18 अक्टूबर 1996 :पुण्यतिथि विशेष
सुनील सिंह

( आलेख- इंडिया न्यूज रूम)   काकोरी काण्ड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम।के क्रान्तिकारियों द्वारा ब्रिटिश राज के विरुद्ध भयंकर युद्ध छेड़ने की खतरनाक ईच्छा से हथियार खरीदने के लिये ब्रिटिश सरकार का ही खजाना लूट लेने की एक ऐतिहासिक घटना थी जो ९ अगस्त १९२५ को घटी. इस ट्रेन डकैती में जर्मनी के बने चार माउज़र पिस्तौल काम में लाये गये थे. हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के केवल दस सदस्यों ने इस पूरी घटना को परिणाम दिया था.इस कांड में राम प्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी , अशफाक उल्ला खाँ तथा ठाकुर रोशन सिंह को फांसी दी गयी.कुछ लोगों को आजीवन कारावास दिया गया . इन्हीं अभियुकितों में एक रामकृष्ण खत्री थे.उन्हें काकोरी काण्ड में 10 वर्ष के कठोर कारावास की सजा दी गयी। उन्हें पूने में 18 अक्टूबर, 1925 में गिरफ्तार कर लखनऊ लाया गया था। उन्होंने 1925 से लेकर 1935 तक जेल की सजा काटी.

हिन्दी, मराठी, गुरुमुखी तथा अंग्रेजी के अच्छे जानकार रामकृष्ण खत्री का जन्म 3 मार्च 1902 को ब्रिटिश राज में वर्तमान महाराष्ट्र के जिला बुलढाना बरार के चिखली गाँव में हुआ.उनके पिता का नाम शिवलाल चोपड़ा व माँ का नाम कृष्णाबाई था . छात्र जीवन में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के व्याख्यान से प्रभावित होकर उन्होंने साधु समाज को संगठित करने का संकल्प किया और उदासीन मण्डल के नाम से एक संस्था बना ली.इस संस्था में उन्हें महन्त गोविन्द प्रकाश के नाम से लोग जानते थे . क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आकर उन्होंने स्वेच्छा से हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के संगठन का दायित्व स्वीकार किया.मराठी भाषा के अच्छे जानकार होने के नाते राम प्रसाद बिस्मिल ने उन्हें उत्तर प्रदेश से हटाकर मध्य प्रदेश भेज दिया .व्यवस्था के अनुसार उन्हें संघ का विस्तारक बनाया गया था. काकोरी कांड के परिणाम स्वरूप सजा काटकर जेल से निकलने के बाद वह योगेश चन्द्र चटर्जी की रिहाई के लिये प्रयास किया। उसके बाद सभी राजनीतिक कैदियों को जेल से छुड़ाने के लिये आन्दोलन किया.उसके बाद सभी राजनीतिक कैदियों को जेल से छुड़ाने के लिये आन्दोलन किया.

काकोरी स्थित काकोरी शहीद स्मारक रामकृष्णखत्री और प्रेमकृष्ण खन्ना के संयुक्त प्रयासों से ही बन सका.17,18,19 दिसम्बर 1977 को लखनऊ में काकोरी शहीद अ्र्धशताब्दी समारोह 27, 28 फरबरी 1989 को इलाहाबाद में शहीद चन्द्रशेखर आजाद बलिदान अर्द्धशताब्दी समारोह तथा 22,23 मार्च 1989 को नई दिल्ली में शहीद भगतसिंह सुखदेव राजगुरु के बलिदान के अ्र्धशताब्दी समारोह में रामकृष्ण खत्रीकी उल्लेखनीय भूमिका रही.

खत्री ने ‘शहीदों की छाया में’ शीर्षक से एक पुस्तक भी लिखी थी जो नागपुर से प्रकाशित हुई थी.स्वतन्त्र भारत में उन्होंने भारत सरकार से मिलकर स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानियों की सहायता के लिये कई योजनायें भी बनवायीं.
काकोरी काण्ड की अर्द्धशती पूर्ण होने पर उन्होंने काकोरी शहीद स्मृति के नाम से एक ग्रन्थ भी प्रकाशित किया था.
लखनऊ से बीस मील दूर स्थित काकोरी शहीद स्मारक के निर्माण में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही.

18अक्टूबर 1996को 94 वर्ष की आयु में उनका देहान्त हुआ.पंडित राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ ने उनके साथी, अशफाकुल्ला खान, ठाकुर रोशनसिंह,सचिंद्रनाथ बख्शी, राम कृष्ण खत्री और 14 अन्य लोगों ने वह गाना लिखा जो स्वतंत्रता युग के सबसे ज्यादा मशहूर गीतों में से एक बन गया उसकी कुछ पंक्तियां इस प्रकार है:

“इसी रंग में रँग के शिवा ने माँ का बन्धन खोला,
यही रंग हल्दीघाटी में था प्रताप ने घोला;
नव बसन्त में भारत के हित वीरों का यह टोला,
किस मस्ती से पहन के निकला यह बासन्ती चोला।
मेरा रँग दे बसन्ती चोला….
हो मेरा रँग दे बसन्ती चोला!”

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