1957 में देश की दूसरी लोकसभा में 33 वर्ष की उम्र में पहली बार बने थे सांसद

केंद्र सरकार ने अटल बिहारी वाजपेयी के निधन पर 7 दिन के राजकीय शोक की घोषणा की. इस दौरान देश भर में तिरंगा झुका रहेगा.

नई दिल्ली. 1957 में 2 री लोकसभा में 33 वर्ष की उम्र में पहली बार सांसद बने अटल जी ने 472 सांसदों के सदन में अपने पहले भाषण देते ही सबको प्रभावित किया और अपनी विशिष्ट पहचान बनाई भारतीय राजनीति में अजातशत्रु, भीष्म पितामह, शिखर पुरुष जैसे शब्दों से पुकारे जाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी देश के 10 वें प्रधानमंत्री थे. उन्होंने देश की बागडोर तीन बार संभाली. पहली बार उन्होंने साल 1996 में 16 मई से 1 जून तक, साल 1998 से 19 मार्च से 26 अप्रैल 1999 तक, फिर 13 अक्टूबर 1999 से 22 मई से 2004 तक. 66 दिनों तक अटल योद्धा की तरह संघर्ष करने के बाद थमी साँस , बहुत याद आ रही है उनकी कविता –‘ हार नहीं मानूंगा ‘ 16 अगस्त को उन्होंने अंतिम सांस ली. वह 66 दिनों  से एम्स में भर्ती थे.  प्रधानमंत्री मोदी ने अटल जी को ट्विवटर पर श्रद्धांजलि देते हुये कहा कि हम सबके श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी नहीं रहे. भावनाओं का ज्वार उमड़ रहा है.

बृहस्पतिवार की  सुबह एम्स की ओर से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का हेल्थ बुलेटिन जारी किया गया था। इसमें जानकारी दी गई थी कि पूर्व प्रधानमंत्री की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ है, उनकी हालत अभी नाजुक है और वे लाइफ सपॉर्ट सिस्टम पर हैं। वाजपेयी को सांस लेने में परेशानी, यूरीन व किडनी में संक्रमण होने के कारण 11 जून को एम्स में भर्ती किया गया था।  सुबह ही अटल बिहारी के करीबी रिश्‍तेदारों को एम्‍स बुला लिया गया था। बता दें कि लंबे समय से एम्स में भर्ती पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को देखने के लिए राहुल गाँधी भी अस्पताल जा चुके थे जिसके बाद  पिछले सप्ताह भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के साथ गृहमंत्री राजनाथ भी एम्स पहुंचे थे। 93 वर्षीय अटल बिहारी वाजपेयी को  4 दिन पहले वेंटिलेटर लगने के बाद से चिकित्सकों को उनकी स्थिति चिंताजनक लगने लगी थी . भर्ती होने के बाद से ही पीएमओ उनकी हालत पर नजर बनाए हुए था। गौरतलब है कि अटल बिहारी वाजपेयी देश के 10वें प्रधानमंत्री थे और 1998 से 2004 के बीच प्रधानमंत्री के रूप में कार्यरत रहे। वह प्रधानमंत्री के रूप में 5 साल पूरे करने वाले पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री भी बने थे।. अटल बिहारी वाजपेयी जनसंघ के संस्थापक सदस्य थे जिसकी शुरुआत श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 21 अक्टूबर 1951 में की थी. वाजपेयी राष्ट्रीय स्वयंसेवक के संघ के पूर्णकालिक सदस्य रहे. अपने पूरे राजनीतिक जीवन के दौरान वह 10 बार लोकसभा सदस्य चुने गए और दो बार राज्यसभा के सदस्य बने. उन्होंने मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश दिल्ली और गुजरात से लोकसभा चुनाव लड़ेवाजपेयी ने अपना पहला चुनाव 1957 में उत्तर प्रदेश की बलरामपुर सीट से लड़ा था. वो बाद में पार्टी के 1969 से लेकर 1972 तक अध्यक्ष भी रहे. 19977 में वो मोरारजी देसाई की सरकार में विदेश मंत्री भी बनाए गए थे.

अटल जी को 27 मार्च 2015 को देश के सर्वोच्च पुरस्कार ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया. 7 जून को 2015 को उनको बांग्लादेश की ओर ‘फ्रेंड्स ऑफ बांग्लादेश लिबरेशन वॉर अवॉर्ड’ सम्मानित किया गया. उनको यह सम्मान बांग्लादेश की आजादी में निभाई गई भूमिका के लिए दिया गया था. वाजपेयी की ओर से यह सम्मान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लिया था.अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ था. उनके पिता का नाम श्री कृष्णा बिहारी वाजपेयी और माता का नाम कृष्णा देवी था. हालांकि उनका मूल निवास आगरा के गांव बटेश्वर था. अटल जी के पिता स्कूल में अध्यापक थे. स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद अटल जी ने ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी विषय से ग्रेजुएशन की पढ़ाई की. इसके बाद उन्होंने कानपुर के डीएवी कॉलेज से राजनीति शास्त्र से एमएकिया. वाजपेयी को भारतीय संगीत और नृत्य काफी पसंद था और हिमाचल प्रदेश का मनाली उनकी पसंदीदा जगहों में से एक था.

उनके रिश्तेदार और दोस्त उनको बापजी कहकर पुकारते थे. वाजपेयी जीवन भर अविवाहित रहे और बाद में उन्होंने एक लड़की को गोद लिया था जिसका नाम उन्होंने नमिता रखा. 2004 के  आम चुनाव में बीजेपी की हार के बाद उन्होंने अपनी  गिरती सेहत के चलते राजनीति से संन्यास ले लिया. वाजपेयी ने राजनीति के अलावा पत्रकारिता में भी जमकर हाथ आजमाए. उन्होंने पांचजन्य, राष्ट्रधर्म जैसी अखबारों और पत्रिकाओं का संपादन भी किया. इसके अलावा वीर अर्जुन, स्वदेश का भी संपादन किया.

राजनीतिक की ‘अटल यात्रा’ के दौरान उनको कई सम्मान मिले. जिनमें 2015 में भारत रत्न, 1992 में पद्म विभूषण, 1993 में कानपुर विश्वविद्यालय की ओर डीलिट की मानद उपाधि, 1994 में पंडित गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार, 1994 में सर्वश्रेष्ठ सांसद का पुरस्कार, 1994 में लोकमान्य तिलक पुरस्कार, 2015 में बांग्लादेश मुक्ति युद्ध पुरस्कार.

 

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