जनवादी लेखक संघ दुर्ग ने मनाया गीतकार शैलेन्द्र का जन्म शताब्दी समारोह

दुर्ग – इस सदी के महान जनवादी कवि और विश्व विख्यात फिल्मी गीतकार शैलेन्द्र के जन्म के सौ वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर जनवादी लेखक संघ दुर्ग और महामाया बुद्ध विहार कल्याण समिति कर्मचारी नगर दुर्ग के संयुक्त तत्वावधान में गीतकार और कवि शैलेन्द्र के कृतित्व और व्यक्तित्व पर आधारित एक वैचारिक गोष्ठी का आयोजन किया गया।

महामाया बौद्ध विहार कर्मचारी नगर दुर्ग के सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में उपस्थित प्रसिद्ध साहित्यकार और आलोचक अजय चंद्रवंशी ने फिल्म निर्माता शैलेन्द्र की कृति “तीसरी कसम” पर केन्द्रित अपना विहंगम वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि गीतकार शैलेन्द्र सौ फिल्मों में आठ सौ गाने लिखकर जितना सफल हुए उतना सफल फिल्म तीसरी कसम बनाने को लेकर नहीं हुए,यह एक बड़ी त्रासदी से कम नहीं है।

कार्यक्रम में उपस्थित  साहित्यकार और वैज्ञानिक चिंतक  शरद कोकास ने कवि शैलेन्द्र के जनवादी और क्रांतिकारी रुझान की कविताओं को प्रस्तुत करते हुए उपस्थित श्रोताओं को शैलेन्द्र के बेहतर कवि होने का परिचय दिया।

प्रसिद्ध समीक्षक  कैलाश बनवासी ने गीतकार शैलेन्द्र के गीतों में “प्रेमाभिव्यक्ति और सामाजिक चेतना” विषय पर वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि गीतकार शैलेन्द्र की तमाम रचनाओं में लोक जीवन की सहज और निर्मल प्रेम की भीनी -भीनी महक दिखाई देती है वहीं उनके गीतों में सामाजिक जन चेतना को उद्वेलित करने वाली विद्रोही तत्व मौजूद रहे हैं।

जाने-माने व्यंग्यकार तथा कार्यक्रम के मुख्य अतिथि  विनोद साव ने गीतकार शैलेन्द्र पर अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि गीतकार शैलेन्द्र एक महान जनवादी कवि और लेखक के रुप में उभरे थें जिन्होंने अपने भोगे हुए जीवन यथार्थ को बड़ी बेबाकी से अपनी रचनाओं में लिखा और लोगों को सोचने के लिए विवश किया।

उन्होंने कहा कि “मैंने शैलेंद्र के गीतों को ताशकंद में वहां के लोगों से सुना. शैलेंद्र ने गीतों के माध्यम से समता मूलक भारतीय समाज के निर्माण के अपने सपने और अपनी मानवतावादी विचारधारा को अभिव्यक्त किया और भारत को विदेशों की धरती तक पहुंचाया.”

प्रसिद्ध शायर मुमताज ने सवाल उठाते हुए कहा कि गीतकार शैलेन्द्र ने आठ सौ से ज्यादा कालजयी गीतों को लिखा लेकिन उनको राष्ट्रीय स्तर का उचित सम्मान क्यों नहीं मिला? मुमताज ने बताया कि शैलेन्द्र दर असल दलित समुदाय जाटव से आते थे संभवतःइसी कारण उनके साथ ऐसा भयानक भेदभाव किया जाता रहा और आज भी किया जा रहा है जो कि उचित नहीं है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कवि और आलोचक नासिर अहमद सिकंदर ने अपने सारगर्भित भाषण में कहा कि गीतकार शैलेन्द्र की रचनाओं में व्यापक रूप से दलित चेतना का उभार स्पष्ट रूप से नजर आता है। उन्होंने शैलेन्द्र के विभिन्न गीतों का उदाहरण देते हुए बताया कि गीतकार अपनी रचनाओं में किस तरह से भारत के शोषित पीड़ित आम जनता की आवाज को स्पष्ट तौर पर सहज भाव से रखते हैं और भारतीय गीत परंपरा को आगे बढ़ाते हुए चलते हैं।

कार्यक्रम की शुरुआत में कहानीकार और समीक्षक डाॅ परदेशीराम वर्मा ने स्वागत भाषण प्रस्तुत करते हुए उपस्थित अतिथियों एवं श्रोताओं का स्वागत किया।

कार्यक्रम में बहुजन साहित्य पर निरंतर कलम चलाकर समाज को जागृत करने वाले दो साहित्यकारों, के,एल, अहिरवाल और व्ही पी बौद्ध का शाल और पुष्पमाल समर्पित करके उपस्थित साहित्यकारों ने सम्मान किया।

कार्यक्रम में बिलासपुर से पधारे साहित्यकार हरीष पंडाल, डी,पी डहरे, दुर्गा प्रसाद मेरसा का भी पुष्प गुच्छ भेंट करके  सम्मान किया गया।

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में राकेश बंबोर्डे,  विश्वास मेश्राम, संजय भरने, विनोद साव, आर एन श्रीवास्तव आदि ने शैलेन्द्र के गीतों का गायन किया। महामाया बुद्ध विहार कल्याण समिति कर्मचारी नगर दुर्ग के अध्यक्ष  संदीप पाटिल ने अतिथियों एवं श्रोताओं के प्रति आभार प्रकट किया।

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