केरल में बाढ़ थमी , अब नवनिर्माण की चुनौतियां के बीच उठे बुनियादी सवाल
दक्षिण के राज्यों ने उठाया मुद्दा -राज्यों को केंद्र से न्यायपूर्ण बंटवारा नहीं मिल पा रहा
रायपुर . केरल की बाढ़ तो अब उतर चुकी है किन्तु केंद्र शासन दिल्ली के मदद के तौर तरीकों को केरल सहित दक्षिण के राज्यों ने अस्मिता का मुद्दा माना है , उनका कहना है की वित्तमंत्रियों के माध्यम से वे ये सवाल पहले भी उठा चुके हैं किन्तु केंद्र न्यायपूर्ण वितरण नहीं कर पा रहा है.
ज्ञातव्य हो की देश में कुल आबादी 125 करोड़ में से बीस प्रतिशत आबादी दक्षिण के इन 5 राज्यों में निवास करती है जबकि ये 5 राज्य देश की कुल आय का 30 प्रतिशत से अधिक योगदान टैक्स भुगतान के माध्यम से करते हैं . केरल , तमिलनाडु , कर्नाटक , तेलंगाना , आँध्रप्रदेश का 5 राज्यों का समूह तुलनात्मक रूप से अच्छे साक्षरता , शिक्षा स्तर , स्वास्थ्य के बेहतर व्यवस्थाओं के कारण उत्तरभारत के राज्यों की तुलना में विकसित भी माने जाते हैं.
इन राज्यों द्वारा बज़ट योगदान के आंकड़ो में केरल 1 रूपए देता है तो केंद्र से विकास हेतु 25 पैसे वापस मिलते हैं, तमिलनाडु को 1 रूपए के बदले 40 पैसे विकास हेतु मिलते हैं , जबकि उत्तरप्रदेश को 1 रूपए के योगदान के एवज में 180 पैसे मिलते हैं .

आबादी पर बेहतर नियंत्रण उपायों , शिक्षा और साक्षरता के गंभीर प्रयासों के कारण बेहतर जीवन स्तर हासिल कर पाना in राज्यों के लिए केंद्र के सौतेले व्यवहार का कारण बन गया है . इस अन्यायपूर्ण व्यवस्था का संसद में भी ये राज्य सांसदों के संख्या बल से दबाव नहीं बना पाते क्योकि देश में 1971 की जनगणना के अनुसार लोकसभा की संसदीय सीटों का निर्धारण किया गया है, अब अगली बार यह 2026 में ये निर्धारण जनसँख्या के आधार पर पुनः किया जायेगा . इस व्यवस्था से असंतोष जताते हुए दक्षिण के राज्यों का कहना है कि उन्होंने अगर प्रभावी जनसँख्या नियंत्रण का अच्छा कार्य किया है तो इसका पुरस्कार मिलाने के बदले उनको कम विकास राशि दे कर दण्डित क्यों किया जा रहा है.

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