हिटलर हिरणों को खाना खिलाया करता था ताकि लोगों को लगे कि वो बहुत अच्छे दिल का व्यक्ति है।

अनिल मालवीय
लखनऊ:- बड़े साहब आजकल बहुत परेशान हैं । मुफ्त में घूमने फिरने ,भाषण देने ,लोगों में दाना डालने की लत पूरी नहीं हो पा रही है । करते क्या याद आया मोर। लगे उसे ही दाना डालने । एक साथ दो काम हो गया । एक तो अभ्यास हो गया, वहीं चर्चा भी । क्योंकि काफी दिनों से एक अभिनेता के मामले ने टीआरपी छीन ली थी। दूसरी चिंता का विषय बड़े भाई का चुनाव । बड़े भाई फोटो दिखा कर इशारा कर रहे हैं जल्दी आओ, नहीं तो बात बिगड़ जाएगी । चले तो जाते परंतु, ये ससुरा कोरोना आड़े आ रहा है । दवा भी तैयार नहीं वर्ना उसी बहाने सैर हो जाती ।मदद भी कर आते और दवा का आर्डर दे देते । अपने यहां तो सब ठीक है, अनाज न सही, घोंघा तो पेट भर रहा है । रही जीने मरने की बात वो तो साहब के हाथ में है नहीं । इतना बड़ा देश पचास -साठ हजार मर गए तो कौन सी बड़ी बात । चेले ने दवा तैयार तो कर दी है पीएं। गलत बात है, उन्हें चैन से बंसी तक नहीं बजाने देते । लोग आज तक विदेशी नीरो को याद करते हैं । अब परंपरा बदलेगी । स्वदेशी अपनाईए । क्या आसान काम सबकुछ भुलाकर दाना खिलाना।
मीडिया से सीखिए । बिना सवाल किए उनके प्रेम की सचित्र गाथा का वर्णन कर दिया । भक्तों को देखिए प्रेम से अभिभूत हैं । है किसी विरोधी दल के नेता की हिम्मत ? कोई चूं करके दिखाए। इतने छापे मारे जाएंगे सात पुश्त तक कांप जाएगी । इसे कहते हैं जीवटता । भाड़ में जाय जनता । अरे दे तो दिया मंदिर । उससे मांगे, उससे कहे अपना दुख दर्द । क्या सारा ठेका बड़े साहब उठाएं । वे भी परेशान हैं । बहुत दिनों से कोई टूर भी नहीं हुआ । किसी के गले नहीं लगे । भाषण की लत थी वह भी पूरी नहीं हो रही । क्या दाना डालने की लत छोड़ दें। इसी दाने ने तो यहां तक पहुंचाया है । देश संकट में है तो क्या हुआ होने दो ।कुर्सी थोड़े है । अरे इतिहास भी तो लिखना है महानता का।

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