दिल्ली:- दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस मुरलीधर की विदाई समारोह की तस्वीर ऐसे तमाम लोगों के लिए एक सदमा है जिन्हें इस बात की गलतफहमी रहती है कि जितनी बड़ी कुर्सी पर वो पहुंचेंगे, उनकी लोगों के बीच उतनी ही इज्ज़त होगी. ऐसे दौर में जबकि जजों के लिए आए दिन एक से एक मेटाफर इस्तेमाल किए जाने लगे हों जिसका भाव ये कि वो अपनी कुर्सी पर बैठकर अपने साथ-साथ कुर्सी का भी मान कम कर दे रहे हैं, ये तस्वीर इस बात को दोबारा दोहराती है कि दरअसल कुछ लोग होते हैं जो अपने कद को कुर्सी से भी बहुत आगे ले जाते हैं. जिस उंचाई पर पहुंचकर वो लोगों के दिल में जगह बनाते हैं, उसे पीआर एजेंसियों के बूते नहीं मैनेज किया जा सकता है. दिल की जगह ही एक ऐसी बची है जिसके आगे बिल्डर, रियल एस्टेट के लोग हार जाते हैं.
जस्टिस मुरलीधर के तबादले की आधी रात को जारी नोटिस ने जहां लोगों के मन में उदासी पैदा की थी कि इस देश की लोकतंत्र की बुनियाद बचाने में जुटे लोग कहीं ज्यादा परेशान होते हैं, वही विदाई समारोह का यह नज़ारा लोगों के बीच इस बात का भरोसा बरकरार रखने में मदद करेगा कि ईमानदारी और अपने काम के प्रति निष्ठा की तासीर समाज में अभी भी बची हुई है.
मैं जिस दुनिया से आता हूं, उसमें बड़ी-बड़ी कमेटियों में प्रोफेसर, रिसर्च साइंटिस्ट और संपादक की पहचान के साथ लोग कुर्सियों पर बैठे होते हैं. उनके हाथों में कईयों को नौकरी देने और छीन लेने की ताकत होती है. लोग मतलब के लिए उनकी चमचई या जी हुजूरी तो जरूर करते हैं लेकिन एक पैसे की इज्ज़त नहीं करते. आपको यकीं न हो तो उनकी रिटायरमेंट और अंतिम यात्रा में शामिल लोगों की संख्या और तस्वीर उठाकर देख लें. पलटकर लोग पूछते तक नहीं.
ऐसे लोग बड़ी से बड़ी कुर्सी पर बैठकर उसे इतनी छोटी कर जाते हैं कि उसके बाद उस पर बैठनेवाले को इज्ज़त कमाने में वक्त लग जाता है. मुरलीधरन जैसे व्यक्ति को जिस तरह दिल्ली के वकीलों, कानूनविद् ने सम्मान दिया, ये इस बात का प्रमाण है कि वो मिली हुई कुर्सी की उंचाई बढ़ाकर विदा ले रहे हैं. इससे सैंकड़ों वकीलों, नागरिकों को बल मिलेगा कि विदा कर देने की ताकत भले ही किसी और के पास हो लेकिन लोगों के दिल में बरकरार रहने की क्षमता खुद व्यक्ति के भीतर होती है. उसे इस बात की फिक़्र करनी चाहिए।
(लेखक विनीत कुमार)