादियों में दिक्कतें आ रही हैं क्योंकि किसानों की आय में आर्थिक अस्थिरता के कारण कोई भी लड़की का पिता किसान परिवारों में अपनी बेटियों नहीं ब्याहना चाहता
पी साईनाथ जी की पीपल्स आर्काइव रूरल इंडिया PARI संस्था की ओर से छत्तीसगढ़ी सहित देश की 16 भाषाओं में सभी समाचारों और रिपोर्ताज को नियमित प्रसारित किया जाता है। उनका कहना था कि कॉरपोरेट मीडिया की बजाय इस तरह के निजी प्रयास के मीडिया जनहित में ज्यादा भरोसेमंद काम कर सकते हैं।
कार्यक्रम में विशेष अतिथि के रूप मे दिल्ली से आई लेखिका, शिक्षाशास्त्री तथा अनुवादक मधु बी जोशी ने कहा कि अखबार जो विचारों के फ्लैगशिप हुआ करते थे दरअसल पिछले 3 – 4 दशकों में अचानक अखबार एक उत्पाद में तब्दील हो गया है ऐसे में उपभोक्ता के तौर पर हमारी भूमिका क्या होनी चाहिए इसपर विचार करना चाहिए। हमारी तरबियत ऐसी हुई है कि आज भी सरकार हमारे लिए माई बाप है, हम सत्ताधारी लोगों से सवाल करने का संस्कार ही नही रखते हैं , हमारे बचपन के पराग, चंदामामा, नंदन, धर्मयुग, सारिका, दिनमान जैसी सारी पत्रिकाएं एक एक करके बंद हो गई। हिंदी में पत्रकारिता शुरू से राजनीति से जुड़ी रही है मालिक बदले तो अखबारों में भी बदलाव आया। पत्रकारों की सेवा शर्तें बदली, पत्रकार अनुबंध पर आ गए। इलेक्ट्रानिक मीडिया में कंटेंट को सनसनीखेज बनाने की मनोवृत्ति बढ़ती गई जो एक मज़मेबाज जो जादुई तेल सड़क पर बेचता है। रिपोर्टिंग में समय के साथ न स्त्री द्वेष की खबरों में कमी आई है न ही जाति द्वेष या सांप्रदायिक द्वेष की खबरों में कोई कमी आई। रिपोर्टिंग में ये बदलाव वाले समाज और प्रोडक्ट बन चुके मीडिया को पूरी तरह प्रभावित करने लगा। हमने शिक्षा को कभी मुद्दा नही बनने दिया नतीजा ये कि उस पर किसी ने न्यूज की सीरीज नही चलाई। शिक्षा की दुर्व्यवस्था पर हर साल असर की रिपोर्ट आती है तो शिक्षा की निराशाजनक स्थितियों पर थोड़ी खबरें छाप दी जाती हैं।5 वी का छात्र यदि 2 री की किताब नहीं पढ़ पाता है, 3री के गणित के सवाल हल नही कर पाता है तो ये चिंता का विषय है। शिक्षक भी इसी व्यवस्था की पैदाइश हैं। अब शिक्षा खबर तब बनती है जब बायजू और फिट जी जैसी कंपनी के बंद होने की खबर आती है या कोटा जैसे कोचिंग शहर में बड़ी संख्या में बच्चे आत्महत्या करते हैं। पिछले एक दशक में देश में संवैधानिक संस्थाओं के अलावा अच्छे शिक्षण संस्थाओं को बर्बाद किया गया। आज मीडिया में जनभागीदारी इतनी कम हो गई है कि संपादक के नाम पत्र लिखना भी लोग बंद कर चुके हैं। इसी स्थिति में कारपोरेट के बदले लोकतांत्रिक मीडिया संस्थानों को बढ़ावा देने की जरूरत है। कार्यक्रम अध्यक्ष के रूप में अंत में डॉ सुशील त्रिवेदी ने मीडिया के वर्तमान स्थितियों में अपनी चिंताओं को जाहिर करते हुए अपनी बात रखी ।