अनिल मालवीय
लखनऊ(इंडिया न्यूज़ रूम) :- बिहार में आसन्न विधानसभा को देखते हुए विभिन्न राजनैतिक दलों ने तैयारियां तेज कर दी है । कहीं

वर्चुअल रैलियां का सहारा लिया जा रहा है तो कहीं नेताओं ने पार्टी बदलने का काम प्रारंभ कर दिया है । कोरोना, बेरोजगारी और बाढ़ संबंधी परेशानियों को नजरंदाज करके मुख्य धारा के मीडिया ने अपनी सुई जानबूझ कर अभिनेता सुशांत राजपूत पर अटकी दी है ताकि बिहार की जमीनी हकीकत पर सवाल न उठाए जा सके। पर्दा डालने की इस प्रथा के चलते बिहार लगातार पिछड़ता जा रहा है । इसकी चिंता न तो वहां के नेताओं को है और ना ही वहां के बुद्धिजीवियों को । लंबे समय से कथित ‘सुशासन ‘की मार झेल रहे बिहारवासियों को जहां कोरोना ने बेहाल कर दिया वही बाढ़ ने बेबस। देश के सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बिहार के श्रमिक इतने बेबस होंगे इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है । अपनी आँखो के आगे अपने पशुओं को तिल-तिल कर मरते देखना और अपने परिवार को राष्ट्रीय राजमार्ग पर रहने को मजबूर देखकर उनकी जीवटता उन्हें भीतर ही भीतर तोड़ने पर आमादा है । परंतु, वोटों की फसल काटने की तैयारी कर रहे राजनेता पीड़ित लोगों के साथ खड़े होने की जगह दौरा करने से कन्नी काट रहे हैं ।

विकास की बानगी पुलों के गिरने से की जा सकती है वे उद्घाटन से पहले ही दम तोड़ते नजर आ रहे हैं । इसके चलते सुशासन बाबू से लेकर राष्ट्रीय भक्त पार्टी के नेता फीता काटने की रस्म भी पूरी नहीं कर पा रहे हैं । ‘शाटगन ‘से लेकर लालझंडे के अलंबरदार ‘खामोश’ हैं । मधेपुरा के रहने वाले शिव शंकर कहते हैं कि बिहार के विकास की फिक्र किसी को नहीं है । यहां जाति का जहर इतना तीखा है कि उसके सामने सभी समस्याएं नगण्य हैं । नेता भी इसे ही हवा देते हैं । वे कहते हैं कि नेशनल हाईवे से ही पूरे मधेपुरा की विकास की तस्वीर आंकी जा सकती है । व्यापार, उद्योग, स्वास्थ्य आदि पर चर्चा करना बेमानी है । क्या सत्ता क्या विरोधी सब के चेहरे एक रंग से रंगे हैं । जनता जागने को तैयार नहीं है ।

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