(अजय अग्रवाल)
कोरोना वायरस ( सोर्स v2) संक्रमण से उपजा संकट दिन प्रतिदिन पूरी दुनियाँ में गहराता चला जा रहा है| आज की तिथि तक दुनियां भर में इससे दस हजार से अधिक मौतें हो चुकी हैं, और तीन लाख से अधिक लोग संक्रमित हैं| अमेरिका, इटली, स्पेन, जैसे देशों में डॉक्टरों, नर्सो, दवाओं, वेंटीलेटर आदि स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी हो गयी है।
भारत में प्रतिदिन संक्रमित लोगों की संख्या बढती जा रही है| देश में सरकार ने सभी ट्रेनों को रद्द कर दिया है, इंटर स्टेट बसों की आवाजाही पर रोक लगा दी गयी है| देश के कई प्रदेश लॉकडाउन कर कर दिए गए हैं| कुल 75 जिलो में लॉकडाउन है| विदेशों से आने वाली अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों पर रोक लगा दी गयी है ,प्रतिबन्ध लगाकर विदेशियों का प्रवेश वर्जित कर दिया गया है| जनता से अपने घरों में ही रहने की अपील की जा रही है|

यह अभूतपूर्व स्थिति आधुनिक दुनियां में पहली बार देखने को मिल रही है, भारत के सन्दर्भ में बताना आवश्यक है कि प्रधानमंत्री मोदी ने कल जनता कर्फ्यू के बाद कहा कि आज का जनता कर्फ्यू तो बस प्रतीकात्मक है कोरोना से असली लड़ाई तो आगे आने वाले समय में होने वाली है| प्रधानमंत्री के इस वाक्य से स्थिति की गंभीरता को समझने की आवश्यकता है| प्रिन्सटन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रामन्न लक्ष्मीनारायन ने एक शोध में बताया है कि जांच केंद्रों की सीमित संख्या के कारण कोरोना पोजिटिव लोगों की सही संख्या सामने नहीं आ पा रही, उनका मानना है कि आज की तारीख में कोरोना पोजिटिव कि संख्या 10000 से कम नहीं होनी चाहिए| शोध में बताया गया है कि यदि अत्यधिक प्रभावशाली, ईमानदार तरीके से महामारी से नहीं निपटा गया तो जुलाई 2020 तक पोजिटिव लोगों की संख्या 300 से 500 मिलियन तक हो सकती है। उल्लेखनीय है कि 1918 के स्पेनिश फ्लू के दौरान भारत में लगभग 1.5 करोड़ लोगों की मौत हो गयी थी| वर्तमान स्थिति उससे भी विकट दिख रही है।

भारत के सभी नागरिकों को इससे निपटने के लिए जाति, घर्म, भाषा, क्षेत्र, लिंग आदि मतभेदों को भुलाते हुए एकजुट होकर गंभीरता से सरकार, चिकित्सकों, वैज्ञानिकों की सलाह को मानते हुए जीवन जीने की आवश्यकता है|
आज हमें ये भी समझने की जरुरत है कि कोरोना वायरस ने दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से ही सही दुनियां को एक आवश्यक सन्देश दिया है कोरोना वायरस ने पूरी दुनियां को लगभग बंद होने के कगार पर ला दिया है| क्या यूरोप, क्या अमेरिका, क्या एशिया, क्या ऑस्ट्रेलिया सभी महाद्वीपों में बाज़ार बंद है, फैक्ट्रियाँ बंद हैं, सिनेमा बंद है, ऑफिस बंद है, पार्क बंद, स्कूल कॉलेज बंद, ट्रेने बंद, हवाई जहाज बंद, क्रूज लंगर डाले खड़े हैं|
बाजारों में लोग ग़ायब हैं, रेलवे स्टेशन पर वीरानी है, एयरपोर्ट, बंदरगाह सब खाली पड़े हैं| अजब-गजब स्थिति है|

इसका परिणाम क्या हो रहा है?

फैक्ट्रियाँ, ट्रेनों, कारों हवाई जहाजों आदि द्वारा वातावरण में छोड़ा जाने वाला धुंआ ग़ायब हो रहा, समुन्दरों के पानी में जहाजों द्वारा छोड़ा जाने वाला कच्चा डीजल और कचरा मिश्रित होना बंद हो गया है, घातक हथियारों के परिक्षण में उत्पन्न होने वाला प्रदूषण कम हो गया है, सीमाओं पर लगभग सैनिकों की गोलीबारी लगभग बंद है, आंतकवादी घटनाओं में कमी आ गई है। एक देश के नागरिक दूसरे देश में कोरोना से हुयी मौतों से व्यथित हैं, उनके अन्दर अचानक परायों के प्रति मानवीय संवेदनायें विकसित हो रही हैं।

कुल मिलाकर सम्पूर्ण पर्यावरण बदल रहा है| प्रकृति से छेड़छाड़ एकाएक कम हो गयी है| प्रदूषण की कमी से जीव जंतु अचानक जैसे प्रसन्न हो उठे हैं ।इटली, स्पेन, ऑस्ट्रेलिया, के समुद्र तटों पर डॉल्फिन खेलने लगीं है जो जहाजों के आवागमन से घबराकर गहरे पानी में चली जाती थीं। सिंगापुर में पंछी सड़कों पर चलते नज़र आ रहे हैं, क्योंकि इन्सान न होने के कारण उन्हें सड़के सुरक्षित लग रही हैं| चीन और योरोप में कभी न दिखने वाले दुर्लभ जीव जंतु आबादी के आसपास लोगों को देखने को मिल रहे हैं| इंसानों और उसकी मशीनों के ठहरते ही प्रकृति के अन्य जीवों में हलचल बढ़ गयी है।
ऐसा लगता है जैसे एकाएक आये पर्यावरणीय बदलाव के प्रति ख़ुशी व्यक्त करते हुए जीव जंतु कह रहे हों कि …. हे इन्सान! यही तो हमें चाहिए था, इसे तुमने कब से बर्बाद कर रखा था, अब तो प्रकृति से छेडछाड बंद कर ,हमारे लिए भी है यह कायनात। वनस्पति विज्ञानिकों का कहना है कि अचानक से वनस्पतियों में ताज़ी पत्तियों और फूलों की बाढ़ आ गई है, जैसे प्रदूषण की कमी का वे स्वागत कर रहे हैं।

इस पर्यावरणीय परिवर्तन का हमें भी गंभीरता से संज्ञान लेना चाहिए। वैज्ञानिकों का मानना है कि वर्तमान कोरोना वायरस प्रकृति से ही उपजा है ।इसकी सरंचना बताती है कि इसे किसी कृत्रिम तरीके से किसी मानव ने नहीं बनाया ।मतलब साफ़ है कोरोना सार्स वी2 प्रकृति के बदलाव से ही पैदा हुआ है और शायद उसे पैदा करके प्रकृति ने मानव द्वारा बेलगाम छेड़छाड़ में बदलाव की स्वयं ही शुरुआत कर दी है|
(लेखक काव्या पब्लिकेशन्स के प्रबंध संपादक हैं)

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