जगन के कंधे पर किसकी बन्दूक ?

आलेख – कनक तिवारी

सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ एक नई साजिश की दुर्गंध आंध्रप्रदेश के युवा लेकिन अपरिपक्व मुख्यमंत्री एस0 जगन्मोहन रेड्डी के यकायक लिखकर प्रेस में जाहिर किए गए लगभग संदेहास्पद और गैरसंवैधानिक पत्र से आ रही है। न्यायिक और बौद्धिक क्षेत्रों में खलबली मचाती उनकी हरकत उपहास के लायक तो है ही साथ ही  संसदीय इतिहास में पहली बार एक मुख्यमंत्री ने सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ तथा संभावित भावी चीफ जस्टिस के आचरण पर अनर्गल टिप्पणियां संविधानेतर शैली और हथकंडे अपनाते की है। जगन्मोहन रेड्डी आंध्र प्रदेश के 2019 में मुख्यमंत्री बने हैं। उन्होंने पहले चाहा कि कांग्रेस उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री पिता के अचानक हुए निधन के बाद उनका उत्तराधिकारी मान ले। ऐसा संभव नहीं हो पाने पर जगन ने नई पार्टी बनाकर पांच वर्षों के संघर्ष के बाद सत्ता हासिल कर ही ली। पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के कार्यकाल (2014-2019) में जगन के विरुद्ध भ्रष्टाचार के कई अपराधिक प्रकरण दायर किए गए थे। उस सिलसिले में सोलह महीनों तक जगन  जेल में भी बन्द रहे।

फिलहाल 6 अक्टूबर को जगन्मोहन ने भारत के मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे को पत्र लिखा है। उसमें सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ जज एन.वी. रमन्ना के नाम का उल्लेख करते कुछ आरोप लगाए हैं। यह सम्भव है कि कोई भी व्यक्ति अपराध कर सकता है, या अपराध करने की संभावना उसमें होती है। कोई भी नागरिक संवैधानिक पद पर बैठे जज के भी खिलाफ शिकायत करते आरोप लगा सकता है। आरोपों को लेकर तर्क, तथ्य, दस्तावेज तथा उचित समय और सही फोरम की प्रक्रिया के बाद ही स्वीकार्यता हो सकती है। जगन का मुख्य आरोप है कि 2014 में आंध्रप्रदेश बनने के बाद मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने फैसला किया कि प्रदेश की राजधानी अमरावती में बनेगी। मुख्यमंत्री बनने और राजधानी के स्थल की घोषणा करने के बीच की अवधि में प्रस्तावित राजधानी अमरावती क्षेत्र में भूमियों का भारी संख्या में क्रय विक्रय हुआ। कहा गया कि लगभग 4000 एकड़ भूमि कई रसूखदारों द्वारा खरीद ली गई। इन भूमियों में से (महज) 2 भूखंड जस्टिस रमन्ना की दो बेटियों के नाम पर भी खरीदे गए। खरीदी के काम को तत्कालीन एडवोकेट जनरल डी0 श्रीनिवास ने अंजाम दिया।

जगन सरकार ने चंद्रबाबू सरकार द्वारा किए गए सभी निर्णयों की समीक्षा करने का सार्वजनिक ऐलान करते कहा कि बाद में उन पर पुनर्विचार भी किया जा सकता है। चंद्रबाबू नायडू सरकार के कथित भ्रष्टाचारों के सिलसिले में मुख्यतः सम्पत्ति अर्जित करने के आरोपों पर अपराधिक कार्यवाही करने 23 मार्च 2020 को आंध्र सरकार ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर मामलों को सीबीआई को सौंपने की पहल की। केंद्र ने उस अनुरोध पर अब तक चुप्पी ही साध रखी है। लगता है कि पृष्ठभूमि की कुछ साजिशी हरकतों के कारण जगन्मोहन रेड्डी को कंधे की तरह इस्तेमाल कर लिया गया है। अज्ञात लेकिन सर्वज्ञात आश्वस्त महारथी सुप्रीम कोर्ट पर दबाव बनाने का षडयंत्र पहले भी रच चुके हैं।

भारत के चीफ जस्टिस शरद अरविंद बोबडे़ अप्रैल 2021 में रिटायर हो जाएंगे। परंपरा के अनुसार जस्टिस रमन्ना को अगला चीफ जस्टिस होना है। उनका कार्यकाल अगस्त 2022 तक रहेगा। इस अवधि में कुछ महत्वपूर्ण मामले अपनी अंतिम सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में फड़फड़ा रहे हैं। कई लोगों की अपशकुन की बाई आंखें फड़कने लगी ​होंगी कि जस्टिस बोबड़े के रहते तो सब कुछ ठीकठाक लगने के बाद आगे क्या होगा? मसलन महाराष्ट्र में सरकार गठन के गतिरोध को लेकर जस्टिस रमन्ना की बेंच के आदेश के अनुसार राज्यपाल और मुख्यमंत्री की गलबहियों से आधी रात को राष्ट्रपति शासन हटाकर तड़के मुख्यमंत्री का पदग्रहण प्रभाव ध्वस्त कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने के कारण जनता अघाड़ी सरकार सत्ता में आ गई। इस कारण केन्द्रीय निजाम को झटका तो उसी बेंच के कारण लगा।

दिल्ली प्रदेश के पूर्व भाजपा अध्यक्ष एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने 2016 में एक जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल कर मांग की थी कि अभियुक्त/आरोपी सांसदों और विधायकों के लम्बित मामलों का तेजी से निपटारा करने के आदेष दिए जाएं क्योंकि देश की राजनीति और सामाजिक जीवन प्रदूषित हो रहे हैं। लोकतंत्र और संविधान के सिद्धांतों की गरिमा और सुरक्षा को कायम रखने के आह्वान पर सुप्रीम कोर्ट ने प्रकरण पर सुनवाई जारी रखी। लगभग चार वर्ष बीत जाने पर भी कई राज्यों के हाईकोर्ट की उदासीनता देख जस्टिस रमन्ना की बेंच ने 16 सितंबर 2020 को आदेश किया कि ऐसे सभी प्रकरणों के लिए राज्य सरकारें और हाई कोर्ट मिलकर फास्ट ट्रैक कोर्ट कायम करने पर सोचें और अधिकतम एक वर्ष की अवधि में इन मामलों को निपटा दिया जाए। जिन मामलों में स्थगन दिए जा चुके हैं, उनमें भी सुनवाई कर दो महीने में फैसला कर दिया जाए। ऐसे लम्बित प्रकरणों की सूची बनाते न्याय मित्र विजय हंसारिया एडवोकेट ने बताया कि चार हजार से ज्यादा प्रकरण लंबित हैं। यह सुलझा हुआ, न्यायसंगत और भविष्यमूलक आदेश ही तो देना कहलाएगा। ऐसे लम्बित प्रकरणों की सूची में लगभग 31 प्रकरण जगन्मोहन रेड्डी के भी खिलाफ हैं। स्वाभाविक है उन्हें आशंका और भय ने घेरा होगा कि यदि सभी प्रकरणों का एक वर्ष में निपटारा कर ही दिया गया तो उन्हें बहुत बड़ी राजनीतिक क्षति हो सकती है। लिहाजा उन्होंने अपना कंधा साजिषी ताकतों को इस्तेमाल करने के लिए साजिशी हरकतों के लिए दे दिया। ऐसी सर्वज्ञात ताकतों को तो सुप्रीम कोर्ट को अपने दबाव में रखने की पुरानी आदत है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और फिर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के कार्यकाल में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाइयों में हो चुकी केंद्रीय निजाम की धींगामस्ती जगजाहिर है। क्या मजाल कि सुप्रीम कोर्ट में जनता की आवाज गूंज पाती। कई जनहित याचिकाकारों पर तो भारी जुर्माना भी लगाया गया। उनके खिलाफ टिप्पणियां कर उन्हें अपमानित करते मामले दर्ज करने की धमकियां भी दी गईं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्तुति खुलेआम करते सुप्रीम कोर्ट के जज अरुण मिश्रा एक समारोह में मोदी को वैष्विक नेता और राष्ट्रीय हीरो कहने के बावजूद ताकतवर बने रहे। जजों के आचरण, सेवा नियमों और संवैधानिक परंपराओं को धता बताते कई अनर्गल प्रलाप अन्य जज भी करते रहे।

जगन्मोहन रेड्डी की सरकार ने नायडू के कार्यकाल के वक्त के कथित अपराधों के लिए प्रदेश में ही कई मामले दर्ज तो कर रखे हैं। सरकार की शिकायत है कि आंध्र की अदालतों में मामलों में प्रगति नहीं हो रही है। जगन रेड्डी लेकिन न्यायिक प्रक्रिया का अनुपालन करते कुछ करते धरते भी नहीं दिख रहे हैं। जस्टिस रमन्ना की पुत्रियों के नाम प्लॉट खरीदने को असाधारण घटना बनाने को शिगूफा समझकर चुनौती देते मामले दायर होने पर कुछ प्रकरणों में आंध्रप्रदेश के हाई कोर्ट जजों ने स्थगन आदेश जारी कर कथित लाभान्वितों के नाम को मीडिया में नहीं छापने के भी आदेश पारित किए। संवेदनशील प्रकरणों में अदालतें मीडिया में पहले भी प्रकाशन प्रतिबंधित करती रही हैं। जगन चाहते तो लम्बित प्रकरणों की सुस्त कार्यवाही के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील या रिट दायर कर भी सकते थे। कुछ प्रकरण सुप्रीम कोर्ट मेें लम्बित भी हैं। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल भी हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल प्रकरणों में उन्होंने जस्टिस रमन्ना के संभावित प्रभाव या दखल को लेकर आपत्ति क्यों दर्ज नहीं की? न ही त्वरित सुनवाई कराने के आवेदन दिए होंगे।

कनक तिवारी

वरिष्ठ अधिवक्ता

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