(अनिल मालवीय)
किसी भी देश का विकास तभी हो सकता जब सारे समाज के लोग बराबर से शरीक हो। यदि इसमें कोई समाज इस बात

को गंभीरता से नहीं लेता तो वह पिछड़ता चला जाता है । यह वास्तविकता मुस्लिम समाज में साफ देखी जा सकती है । इसके कई कारण हैं । पहला सबसे बड़ा कारण की समाज के अलंबरदार ने हमेशा अपनी आवाम से अलग पहचान बनाने पर जोर दिया। चाहे बोली का मामला हो, पहनावे का या खान-पान, रंग में, यहां तक की जानवरों तक में बंटते रहे । इसका असर यह हुआ कि जो लोग दूसरे समाज से दूर रहे वे पिछड़ते चले गए और जो लोग
जरा भी घुले मिले वे अपने समाज में औरों के मुकाबले आगे बढ़ते गए । बानगी के तौर पर इस समाज के कलाकारों, नेताओं, व्यापारियों, साइंटिस्टों, इंजीनियरों आदि की तरक्की को देख सकते हैं ।

लोगों की दूरी का फायदा अलंबरदारों को मिला । वे जमात की कट्टरता का फायदा उठाये रहे हैं । समय -समय पर वे सत्ता के खिलाफ इसका प्रयोग भी करते रहे । इन अलंबरदार ने नई सोच को तरजीह देने की जगह उसकी मुखालफत पर ज्यादा जोर दिया। मसलन, जब सर सैय्यद अहमद ने इन्हें अंग्रेजी पढ़ने से लेकर साइंस आदि पढ़ने की बात कही तो उनका पुरजोर विरोध हुआ। समय के साथ उनकी कही बात को समाज के लोगों ने गंभीरता से लिया और एक तबका वहां तालीम ले रहा है । समाज के रूढ़ीवादी सोच रखने वाले आकाओं की वजह से इस समाज के लोग लंबे समय तक टाट के पर्दे और अल्युमिनियम के बर्तन का इस्तेमाल करते रहे । ये तो भला हो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई का जिनके कार्यकाल में खाड़ी देशों का वीजा खोला गया और उसका लाभ मुस्लिम समाज को मिला और मिल रहा है ।

आज जो भी समृद्धि इस समाज में दिख रही है उसे बाजपेई जी देन कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी । पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में कंप्यूटर की तालीम के वक्त भी मुस्लिम गुरुओं ने विरोध किया था । बहुत देर बाद इसका लाभ इस समाज के लोगों को नज़र आया। हालांकि नसबंदी , से लेकर तीन तलाक पर आज भी वहीं खड़े हैं ।जहाँ पहले थे । पोलियो जैसी बीमारी से निजात दिलवाने के दो बूंद पिलाने का विरोध भी साफ देखा गया । अब कोरोना वाइरस को रोकने के मामले में भी जब लॉकडाऊन की बात आई है तो भी इस समाज के बहुत से लोग पालन नहीं कर रहे हैं । इसका खामियाजा समाज को भुगतना पड़ रहा है ।

यही तमाम कारण हैं कि बीते कुछ सालों से मुस्लिम समाज लगातार अन्य लोगों से कटता जा रहा है । समाज के नेता सिर्फ अपने हित का ख्याल रख रहे हैं । पूर्व राष्ट्रपति कलाम साहब से भी इस समाज ने कुछ नहीं सीखा । आज भी इस समाज में प्रगतिशीलता नेताओं का अभाव है ।यदि इस समाज ने समय रहते अपने अंदर व्यापक परिवर्तन नहीं किया तो आने वाले दिनों में इसका बड़ा इसकी युवा पीढ़ी को भुगतना पड़ सकता है । क्योंकि इनकी इसी कमजोरी का संघ और उससे जुड़े संगठनों ने उठाया है और आगे भी उठाये रहेंगे ।

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