वकील आयुष भाटिया ने बताया कि संविदा भर्ती नियम के रूल 17 में दिए गए अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए डाॅक्टर आलोक शुक्ला को छत्तीसगढ़ सरकार ने संविदा नियुक्ति दी थी. नियुक्ति दिए जाने के बाद राज्य शासन ने उन्हें स्कूल शिक्षा, तकनीकी शिक्षा विभाग का प्रमुख सचिव बनाया था. इसके साथ-साथ माध्यमिक शिक्षा मंडल और व्यावसायिक परीक्षा मंडल के अध्यक्ष का अतिरिक्त प्रभार सौंपा था. कोर्ट ने पक्ष को सुनकर यह माना कि शुक्ला की नियुक्ति पूरी तरह से वैधानिक प्रक्रियाओं का पालन करते हुए की गई है.

बीजेपी नेता नरेशचंद्र गुप्ता की ओर से वकील विवेक शर्मा ने हाईकोर्ट में रिट याचिका लगाई थी. इस याचिका में संविदा नियुक्ति पर डाॅक्टर शुक्ला को लिए जाने की राज्य सरकार की मंशा पर सवाल उठाया गया था. याचिका में कहा गया है कि बहुचर्चित नान घोटाले में शुक्ला का नाम शामिल हैं, ऐसे में उनकी पुनःनियुक्ति असंवैधानिक है. संविदा भर्ती नियम 2013 के मुताबिक रिटायर अधिकारी के विरूद्ध यदि कोई विभागीय या अन्य तरह की जांच लंबित है, तो उस अधिकारी को पोस्ट रिटायरमेंट संविदा नियुक्ति नहीं दी जा सकती. आलोक शुक्ला नान घोटाले में चार्टशीटेड हैं. उनके खिलाफ जांच जारी है. तत्कालीन मुख्य सचिव ने भी उनके खिलाफ निलंबन की सिफारिश की थी।

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