• पूरी दुनिया में पूंजीवाद अपने क्रूर अमानवीय दौर से गुजर रहा है।
  • समर्पण किसी व्यक्ति, किसी पार्टी के प्रति न होकर देश के प्रति होना चाहिए।

गणेश कछवाहा
रायगढ़:- सत्ता व पूंजी की हवस इंसान को हैवान बना देती है।पूंजीवाद में इंसानियत, मानवता,संगीत,कला,साहित्य, संस्कार,सभ्यता,नैतिकमूल्य ,आदर्श,सिद्धांत, सामाजिक रिश्ते – नाते,संवेदनाएं सबकुछ बाज़ार में बिकने वाली वस्तु में तब्दील हो जाती है। बाज़ार बहुत क्रूर व निर्दयी होता है। उसका एक मात्र लक्ष्य होता है येन केन प्रकारेन मुनाफा कमाना एवं पूंजी इकट्ठी करना।वह तो कफ़न में भी मुनाफा ढूंढ़ता है।

पूरी दुनिया में पूंजीवाद अपने क्रूर अमानवीय दौर से गुजर रहा है। मनुष्यो की मौतें, आम गरीब ,वंचित जनता की भूख, पीड़ा,तड़फ,तकलीफ,समस्याएं सत्ता व सियायत के लिए चिंता का विषय नहीं बनती।उनका एक मात्र लक्ष्य होता है पूंजीपतियों के अधिकारों की सुरक्षा तथा पूंजी को समृद्ध करना। कोरोना वैश्विक संकट व त्रासदी काल में भी सियासत की चिंता गरीब मजदूर व आम जनता के प्रति न हो कर धन्ना सेठों और पूंजीपतियों के लिए होती है।वे इस विपदा और त्रासदी को भी अवसर में बदलने की वकालत करते हैं। काफी अफरा -तफरी ,भयानकअसंतोष व चौतरफा जनदबाव के कारण सरकार जनहितैषी होने का मुखौटा ओढ़कर सरकारी खजाने को भी गरीब,मजदूर किसान एवं आम जनता के नामपर भारी भरकम पैकेज की आड़ में धन्ना सेठों,पूंजीपतियों व कार्पोरेट्स घरानों को ही लाभ पहुंचाने का बेशर्म कोशिश करती है। प्रबुद्धजनों के सवालों पर सरकार मुंह छिपाती नज़र आती है।और मजदूर,किसान गरीब आम जनता सड़कों पर, आंसू बहाते , कराहते और मौत को गले लगाते बेबस दिखाई पड़ते हैं।आज यह दर्दनाक खौफजदा दृश्य पूरा देश देख रहा है और मर्माहत है।

लगभग 80 से ज्यादा मौतें ट्रेन में भूख प्यास व अव्यवस्था से हो जाती है। जो ट्रेनें पटरी पर,सिग्नल के माध्यम से चलती हैं वो भी अपना रास्ता भटक जाती हैं।कई गरीब मजदूर व असहाय लोग भूख से,कई पैदल सड़क में, कई सदमे में,कई ट्रेन से पटरी में कटकर और कई ट्रेन के अंदर ही मर जाते हैं। कोई फांसी का फंदा लगा लेता है। इसके बावजूद सरकार , राष्ट्रवाद आदर्श व नैतिकता के नाम पर स्तीफा तो छोड़िए शर्म भी महसूस नहीं करती । व्यवस्था को सुधारने के बजाय उन पीड़ितों असहाय जनता को ही मशविरा दिया जाता है कि वे अपनी देखभाल करें। सरकार को बचाने के लिए सत्ता पक्ष के समर्थको का समूह सरकार से सवाल जवाब न कर तमाम उलजुलुल तर्को कुतर्को के सहारे पीड़ितों पर ही सवाल खड़ा करते हैं।और दोषारोपण विपक्ष पर। उन्हें यही समझ में नहीं आता कि वे देश को बचा रहे हैं या पार्टी को या किसी व्यक्ति को? कोई व्यक्ति या पार्टी नहीं देश सर्वोपरि होता है।हमारा समर्पण किसी व्यक्ति, किसी पार्टी के प्रति न होकर देश के प्रति होना चाहिए।यही सच्चा राष्ट्र प्रेम व देश भक्ति है।

सत्ता,पूंजी और प्रतिष्ठा की लालसा में अपने ही चालाकी पूर्ण कर्मो सें अपने व्यक्तित्व को इतना विकृत कर लेता है कि वह अपने ही चेहरे को देखने से डरने लगता है ।आइना ,जो चेहरे की सच्चाई वास्तविकता से परिचित कराता है। जिसे देखकर अपने चेहरे को सुंदर बनाया जाता है, वही आइना ही उसका मूल शत्रु हो जाता है। वह इतनाखौफ ज़दा हो जाता है कि आइना देखने से ही उसे डर लगने लगता है।इसीलिए हर वह शख्स जो सही सलाह या मशविरा देने की कोशिश करता है उसे वह अपना शुभचिंतक नहीं, दुश्मन समझने लगता है।वह उसका सबसे बड़ा शत्रु बन जाता है। और इन्हीं कमजोरियों के कारण, छद्म प्रशंसकों अवसरवादियों, चापलूसों व असमाजिक तत्वों ,स्वार्थियों , चाटुकार धन्ना सेठों व पूंजीपतियों के बीच घिर जाता है ।फिर वही उसकी दुनिया हो जाती है।वह केवल उनकी कठ पुतली बनकर रह जाता है।और वे उसका उपयोग अपने हित में एक मोहरे के रूप में करते हैं।

अपना लाभ व स्वार्थ सिद्ध करने के लिए उसे भगवान से भी ऊंचा दर्जा देकर, ब्रह्माण्ड या विश्व का सबसे महान व्यक्ति बताकर,उसकी महिमा मंडित कर ,कब उसे बाज़ार का हिस्सा बना देते हैं, इंसान से हैवान बना देते हैं उसे खुद ही खबर ही नहीं होती है।वह इसी मुगालते में जीता रहता है कि वह विश्व का सबसे महान व्यक्ति है क्योंकि वह गिरोह या मंडली एक क्षण के लिए भी उसे उस महिमा मंडन के भ्रम जाल से बाहर निकलने ही नहीं देती है ।उसके विष्ठा को भी मिष्ठान बताने में जरा सा भी संकोच या शर्म महसूस नहीं करती।

कोरोना वैश्विक महामारी,जीवन और मृत्यु का भय, सिसकियों,आसुओं और मौतों के भयावह दौर में भी जीवनयापन की आवश्यक वस्तुओं ,दवाओं , चिकित्सीय संसाधनों,तक में भ्रष्टाचार चरम सीमा पर हो जिसमें सियासत के लोग भी शामिल रहते हों। क्या यह हैवानियत से भी ज्यादा खतरनाक नहीं है? क्या यह मानवता को शर्मशार नहीं करती? और देश की जनता को संयम, धैर्य, तपस्या, त्याग, बलिदान, आदर्श,विश्वगुरु,महाशक्ति, स्वदेशीऔर आत्मनिर्भरता आदि के भारी भरकम शब्दों से विभूषित कर राष्ट्रवाद का ज्ञान देना। जो कितने महत्वपूर्ण अर्थों को अर्थ देता है जिसे समझते समझते जीवन ही बीत जाता हैं।तबतक उसके अर्थ भी बदल जाते हैं।अपने आपको और राष्ट्र को धोखा देना नहीं है?

देश को सामूहिक राष्ट्रीय एकजुटता बनाने की जरूरत है।तभी हम इस संकटपूर्ण चुनौतियों का सामना कर सकते हैं। जो किसी व्यक्ति,नेता या पार्टी पर केंद्रित या समर्पित न हो ।सबका समर्पण और लक्ष्य केवल और केवल नीतियों पर हो जो राष्ट्र की समृद्धि व उन्नति के लिए समर्पित हो।

(लेखक कर्मचारी नेता, सामाजिक कार्यकर्ता और विचारक लेखक हैं ये उनके निजी विचार हैं।)

 

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