पी यू सी एल — कार्यवाही का स्वागत, पर विलम्बित न्याय पर सवाल, दोषी अधिकारीगण को दंडित करने की माँग

रायपुर ,    पी यू सी एल की महासचिव सुधा भारद्वाज द्वारा दर्ज की गई शिकायत पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने जाँच उपरान्त इसकी पुष्टि की है कि सुकमा ज़िले के गाँव कोंडासावली, कर्रेपारा और कामरागुडा में सन् 2007 में सलवा जुडूम और स्थानीय एसपीओ ने ही गाँवों में 95 घरों को जलाया और 7 ग्रामीणों की हत्या की थी। आयोग ने इस घटना में पुलिस और प्रशासन के आला अधिकारियों की संलिप्तता को स्पष्ट मानते हुए उस समय की राज्य सरकार को भी कटघरे में लिया है ।आयोग ने राज्य सरकार को अनुशंसा देते हुए कि मृत व्यक्तियों के परिवार वालों को 5-5 लाख रुपए मुआवजा शीघ्र दिया जाये आदेश पारित किया है। इस घटना में मृतकों के नाम हैं – (i) मंडावी भीमा, कोंडासावली (ii) बारसे सुकलू, कर्रेपारा (iii) बारसे नंदा, कर्रेपारा (iv) कुंजाम बोदा, कर्रेपारा (v) सुदाम भीम पि. मगड़ू, परलागट्टा (vi) सुदाम भीम पि. जोगा, परलागट्टा (vii) मीडियम अय्यती, परलागट्टा

सन् 2007 में इस आगज़नी और हत्या की भयावह घटना के बाद उक्त तीनों गाँव के ग्रामीण गाँव छोड़कर चले गये थे। कुछ वर्ष पश्चात्, सलवा जुडूम की मुहीम खत्म होने के बाद जब वे गाँव लौटे तो उन्होंने निर्णय लिया कि वे इस घटना की शिकायत करेंगे और सन् 2013 में उन्होंने सरपंच द्वारा पुलिस थाने में लिखित शिकायत पेश की। परन्तु उस शिकायत पर कार्यवाही करने की जगह, उन गाँव वालों और उनके सरपंच पर ही पुलिस कर्मियों और वहाँ के पूर्व सलवा जुडूम के नेताओं द्वारा हमला हुआ, और एक घटना में एक मृतक की पत्नी को भी मारा गया।

इससे व्यथित हो कर गाँव वालों ने पीयूसीएल की छ्त्तीसगढ़ इकाई से सम्पर्क किया और अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, महासचिव ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को इन गाँवों की ओर से लिखकर शिकायत दर्ज की। आयोग की निगरानी में सुकमा पुलिस ने ग्रामीणों की एफआईआर तो दर्ज की, पर उस पर जाँच फिर भी सही तरिके से नहीं की गई।

इस सब को देखते हुए – कि पहले ही FIR दर्ज करने में 7 साल का विलम्ब हुआ और फिर स्थानीय अधिकारीगण जाँच में भी लापरवाही कर रहे हैं – आयोग ने दिनांक 23.9.2019 के अपने आदेश में कहा कि –
*“आयोग का यह निष्कर्श है कि ये घटनायें पुलिस, राजस्व और जिला सुकमा के अन्य अधिकारियों के संज्ञान में घटना होने के तुरंत बाद आ गई थी, लेकिन पुलिस और ज़िला अधिकारियों ने जानबूझकर इन हत्याओं और आगज़नी की घटनाओं को नज़रअंदाज़ किया।“*
इस जघन्य अपराध में सुकमा ज़िले के अधिकारीगण की संलिप्तता दर्शाते हुए आयोग लिखता है कि –
*“4. वास्तव में, राज्य और ज़िला सुकमा के अधिकारीयों द्वारा सात साल तक इन घटनाओं का संज्ञान नहीं लिया जाना, इस बात को बहुत मज़बूती से दर्शाता है कि यह अपराध सुकमा ज़िले/ राज्य सरकार के अधिकारियों द्वारा ही किया गया है।“*
*“5. इस तरह लम्बी अवधि तक इन घटनाओं का संज्ञान नहीं लेने की जानबूझकर की गयी चूक, इस तथ्य को दृढ़ता से इंगित करता है की ये भयावह अपराध जगरगुंडा बेस कैंप के एसपीओ द्वारा किये गये थे, जैसा कि FIR no. 10/2013 के शिकायतकर्ता द्वारा आरोप लगाया गया है।“*
उक्त FIR पर सही रूप से विवेचना नहीं करना और आयोग के आदेश उपरांत भी अधिकारियों की इस प्रकरण में रुचि नहीं लेने के संदर्भ में आयोग ने इस जाँच को “ कवर अप” घोषित करते हुए लिखा है कि –
*“6. जिस तरीके से पुलिस द्वारा इस मामले की जाँच की जा रही है और जिस तरीके से कोंटा तहसीलदार ने अपनी जाँच की है, उसको देखते हुए यह स्पष्ट है कि राज्य विभागों, और पुलिस और प्रशासन का उद्देश्य इन घटनाओं के बारे में सच्चाई का पता लगाना नहीं अपितु इन अपराधों को छिपाना है। तहसीलदार कोंटा की जाँच रिपोर्ट और विवेचक द्वारा दर्ज बयानों को पढ़कर ज़ाहिर है कि उनका उद्देश्य सत्य को स्थापित करना बिल्कुल भी नहीं है और वह केवल इस घटना का एक कवर अप ऑपरेशन कर रहे हैं।“*

आयोग के इस आदेश का छत्तीसगढ पी यू सी एल स्वागत करता है,और आदेश को जल्द से जल्द अमल कराने की मांग करता है। पर इस बात पर भी चिन्ता व्यक्त करता है कि जब आयोग ने इस बात को मज़बूती से रखा है कि सलवा जुडूम और एसपीओ ने इस जघन्य अपराध को कारित किया है, और पुलिस और प्रशासन के अधिकारीगण इसके कवर –अप में जुटे हैं, तो इन के खिलाफ किसी दांडिक कार्यवाही की अनुशंसा क्यों नहीं दी गई है। बार बार यही देखा जा रहा है कि शासन द्वारा आदिवासियों, दलितों और कमज़ोर वर्ग के विरुद्ध घृणित अपराध किये जाते हैं, और जब वे स्थापित हो जाते हैं , तो पीड़ितों को केवल मुआवज़े से ही संतुष्टी करनी पड़ती है।  छत्तीसगढ़ पीयूसीएल के अध्यक्ष डिग्री प्रसाद चौहान सचिव शालिनी गेरा द्वारा आयोग और राज्य सरकार दोनों से माँग की गई है कि इन अपराधी अफसरों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाये।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के इस आदेश से यह बात भी सपष्ट होती है कि पी यू सी एल महासचिव सुधा भारद्वाज किस प्रकार का और किस के लिए काम करती थी। उनके इसी प्रकार के मानव हितो के लिए काम करने से सरकारी तंत्र व हुक्मरानों को काफी चोट पहुंच रही थी। सरकारी तंत्र तथा हुक्मरानों ने उन्हें अपने रास्ते से हटाने के लिए उन पर झूठे आरोप लगा कर उन्हें जेल में बंद करने का घृणित षड्यन्त्र किया है,ताकी शोषित, पीड़ित, आम जनता की आवाज दब जाए। छत्तीसगढ़ पी यू सी एल मांग करता है कि दलित,आदिवासीऔर मजदूर,किसानों के मानव अधिकारों को सुनिष्चित करने सँवैधानिक कानून के तहत आवाज उठाने वाले सुधा भारद्वाज और अन्य मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को तत्काल रिहा किया जाए

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here