रायपुर, मोदी सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 रूपरेखा तैयार की है यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति कितनी प्रसांगिक होगी या कहना मुश्किल है लेकिन यह बात तो है कि हमारी बुनियादी शिक्षा जो हमें दी जा रही है उसे यह पूरी तरह से बर्बाद कर देगी। युवाओं द्वारा 10+2 के बाद कैरियर के बहुत सारे विकल्प खुलते हैं तथा ग्रेजुएशन एमफिल पीएचडी तक अपने आप को शोध कर कर वैज्ञानिक जैसी तर्क विकसित कर लेते हैं लेकिन सरकार की वर्तमान शिक्षा नीति 5+3+3+4 में बेसिक शिक्षा क्या होगी? किस तरह का कौशल दिया जाएगा? किस तरह प्रशिक्षण दिया जाएगा? इसका सरकार ने अबतक खुलकर जवाब नही दिया है जिसको लेकर यह सरकार शक के दायरे में खड़ी हो गई है।
सरकार ने जिस तरह अलग अलग शिक्षा संस्थानों के संचालन समितियों को मिला कर एक मुख्य संचालक मंडल बनाने की संकल्पना की है जिसके कारण शिक्षा संस्थानों को नियंत्रण में रखने वाली शक्तियों का केंद्रीकरण हो जाएगा और केंद्र सरकार के हाथ मे पूरे देश की शिक्षा प्रणाली की असीमित शक्ति आ जायेगी, जोकि एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए श्राप के बराबर होता है। सरकार ये भी स्पष्ट नही करती की उस मुख्य संचालन मंडल के सदस्यों की नियुक्ति किस आधार पर होगी व उनकी नियुक्ति कौन करेगा? सरकार शिक्षा का व्यवसायीकरण करना चाहती है ठीक उसी तरह जिस तरह से उसने देश में कई सरकारी संस्थानों को बेचकर निजी हाथों में सौंप दिया है।
शिक्षा शिशु से लेकर प्रौढ़ के लिए एक मूलभूत अधिकार जो जिसे सरकार एक वस्तु बना देना चाहती है जिसका व्यापार हो सके। यदि शिक्षा का इस तरह व्यवसायीकरण कर दिया जाएगा तो एक नागरिक के व्यक्तित्व विकास के लिए शिक्षा ही सबसे बड़ी बाधक बन जाएगी इसलिए शिक्षा का बाजारीकरण या व्यवसायीकरण ना हो इस पर हमें सरकार को सचेत करना चाहिए l
हम छत्तीसगढ़ प्रदेश के वासी छत्तीसगढ़ी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग न जाने कब से कर रहे हैं और छत्तीसगढ़ी भाषा स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल करने की भी मांग की जा रही। परंतु ये नीति केवल अधिसूचित भाषाओं और संस्कृत पर मुख्यतः केंद्रित है और क्षेत्रीय भाषा के महत्व को कम करती है इससे उसकी क्षेत्रीय अस्मिता खत्म होने का डर है। भारत विविधताओं का देश है तथा विविध संस्कृतियों का होने ही भारत को बाकियों से अलग देश बनाता है।छत्तीसगढ़ी, गोंडी, हल्बी व अन्य 4000 क्षेत्रिय भाषाएँ भारत को उसकी पहचान दिलाती है।
साथ ही ये नीति उच्च शिक्षा में बहुनिकासी की सुविधा भी देती है जो चिकित्सा, यांत्रिकी व विधि जैसे पाठ्यक्रमों को छोड़ने वाले छात्रों की संख्या को बढ़ावा देगी जिसके कारण सीटें व प्रति छात्र खर्च होने वाले शिक्षा व्यय का भी नुकसान करेगी।

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