रायपुर. रायपुर प्रेस क्लब व अजीम प्रेमजी फाउंडेशन की ओर से परिचर्चा ” क्या शिक्षा और समाज में फासला बढ़ रहा है” में प्रियदर्शन ने भाषा और शिक्षा को समाज के प्रति संवेदनशील बनाने पर जोर दिया. को लेकर कार्यक्रम आज आयोजित किया गया. परिचर्चा में अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के स्टेटे हेड सुनील शाह , रायपुर प्रेसक्लब अध्यक्ष दामू आम्बेडर उपाध्यक्ष विवेक ठाकुर अन्य पत्रकारों बुद्धिजीवियों के मध्य उपस्थित थे .एनडीटीवी इंडिया के वरिष्ठ सम्पादक एवं लेखक प्रियदर्शन परिचर्चा में मुख्यवक्ता रहें. प्रियदर्शन ने इस देश में शिक्षा के महत्व को लेकर उदाहरण देते हुए बताया कि शिक्षा का महत्व औरंगजेब ने समझा या फ़िर अंग्रेजों ने शिक्षा का महत्व जाना और समझा था जिससे मैकाले की शिक्षण पद्धतियों को लागू किया. किन्तु आज़ादी के बाद के इतने वर्ष गुजरने के बाद भी हमारा समाज शिक्षा के महत्व को नहीं समझ पा रहा है. स्कूलों में बच्चों को आज नंबर के लिए शिक्षा दी जा रही है.अच्छी नौकरी व पैसा के लिए हम शिक्षा ग्रहण करना चाहते है. शिक्षा व समाज के बीच में गेप बढ़ रहा है. यानी शिक्षा इस तरह थोपा जा रही है कि सांस्कृतिक गेप पैदा हो रहा है. घर व स्कूल का फासला बढ़ गया.कैरियर को लेकर मारामारी हो रही है। बीते दो दशकों में समाज बदलाव आया है. परिवार व मां बाप से दूर नौकरी करते है.आप दूसरे देश व प्रदेश में रहकर समाज के शादी व अन्य कार्यक्रमों में शामिल नहीं होते हैं.
प्रियदर्शन ने आगे यह भी कहा कि पूरी दुनिया एक द्वंद में डूबी रहती है.अमीर गरीब, शोषक व शासक के बीच द्वंद चलते रहता है. 20 वीं सदी आधुनिकता का था लेकिन 21 वी सदी उत्तर आधुनिकता का दौर है.बीसवीं सदी में यानी वर्ष 1991 से औद्योगिक क्रांति तेजी से फैली इसके बाद आज सूचना क्रांति का जमाना हैं घर बैठे ट्रेन की टिकट और बिजली बिल बिना लाइन में लगे चंद मिनटों में जमा कर देते है. लोकतंत्र को बाजार द्वारा संचालित किया जा रहा है. लेनिन ने कहा था कि किसी करोड़पति की सम्पत्ति जल जाय व बर्बाद हो जाय तो वह रातोंरात गरीब नहीं कहलाएगा , ये उसके सोचने की मानसिकता पर है।. सोशल मीडिया ने माध्यम वर्ग को कन्ज्यूमर क्लास में बदल दिया है.
आज तेजी से चीजें बदल रही है, अनुभव को समझने की जगह हम चित्रों को फेसबुक में शेयर कर रहें हैं.एक साथ हम कई भाषा में बोलते है. उन्होंने मीडिया की स्थिति पर भी चिंता व्यक्त किया कि पत्रकारिता पहले कमजोर वर्ग की आवाज होती थी, आज ताकतवर लोग की आवाज बन गई है. मानवतावाद हीरा होता है जबकि राष्ट्रवाद कांच की तरह है.राष्टवाद सबसे बड़ा एनेस्थीसिया है.प्रथम व दूसरे विश्व युद्ध में राष्ट्रवाद के नाम पर 9 करोड़ लोगों की मौत हुई थी.
कवि निर्मल वर्मा ने कहा था कि वह गरीबी शब्द में अभिमान को पाता है, लेकिन उत्पीडन किसी के शोषण का शिकार होता है.भाषा के बार बार इस्तेमाल से उसमें चमक आती है.आज की चिंता इस बात की है जब भाषा ही नहीं बची तो शिक्षा कैसे बचेगी. आज के चुनौती भरे दौर में परिचर्चा के बीच में सवालों का जवाब प्रियदर्शन ने देते हुए कहा कि शिक्षा ऐसी हो जिसमें तार्किकता हो, शिक्षा से विज्ञान को जोड़ना होगा. बच्चों में जिज्ञासुपन और सवाल करना भी आना चाहिए.समाज की सोच में वैज्ञानिकता पैदा करने की जरूरत है. अपने अंदर से झांकने की जरूरत है.अंदर से आने वाला प्रकाश होता है. आज वाट्सप के जरिए विचार बाहर से आ रहा है. सोशल मीडिया से हमें सब कुछ रेडीमेड मिल जाता है. इस लिए कल्पना को पंख नहीं लग रहा है.बाजार में जो भाषा रोजगार की भाषा होती है , उसकी चलन होती है. तकनीक को भी जानने व समझने के लिए भाषा की जरूरत पड़ती है. बाजार व बाज़ारवाद में अंतर होता है. बाज़ारवाद में उपयोगिता की जगह दिखावा होता है. भाषा टूल नहीं है. प्राइवेट स्कूल फाइव स्टार की तरह होते है तो सरकारी स्कूल झुग्गी बस्ती में जर्जर भवनों में संशाधनों की कमी से जूझते हुए नतीजा ये व्यवस्था समाज में खाई पैदा कर रही है. कुछ लोग इस व्यवस्था को बनाये रखना चाहते हैं. इसको खत्म करने के लिए बड़ी क्रांति की जरूरत है. इसको दूर करने शिक्षक को छात्र के लिए अपने ढंग से किताबें पढ़नी चाहिए, किताबों को थोपने की जगह तार्किकता पूर्ण पढ़ाई होना चाहिए. शिक्षा का मतलब प्रयोगशील व प्रश्नशील बनाने वाली होनी चाहिए. पत्रकारों और बुद्धिजीवियों ने कई प्रश्न किये तथा अपने अनुभवों से अर्जित सजग दृष्टि से प्रियदर्शन ने विभिन्न कवियों की रचनाओं के माध्यम से रोचक ज्ञानवर्धक उत्तर दिया.

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