काम बंद हो जाने से प्रवासी मजदूर सैकड़ों -हजारों किमी दूर स्थित अपने-अपने घरों के लिए पैदल, साइकल, रिक्शा-ठेला जिसको जो मिला उसमें सवार होकर निकल पड़ा। कुछ पैदल ही जाने लगे। परसो ही यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि किसी भी दशा में मजदूर पैदल न आएं। घर जाने के लिए उन्हें वाहन उपलब्ध कराए जाएंगे और कल रात को ही मुजफ्फरनगर में पैदल घर जा रहे मजदूरों को बस ने कुचल दिया। इसका जिम्मेदार कौन है, इस पर अब तमाम बहस होंगी लेकिन मजदूरों की जान अब वापस नहीं आएगी।

लखनऊ(एजेंसी):- लंबे समय तक शहरों में फंसे मजदूर अपनों के बीच पहुंचकर सुकून में थे लेकिन 42 साल की जयंती उपाध्याय के लिए यह सफर किसी मनहूस साये की तरह रहा जिसने उनके अपनों को ही उनसे छीन लिया। सफर के दौरान ही जयंती ने अपने भतीजे और पति को हमेशा के लिए खो दिया। जयंती की आंखों के सामने ही बस से गिरकर उनके भतीजे की मौत हो गई। जबकि ट्रेन में सोते वक्त उनके पति ने दम तोड़ दिया।

जयंती को मोबाइल चलाना नहीं आता था और वह मुंबई-बस्ती श्रमिक स्पेशल ट्रेन में छह घंटे तक अपने पति के शव के साथ ही बैठी रहीं। उन्हें यह भी नहीं पता था कि उनका पति कोरोना पॉजिटिव था। जयंती कुछ महीने पहले ही रोजी-रोटी के लिए अपने पति के साथ मुंबई चली गई थीं। उनके पति विनोद (44) गेटवे ऑफ इंडिया में फोटोग्राफर थे। विनोद के स्वैब टेस्ट में कोरोना पॉजिटिव निकलने के बाद जयंती और उनके परिवार के 9 सदस्यों को अयोध्या में क्वारंटीन कर दिया गया है।

भतीजे को आखिरी बार न देख पाने का गम
जयंती ने बताया कि उनके पति विनोद दिल के मरीज थे और अपने भतीजे को आखिरी बार न देख पाने के चलते लगातार रोए जा रहे थे। रात में सोते वक्त ही उनकी मौत हो गई लेकिन ट्रेन में न ही टीटीई और न ही आरपीएफ का कोई जवान उनकी मदद के लिए आया।

लॉकडाउन में उनका धंधा चौपट हो गया था और पैसे भी खत्म होने वाले थे। अयोध्या के गोसाईंगज निवासी विनोद ने पैसे खत्म होते देख घर लौटने का फैसला किया। जयंती का भतीजा विकास पांडेय (29) भी उनके साथ जाने को तैयार हुआ।

बस में चढ़ते वक्त फिसल गया था पैर
जयंती ने बताया, ‘सोमवार को दोपहर मुंबई से 1.35 की ट्रेन पकड़ने के लिए हम कोलाबा में बस में चढ़े लेकिन विकास चढ़ते समय ही बस से गिर गया। हम नीचे जाने के लिए उतरे लेकिन पुलिस ने हमें रोक दिया। जब हम ट्रेन के लिए इंतजार कर रहे थे तो एक पुलिसकर्मी ने बताया कि ब्रेन हेमरेज के चलते विकास की मौत हो गई। हमने दोबारा वापस जाने की इजाजत मांगी लेकिन मना कर दिया गया।’

सफर में बेचैनी शुरू हुई, सोते वक्त हो गई वक्त
जयंती ने कहा कि विनोद दिल के मरीज थे और इस खबर से बुरी तरह टूट चुके थे। सफर शुरू होने के कुछ ही समय बाद उन्हें बेचैनी होने लगी और रात 9 बजे वह सोने चले गए। जयंती ने बताया, ‘अगले दिन सुबह साढ़े आठ बजे मैंने उन्हें जगाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं उठे। मैंने दूसरे यात्रियों से मदद मांगी जिन्होंने विनोद को उठाने की कोशिश की लेकिन उनके शरीर में कोई हरकत नहीं हुई।’

ट्रेन में न टीटीई न आरपीएफ
जयंती ने बताया, ‘न ही वहां कोई टीटीई या आरपीएफ जवान था और न ही ट्रेन किसी स्टेशन पर रुकी कि मैं मदद मांग सकती। जयंती ने एक दूसरे यात्री से विनोद के फोन से उनके बड़े भाई वीरेंद्र को कॉल करने को कहा जो लखनऊ में होमगार्ड हैं। वीरेंद्र ने आरपीएफ को सूचित किया और फिर जीआरपी प्राइवेट ऐंबुलेंस से चारबाग रेलवे स्टेशन पहुंची।’

मजदूर की मौत पर परिवार ने नहीं किया आगाह
विनोद के शव को अटॉप्सी के बाद उनके परिवार को सौंप दिया गया और बाद में दाह संस्कार कर दिया गया। एक परिजन ने बताया, ‘विनोद की तबीयत खराब होने पर उन्हें छह घंटे तक कोई चिकित्सा सुविधा नहीं मिली। उत्तर रेलवे के डिविजनल रेलवे मैनेजर संजय त्रिपाठी ने कहा, ‘ट्रेन में मेडिकल सुविधा का कोई प्रावधान नहीं है लेकिन इमर्जेंसी के केस में आरपीएफ और जीआरपी जवान तैनात रहते हैं। हालांकि प्रवासी मजदूर की दुर्भाग्यवश मौत के मामले में परिजनों ने ट्रेन में किसी जवान को अलर्ट नहीं किया। ट्रेन में चढ़ने से पहले यात्रियों की जांच हुई थी और उतरने पर भी स्क्रीनिंग हुई थी।’

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