कोरोना वॉरियर मो. शमीम और मो. वसीम

नई दिल्ली:- आईटीओ और दिल्ली गेट के बीच फिरोजशाह कोटला से सटा जदीद कब्रिस्तान 45 एकड़ में फैला है। इसके अंदर 5-6 बीघा जमीन के एक हिस्से पर मुस्लिम समुदाय के जिन लोगों की कोरोना से मौत हो रही है, उन्हें यहीं दफनाया जा रहा है। कब्रिस्तान की देखरेख करने वाली कमिटी ने दो लोगों को तैनात कर रखा है। ये हैं – मोहम्मद शमीम और मोहम्मद वसीम। वे रोज अपने आप को खतरे में डालकर मुस्लिम रीति-रिवाजों और प्रोटोकॉल के साथ श‌वों को दफनाने की पूरी प्रक्रिया को अंजाम देते हैं।

दिल्ली सरकार ने इस कब्रिस्तान को खासतौर से कोविड से जान गंवाने वालों को दफनाने के लिए चिह्नित किया है। एंबुलेंस से लाई गई बॉडी को सही तरीके से उतारने से लेकर दफनाने की पूरी प्रक्रिया को अंजाम दिया जाता है। शमीम और वसीम से जब मुलाकात हुई, उस वक्त भी दोनों कोरोना की वजह से जान गंवाने वाले एक शख्स की लाश को दफनाने की तैयारी कर रहे थे।

शमीम और वसीम ने बताया कि मार्च के अंत से लेकर अब तक वे लोग करीब 470 लोगों की लाशों को दफना चुके हैं। शुरुआत में तो इक्का-दुक्का लाशें ही आती थीं, लेकिन फिर बीच में एक वक्त ऐसा भी आया, जब यहां रोज 10-12 या 15 लाशें आने लगीं। मगर अब स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ है, लेकिन फिर भी 3-4 लोगों को रोज कोरोना प्रोटोकॉल के अनुसार दफनाते हैं।

करीब तीन महीने से भी ज्यादा वक्त से यही काम करने की वजह से शमीम और वसीम ने अपने परिवार को भी इन दिनों अपने से दूर रखा हुआ है। वसीम ने बताया कि उन्होंने अपनी पत्नी और बच्चों को तिमारपुर में अपने ससुराल भेज दिया है और वह खुद अभी मजनू का टीला इलाके में अलग से एक कमरा लेकर रह रहे हैं। शमीम ने बताया कि वह कब्रिस्तान के ही स्टाफ क्वॉर्टर में रहते हैं, लेकिन अपने परिवार को खतरे से बचाने के लिए वह घर के एक कमरे में अलग ही रहते हैं और ज्यादा किसी के नजदीक नहीं आते-जाते।

दोनों का कहना था कि वे जानते हैं कि यह काम खतरे से खाली नहीं है, लेकिन अगर वे नहीं करेंगे, तो फिर कौन करेगा? उनका कहना था कि कई लोग ऐसे भी आते हैं, जो अपने मृत परिवार के सदस्य को हाथ तक लगाने से घबराते हैं। वे कई बार पैसे ऑफर करके कहते हैं कि वे हाथ नहीं लगाएंगे। सारा काम आप लोग ही कर दो। हालांकि, उन्होंने कहा कि इस काम के लिए किसी से पैसे नहीं लिए, क्योंकि यह उनका फर्ज है और जिम्मेदारी भी।

शमीम और वसीम किस तरह खुद को खतरे में डालकर यह काम कर रहे हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके पास इन दिनों पीपीई किट खत्म हो गए हैं, लेकिन इसके बावजूद वे मृतकों के परिजनों की मदद से दफनाने की प्रक्रिया पूरी करवा रहे हैं।

शमीम के मुताबिक, यह काम केवल दो लोगों के बस का नहीं है और प्रोटोकॉल के तहत उन्हें इंस्ट्रक्शन भी है कि परिवार के लोगों को ही पीपीई किट पहनाकर उनकी मदद से लाश को दफनाएं। मगर, कई बार परिवार के लोग ही इसके लिए तैयार नहीं होते हैं, तब हमें खुद ही पूरा काम करना पड़ता है। मगर फिर भी कम-से-कम 2 लोगों की मदद की जरूरत तो पड़ती ही है।

दफनाने से पहले जनाजा नमाज पढ़वाने और बाद में जेसीबी से गड्ढे में मिट्टी डलवाने का काम भी वसीम और शमीम मिलकर ही करते हैं। बाद में पीपीई किट को सही तरीके से डिस्पोज करवाने की जिम्मेदारी भी उन्हीं की रहती है।

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