(अनिल मालवीय)
लखनऊ:- केंद्र सरकार घरेलू नीति से लेकर विदेश नीति पर लगातार फेल होती नजर आ रही है । घरेलू नीति में रोजगार,

मंहगाई या आर्थिक विकास हर मोर्चे पर फिसड्डी साबित हुई है । इसी तरह विदेश नीति पर नज़र डाले तो केंद्र सरकार का बुरा हाल है । इस विफलता को भले ही केंद्र सरकार स्वीकार करें या न करे, परंतु सच्चाई यही है । स्थिति यह है कि एक -एक करके हर पड़ोसी देश भारत के से दूर होते चले जा रहे हैं ,उससे यह आभाष और पक्का हो गया है । पाकिस्तान, चीन, नेपाल, बांग्लादेश के बाद भूटान ने भी भारत का सिर दर्द बढ़ाना प्रारंभ कर दिया है । भूटान ने आसाम के बक्सा गांव के किसान सिंचाई के लिए जिस डोंग नदी के पानी का इस्तेमाल करते थे उसे भूटान ने रोक दिया है । इससे छह हजार किसान प्रभावित हुए हैं । इससे पूर्व में भूटान ने भारतीय पर्यटकों से एक हजार रुपए अतिरिक्त वसूलने का कदम उठाने का काम किया है । ये तो बात हुई भूटान की । अब नजर डाले नेपाल पर। वह लगातार भारत विरोधी गतिविधियां कर रहा है । भले ही हम नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी और चीन को दोषी ठहराएं वह अलग बात है ।

लेकिन गंभीरता से ध्यान दें तो मधेसी आंदोलन के समय जिस तरह की हमारी नीतियां थी उसके कारण नेपाल हमसे दूर जाने लगा । कहने को तो हम नेपाल को अपना छोटा भाई बताते हैं परंतु, हमारे शासकों ने छोटे भाई वाला सलूक नहीं किया । नोटबंदी के समय भी भारत सरकार ने वहां उत्पन्न हई कठिनाईयों को नजरंदाज किया था । जबकि, इस मुद्दे पर नेपाल के प्रधानमंत्री दिल्ली बात करने पहुंचे थे लेकिन उन्हें निराश लौटना पड़ा। अब लिपुलेख,कालापानी को लेकर भी नेपाल को कॉन्फिडेंश में लेने की कोशिश ही नहीं की गई जिसका परिणाम सबके सामने है । इसी तरह हमारी सरकार चीन को लेकर भी गलतफहमी पाले बैठी थी। परंतु इस बात का जवाब नहीं दे पा रही है कि उससे किसने कहा था चीन पर इतना विश्वास करे?

दरअसल, केंद्र सरकार और भाजपा नेता यह मानकर बैठे हैं कि एक किलो अक्ल उनके पास और तीन पाव में दुनियां । सत्तारूढ़ नेताओं ने बांग्लादेशियों को घुसपैठिया कहकर कई जगह आंदोलन भी किये, परंतु स्वयं ही एक बांग्लादेशी को मुख्यमंत्री बना दिया । ये दोहरा मापदंड उनके मुखौटे को तार-तार कर रहा है ।वे घरेलू नीति की तरह विदेशी देशों से शुरू से भी दबाव की राजनीति बनाने की कोशिश करते रहे हैं । किसी की न सुनना बस मन की करना ने आज देश को इस मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है । वे बात बिगड़ने पर सारा दोष दूसरे पर थोपना चाहते हैं । यही काम उन्होंने घरेलू स्तर पर भी किया है । उन्हें सलाह सुनना तो बिलकुल ही नागवार लगता है । वे हर सलाह देने या विरोध करने वालों को दुश्मन की नजर से देखते हैं । वे देश को पार्टी की तरह चला रहे हैं ।

उनकी यह आदत उन्हें विरासत में अपने मूल संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से मिली है । वे दोष स्वीकार करने की जगह दूसरो को अपराधी ठहराने में और चुप करवाने में पूरी जान लगा देते हैं और इसके लिए वे ट्रोलर्स से लेकर मीडिया के एक दबके की मदद लेते हैं जो घटिया स्तर उतर जाते हैं । इससे भले ही सरकार और भाजपा को तात्कालीन फायदा पहुंचे परंतु देश को भारी नुकसान पहुंच रहा है । वे नये जुमले गढ़कर जनता को गुमराह कर रहे हैं । भारत को सुपर पावर बनाने के लिए सबका साथ सबका विकास का नारा रटने से नहीं बल्कि करके दिखाने से होगा । हम सब साथ हैं। यदि फिर भी समझ न आए तो ईश्वर से सद्बुद्धि की प्रार्थना की की जा सकती है ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here