मैं सौ लोगों से पूछूं तो उसमें से नब्बे लोग यही कहेंगे कि गोह या  विषखोपड़ा जहरीला होता है। मैंने तो बचपन में ये कहानी भी सुनी है कि सांप का काटा तो पानी मांग भी लेता है। लेकिन, विषखोपड़ा का काटा हुआ पानी नहीं मांगता है। खासतौर पर अगर विषखोपड़ा ने काटने के बाद पेशाब कर दिया है तो इंसान का बचना नामुमकिन है। लेकिन, असल बात तो यह है कि विषखोपड़ा जरा भी जहरीला नहीं है। हमारी अज्ञानत, अंधविश्वास और लालच इस प्राणी की जान के दुश्मन बन गए हैं। हालांकि छत्तीसगढ़ और बस्तर के ग्रामीण इलाकों मे इसका चोरी छिपे शिकार करके लोग शौक से इसका मानस खाते हैं .

विषखोपड़ा एक प्रकार की बड़ी छिपकली है। जिसे विषखोपड़ा, गोहेरा, गोयरा, घ्योरा, गोह, बिचपड़ी आदि नामों से जाना जाता है। विशेषज्ञ इसे मानीटर लिजर्ड कहते हैं। इस प्रकार की छिपकलियों की यूं तो 70 के लगभग प्रजातियां दुनिया भर में पाई जाती है लेकिन हमारे देश में इनकी चार प्रजातियां मिलती हैं। ये हैं बंगाल मानीटर लिजर्ड, येलो मानीटर लिजर्ड, वाटर मानीटर लिजर्ड और डिजर्ट मानीटर लिजर्ड। इनमें से बंगाल मानीटर लिजर्ड सबसे ज्यादा दिखता है। 

आमतौर पर लोग विषखोपड़ा या गोह को बेहद जहरीला मानते हैं। लेकिन, इस प्राणी के पास बिलकुल भी जहर नहीं है। यह सरीसृप है। यानी ठंडे रक्त वाला। इसलिए इसे धूप सेंकने की जरूरत पड़ती है। इसके मुंह में विषदंत नहीं होते हैं और न ही विष की थैली। यह अपने शिकार को चबाकर नहीं बल्कि निगलकर खाता है। मनुष्यों के बीच घिर जाने पर भी इसकी कोशिश किसी तरह से निकल भागने की होती है। लेकिन, कई बार बहुत ज्यादा छेड़छाड़ करने पर यह काट भी सकती है। हालांकि, उसकी यह बाइट जहरीली नहीं है। पर उससे बैक्टीरियल इंफेक्शन हो सकते हैं। ऐसे जीवों के साथ कभी भी छेड़छाड़ नहीं करें। वे कहीं दिखें तो उन्हें निकलने का सुरक्षित रास्ता दें, ताकि वे अपने पर्यावास में जा सकें। अगर कभी जरूरत पड़े भी तो विशेषज्ञों की राय लें। खुद उन्हें पकड़ने की कोशिश करना ठीक नहीं। 

हमारी अज्ञानता, अंधविश्वास और लालच के चलते भारत में पाई जाने वाली मानीटर लिजर्ड की चारों प्रजातियां खतरे में हैं। इनकी खाल का व्यापार किया जाता है। इनके खून और मांस का इस्तेमाल कामोत्तेजक दवाओं को बनाने में किया जाता है। नर विषखोपड़ा के जननांगों का कारोबार सबसे ज्यादा प्रमुख है। इस प्रकार का अंधविश्वास है कि इसके जननांगों को सुखाकर चांदी के डिब्बे में रखने से घर में लक्ष्मी आती है। यह अंधविश्वास लाखों मानीटर लिजर्ड की जान हर साल लेता है। इससे जुड़ा हुआ सबसे ज्यादा खौफनाक पहलू यह है कि जननांग निकालते समय गोह को जिंदा होना चाहिए।

विशेषज्ञों का मानना है कि सोची-समझी साजिश के तहत गोह या विषखोपड़ा को जहरीला बताया जाता है। ताकि, उनका आसानी से शिकार किया जाए और आम जनता उनसे घृणा करती रहे। तमाम लोगों के पास विषखोपड़ा के काटने के किस्से हैं और वे बिना ज्यादा छानबीन किए इन कहानियों को बेहद प्रामाणिक तरीके से सुनाते हैं। इनमें बहुत ज्यादा पढ़े-लिखे लोग भी शामिल हैं। 

स्तपायी जीव और सरीसृपों में बहुत अंतर है। सरीसृप अंडे से पैदा होते हैं। उनके शरीर पर बाल नहीं होते हैं। वे ठंडे खून वाले होते हैं। उनके कान अंदर होते हैं। दुनिया के बारे में जानने समझने के लिए सांप जैसे सरीसृप अपनी जीभ को बार-बार बाहर निकालते रहते हैं। मानीटर लिजर्ड भी अपनी जीभ को बार-बार बाहर निकालकर दुनिया का अंदाजा लेती है। इसके चलते भी लोग उसे घृणा करते हैं और जहरीला समझते हैं। कहीं वो दिखे तो उसे मार देते हैं। प्राकृतिक पारिस्थितिकीय संतुलन के लिए इन प्राणियों को बचाना  बेहद जरूरी है .

माना जाता है कि हर साल इन तमाम बातों के चलते हर साल पांच लाख सो ज्यादा गोह को मार दिया जाता है। जबकि, ये प्राणी खेतों से हजारों कीड़े-मकोड़े और जीवों को खाकर खेती किसानी में मदद करते हैं। वे मददगार प्राणी हैं। हमारे दुश्मन नहीं हैं। 

बल्कि यह कहना ज्यादा ठीक होगा कि हम उनके दुश्मन हैं…

विषखोपड़ा की खोपड़ी में जहर नहीं है। दरअसल  जहर इंसान की खोपड़ी में ज्यादा है…

(पोस्ट में इस्तेमाल की गई फोटो वन्यजीव विशेषज्ञ व फोटोग्राफर अरविंद यादव के हैं इस लेख की बहुत सारी जानकारियां भी उन्हीं से प्राप्त हुई है। फोटोग्राफ इंदौर के महू में खींचे गए हैं। आभार)

2 COMMENTS

  1. Bich kapda ko kaatne se kya hota hai kya vah jahreela hota hai aur gohe ko kaatne se kya hota hai

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