इंदौर, 25 सितंबर 2020, कोरोना काल मे मैनेजमेंट की छंटनी नीति के खिलाफ नईदुनिया के संपादकीय टीम के सदस्यों ने नारेबाजी की, मजीठिया वेज बोर्ड के 400 से अधिक मामले में श्रम अदालतों में नईदुनिया प्रबंधन पहले ही ढेर हो चुका है। अब दरअसल 40℅ स्टाफ को नौकरी से निकालने का मिशन लेकर आया है इंदौर में नया संपादक सदगुरु शरण अवस्थी। इनकी अगुआई में प्रबंधन अब तक करीब 25℅ को निकाल भी चुका है।

नई दुनिया इंदौर में अब भी बवाल जारी है। यहां लगातार तीन दिन से कर्मचारियों को निकाला जा रहा है।

आज एक साथ ऑफ रोल वाले 7-8 कर्मचारियों को निकाल दिया गया। इससे 2-3 को छोड़ सभी कर्मचारी भड़क गए। वो सब ऑफिस से बाहर आ गए और हंगामा-नारेबाजी कर रहे हैं।

ऑफिस के कर्मचारियों का गुस्सा सहयोगी कर्मचारी जितेंद्र रिछारिया और जितेंद्र व्यास के खिलाफ भी भड़क गया है। पूरा ऑफिस एकजुट हो गया, लेकिन जितेंद्र रिछारिया ने उनका साथ नहीं दिया और वो नए आए संपादक सद्गुरु शरण अवस्थी के पिट्ठू बनकर काम करते रहे।

जितेंद्र व्यास का भी यही हाल है। संपादक इन सबसे बेफिक्र हैं। उन्होंने साफ बोल दिया कि जिसको जाना है जाए और अखबार तो निकलेगा ही। उन्होंने भोपाल एडिशन से पेज मंगवाकर इंदौर एडिशन छापने की तैयारी कर ली है।

ज्ञात हो कि पत्रकार, डेस्क कर्मचारी व अन्य कर्मचारियों को नौकरी से हटाने के विरोध में आज शाम यानी गुरुवार को नई दुनिया में भारी हंगामा हुआ और सभी कर्मचारी नई दुनिया के परिसर में आकर बैठ गए। सभी ने काम करने से मना कर दिया और मालिकों, संपादक और आला अधिकारियों को मनमानी बंद करने की बात कही। इस पर सीईओ संजय शुक्ला ने सभी को मनाने की कोशिश की। कई चाटुकार अब भी संपादक की गोद मे बैठे हुए हैं।

इसी प्रकरण पर आदित्य पांडेय फेसबुक पर लिखते हैं-

नईदुनिया ने जो सुनहरे दिन देखे थे आज उनका अंत इस तरह हुआ कि इसके मीडियाकर्मी सड़क पर उतरने को मजबूर हो गए।

बुरे दिन तभी शुरू हो चुके थे जब यह पुराने मालिकों के पास था लेकिन अब तो हद हो गई है। सारे अखबार मालिक एक हो गए हैं इसलिए बड़ी मुश्किल भी झेल पा रहे हैं लेकिन मीडिया कर्मियों का एकजुट होना मुश्किल रहा है। अभिषेक कहते हैं कि जब डिस्पेच और दूसरे विभागों के छोटे कर्मचारियों की छंटनी हो रही थी तब इसी तरह से विरोध करना था तो ये नॉबत नही आती।

आज सड़क पर आने की नौबत ही न आती यदि हंट मैन की तरह जागरण प्रबंधन द्वारा लाए गए श्रवण गर्ग की ज्यादती पर ही सब साथ खड़े हो गए होते।

जब कई साथियों ने मजीठिया केस लगाए तो नौकरी कर रहे कर्मी उनसे उनसे नजरें चुराते थे, साथ देने की बात तो बहुत दूर है। ऐसे में मालिकों की हिम्मत इसी वजह से बढ़ती रही।अब उन्ही कर्मियों की छंटनी होने लगी जो मजीठिया की लड़ाई से दूर कम्फर्ट की सेवा कर रहे थे।

नईदुनिया में मजीठिया के मामलों के कारण क्लेम करने वालों के ख़िलाफ़ रायपुर, भोपाल, ग्वालियर में प्रतारणा के कई षड्यंत्र किये गए जिसकी शिकायतें पत्रकारों कर्मचारियों ने संबंधित थानों, श्रम अधिकारियों से की है, क्लेम के साथ ऐसे मामले भी न्यायालयों में चल रहे हैं।

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