कृष्णकुमार सिंह

  • धर्म की जय हो अधर्म का नाश हो

मनचाहा  लिख पाने और

न लिख पाने का दर्द भी अज़ीब है

प्रतिबद्धता का प्रश्न, पेशे से जुड़ कर

निभा पाना बेहद कठिन होता है ,

और इससे भी ज्यादा जटिल होता है

अपनी आत्मा के जीवंत भावों को बचाए रखना .

यह युगीन परिवर्तन नहीं तो और क्या है ?

जहाँ सूरज को उसकी तपिश और

चाँद को उसकी शीतलता से परखा नहीं जाता !

एक को सिर्फ आग का गोला और दूसरे को

अंतरिक्ष का पड़ाव मनाते है लोग

अद्भुत सचमुच अद्भुत तब्दीली

आ गयी है अब लोगों की सोच में

सच्चाई उस कुनैन की तरह है

जिसे या तो मलेरिया का बीमार अपनाता है

या फिर कोई संस्कार जड़ित बिगडेल आत्मा .

एक बात यह भी गांठ बांध लो भाई

जीवित देहों को रास नहीं आती अब

धर्मग्रंथों की तेजाबी नसीहतें

आम राय अब यह बन चली है

ये सारे संस्कार सिर्फ मुर्दों के लिए हैं ,

इसे जांचने मर्दुमशुमारी की जरुरत नहीं ,

बस इतना समझ लीजिये

इस देश की धर्मप्राण या धर्मभीरु जनता को हांकने

कोई सच्चा संत या महात्मा आगे नहीं आता

बल्कि कुछ कालनेमियों के जिम्मे ही

सौंप दिया जाता है यह गुरुतर दायित्व

चाहे वे मठाधीश हों या फिर

चन्द्रास्वामी जैसे राजनैतिक संत .

अयोध्या से ले कर दिल्ली तक ये सिर्फ अपने आकाओं के ही

मंसूबों के पुल बांधते अघाते नहीं

जनमत का ढिंढोरा पीटने में भी ये

नए नए गुरों का इस्तेमाल कर

चंडी के चुम्बकीय आकर्षण के जरिये ,

मीडिया के उफनते फनों को साधते हैं

और फिर प्रचारतंत्र की दिशा मोड़ते हैं

देखते ही देखते एक सुलगता ज्वालामुखी

मुर्दों के टीलों में बदल जाता है

और चारों ओर सनसनाती है , गूंजें

धर्म की जय हो अधर्म का नाश हो !

…………..

कवि परिचय ; – जीवन को कुछ अलग अंदाज में जीने की प्रतिबद्धता लिए संघर्षरत रहना ही जिनकी पहचान भी थी और नियति भी रही . ताउम्र अपने आसपास की दबी सच्चाइयों को उकेरने का हौसला लिए सामान्य व्यक्ति के अंतर्द्वंदों और अनुभूतियों के रेशे रेशे को बुनने का संकल्प ही इनकी शिल्पगत कसौटी रही . इसी क्रम में तथ्यों को पत्रकारिक डिस्पेचों के बूते जीवंत बनाना भी इनके लेखन का मकसद रहा . आजीविका के लिये पत्रकारिता को जिया भी और उसके पैबन्दों को सिया भी है . यही इनकी सोच , सामर्थ्य और शिद्दत की तपोभूमि भी रही और इनके  कर्मठता की समिधा भी ….!

जन्म :- 1948 में छत्तीसगढ़ के सीमा पर बसे गाँव बोरतालाब ( राजनांदगांव) में

निधन :- 8 फरवरी 2014

शिक्षा : एम ए , बी जे

प्रकाशन : जीवन भर रोज अखबारों के लिये लिखते रहे , अपना काव्य संकलन जीवन की संध्या में देख सके :- एक अदद हिंदुस्तान को जीते हुए .

सम्प्रति :- जनसत्ता, नवभारत , हरिभूमि , नईदुनिया के विभिन्न संस्करणों नईदिल्ली , रायपुर , बिलासपुर , ग्वालियर में कार्यरत रहे . विगत 8 फरवरी 2014 को निधन

छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता और साहित्य से निकटतम सम्बन्ध रहा , अपने उसूलों के पक्के इन्सान थे जो जीवन भर अपनी गर्दन ऊँची करके ईमानदारी से अपना कार्य समाज चिंतन के साथ करते रहे और कभी भी अपने स्वाभिमान और विचारधारा से समझौता नहीं किया . जनवादी लेखक संघ , रायपुर से दशकों तक जुड़े रहे .

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