19 जुलाई 1938:जन्मदिन विशेष

“तुम्हारा अध्ययन व्यर्थ होगा और विज्ञान बाँझ
अगर यूँ ही पढ़ते रहे…
बिना समर्पित किए ज्ञान
समूची मानवता को.”
प्रस्तुत पंक्तियाँ ब्रेख्त अध्ययन और विज्ञान के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए लिखा था.जयंत नार्लीकर जहाँ एक ओर
ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने में लगा दी वहीं दूसरी ओर
यशपाल की तरह वैज्ञानिक चेतना को विकसित करने
में लगा दी.एक पत्रकार शीतल चौहान द्वारा द्वारा विज्ञान
को लोकप्रियता और वैज्ञानिक चेतना के प्रसार के सवाल
पर प्रश्न पूछे जाने पर नार्लीकर ने कहा”. am not so happy on this front. Although there is more awareness of science in the society, the superstitions continue to dominate. And even in the modern generation there is no discernible improvement towards a more scientific temperament.”यानि नये पीढ़ियों में वैज्ञानिक चेतना में कोई सुधार नहीं देखता हूँ.राजनीतिक
पार्टियों द्वारा धर्म को वोट वैंक के रूप में इस्तेमाल किये जाने पर वह कहते हैं”The use or misuse of religious sentiments, vote banks, etc., are reprehensible. But in more ways than one we see superstitions dominating the minds of our political leaders, regardless of parties they subscribe to. Astrology, vastushastra, godmen are some examples. Jawaharlal Nehru had hoped that after independence the scientific temper would take root amongst the masses. This has not happened. Indeed how can it happen if the leaders of the masses are themselves superstition-prone?” ज्योतिशास्त्र,वास्तुशास्त्र और
गाडमेन को वह अंधविश्वास को बढ़ाने में मददगार समझते हैं.जब उनसे पूछा गया कि भारत और पश्चिम के नौजवानों में किया अंतर है .वह कहते हैं”The one aspect in which our youth are different is in their strong belief in astrology. Although astrological columns appear in the western newspapers also, I have not come across marriages there being fixed by horoscope-matching!”पिछले दिनों डारविन के सवाल पर उत्पन्न विवाद पर उन्होंने मंत्री सत्पाल मलिक विरोध किया.
जयन्त विष्णु नार्लीकर (जन्म 19 जुलाई 1938) प्रसिद्ध भारतीय भौतिकीय वैज्ञानिक हैं. उनके पिता विष्णु वासुदेव नार्लीकर बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में गणित के अध्यापक थे तथा माँ संस्कृत की विदुषी थीं. नार्लीकर की प्रारम्भिक शिक्षा वाराणसी में हुई. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि लेने के बाद वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय चले गये. उन्होने कैम्ब्रिज से गणित की उपाधि ली और खगोल-शास्त्र एवं खगोल-भौतिकी में दक्षता प्राप्त की.
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति विशाल विस्फोट (Big Bang) के द्वारा हुई थी पर इसके साथ साथ ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में एक और सिद्धान्त प्रतिपादित है, जिसका नाम स्थायी अवस्था सिद्धान्त (Steady State Theory) है. इस सिद्धान्त के जनक फ्रेड हॉयल हैं. अपने इंग्लैंड के प्रवास के दौरान, नार्लीकर ने इस सिद्धान्त पर फ्रेड हॉयल के साथ काम किया. इसके साथ ही उन्होंने आइंस्टीन के आपेक्षिकता सिद्धान्त और माक सिद्धान्त को मिलाते हुए हॉयल- नार्लीकर सिद्धान्त का प्रतिपादन किया.
1970 के दशक में नार्लीकर भारतवर्ष वापस लौट आये और टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान में कार्य करने लगे. 1988 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के द्वारा उन्हे खगोलशास्त्र एवं खगोलभौतिकी अन्तरविश्वविद्यालय केन्द्र स्थापित करने का कार्य सौपा गया. उन्होने यहाँ से 2003 में अवकाश ग्रहण कर लिया. अब वे वहीं प्रतिष्ठित अध्यापक हैं.
अपने जीवन के सफर में नार्लीकर को अनेक पुरस्कारों से नवाज़ा गया. इन पुरस्कारों में प्रमुख हैं: स्मिथ पुरस्कार (1962), पद्म भूषण (1965), एडम्स पुरस्कार (1967), शांतिस्वरूप पुरस्कार (1979), इन्दिरा गांधी पुरस्कार (1990), कलिंग पुरस्कार (1996) और पद्म विभूषण (2004), महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार (2010). लोगों में वैज्ञानिक चेतना विकसित करने के लिए वह कई पुस्तकें अंग्रेजी ,हिंदी और मराठी भाषा मे लिखे हैं.आगे इस दिशा में कार्यरत हैं.

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