लंबे  समय से संंघ र्ष   कर रहे लोगो   को  मिली बड़ी सफ़लता, जलवायु परििवर्तण की चिंताएं इस फैसले का कारण ?

नई दिल्ली. ( इंडिया न्यूज रूम) एक बड़े ऐतिहासिक कदम, जिसका प्रभाव कई स्तर पर देखने को मिलेगा, उठाते हुए कल विश्व बैंक ने आंध्र प्रदेश के अमरावती कैपिटल सिटी परियोजना में $300 मिलियन का क़र्ज़ देने से इनकार कर दिया.

इस फैसले का वर्किंग ग्रुप ऑन इंटरनेशनल फाइनेंसियल इंस्टिट्यूशन (WGonIFIs) और परियोजना से प्रभावित समुदायों ने जोरदार सराहना की. पिछले कुछ वर्षों से कई जन आंदोलनों और नागरिक संगठनों से आपत्ति प्राप्त करने और बैंक के जवाबदेही तंत्र ‘इंस्पेक्शन पैनल’ को प्रभावित समुदायों द्वारा मिले शिकायतों के बाद बैंक ने यह फैसला लिया है.

इस फैसले पर मेधा पाटकर, नर्मदा बचाओ आंदोलन और जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (NAPM) की वरिष्ठ कार्यकर्ता, ने कहा कि हमें खुशी है कि विश्व बैंक ने अमरावती कैपिटल सिटी परियोजना में शामिल व्यापक उल्लंघनों का संज्ञान लिया. यह परियोजना लोगों की आजीविका और वातावरण के लिए एक बड़ा खतरा रही है. नर्मदा और टाटा मुंद्रा के बाद, यह विश्व बैंक समूह के खिलाफ लोगों की तीसरी बड़ी जीत है. हमें खुशी है कि नर्मदा बचाओ आंदोलन के संघर्ष के कारण बनाए गए ‘इंस्पेक्शन पैनल’ ने यहां अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. आज जब हम लोगों के संघर्ष और उनकी जीत का जश्न मना रहे हैं, वो लोग जो राज्य की धमकियों और आतंक के खिलाफ खड़े रहते है, तब हम सरकार और वित्तीय संस्थानों को भी चेतावनी देते हुए बताना चाहते हैं कि बिना लोगों की सहमति के अपने एजेंडे को आगे ना बढ़ाये.

2014 में जब अमरावती कैपिटल सिटी परियोजना की संकल्पना की गई, तभी से पर्यावरण विशेषज्ञों, नागरिक संगठनों और जन आंदोलनों ने परियोजना में सामाजिक और पर्यावरणीय कानूनों के गंभीर उल्लंघन, वित्तीय अस्थिरता, स्वैच्छिक भूमि-पूलिंग के नाम पर उपजाऊ भूमि के बड़े पैमाने पर जबरन कब्ज़ा होने का विरोध दर्ज किया . इन विरोधों और लोगों की आवाज़ दबाने के लिए शिकायतकर्ताओं को पूर्व मुख्यमंत्री द्वारा खुली धमकी दी जाती रही थी.

कैपिटल रीजन फार्मर्स फेडरेशन के मल्लेला शेषगिरी राव ने कहा, “हमारी जमीन और आजीविका के ऊपर अनिश्चितता के बादल मंडराने लगे थे.  इस डर और चिंता ने हमारी आँखों से नींद छीन ली थी. इस संघर्ष ने हमारे जीवन में ऐसी जगह बना ली है जिसे हम कभी भूल नहीं सकते हैं। हमें यह पूरी उम्मीद है कि विश्व बैंक के इस परियोजना से बाहर निकलने से राज्य और अन्य देनदारों को एक बड़ा संदेश जाएगा और वो ईमानदारी और प्रतिबद्धता के साथ लोगों की चिंताओं का संज्ञान लेंगे.“

परियोजना से जुड़े एक अन्य सह-वित्तदाता एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (एआईआईबी) ने खुद को प्रसिद्द पेरिस एग्रीमेंट के बाद के समय में उभरते बैंक के रूप में पेश करते हुए जाहिर किया है कि वह जलवायु परिवर्तन और इसके संकटों से निपटने के लिए प्रतिबद्ध है.लेकिन अभी भी यह परियोजना उनके आधिकारिक दस्तावेजों में विचाराधीन परियोजना के रूप में मौजूद है और दस्तावेज के मुताबिक़ एआईआईबी को इस परियोजना में केवल एक सह-वित्तदाता के रूप में दर्ज किया गया है. जिसका इस्तेमाल कर के एआईआईबी ने इस परियोजना में विश्व बैंक की नीतियों का उपयोग किया है, लेकिन अब विश्व बैंक के इस परियोजना से बाहर आने के बाद एआईआईबी की सह-वित्तदाता के रूप में स्थिति अस्पष्ट है.

“एक अच्छे बदलाव के लिए, सकारात्मक सोच ने बैंक को इस विनाशकारी कार्यक्रम से हटने के निर्णय लेने पर विवश किया. यह हमारे रुख को भी स्पष्ट करता है, कि पेरिस एग्रीमेंट के बाद उभरने वाले बैंक की बयानबाज़ी के बावजूद, एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (AIIB), जो इस परियोजना में एक सह-वित्तपोषक है, अब और विश्व बैंक के पीछे छिप नहीं सकता है, जो अब तक वह एक सह- वित्तदाता के रूप में बताकर कर रहा था।”, एनजीओ फोरम ऑन एडीबी के अंतर्राष्ट्रीय समिति और एन्विरोनिक्स ट्रस्ट के डायरेक्टर, श्रीधर आर ने कहा.

सेंटर फ़ॉर फ़ाइनेंशियल अकाउंटिबिलिटी के एलेक्स टैनी ने कहा, “यह जन शक्ति का एक और उदाहरण है जो विश्व बैंक जैसी संस्थानों को भी लोगों के आपत्तियों की जवाबदेह बनने पर मजबूर करता है. जब परियोजना से प्रभावित लोग अपनी आवाज़ पर बुलंद और मजबूती से खड़े थे, उसी समय कई अन्य संगठनों ने समर्थन में उनके मुद्दे और आवाजों को उचित जगहों तक पहुंचाया. यह न्याय एवं जवाबदेही ले लिए लड़ रहे लोगों और उनके मजबूत मांगों की जीत है.”

WGonIFIs राज्य सरकार से मांग करता है कि,
1. केंद्रीय भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास कानून, 2013 के विपरीत भाव वाली CRDA भूमि अधिग्रहण अधिनियम, CRDA प्राधिकरण और संबंधित अधिसूचना को खारिज किया जाए और अमरावती कैपिटल रीजन के सभी प्रभावितों के मामले में केंद्रीय कानून को पूर्ण रूप से लागू किया जाए। इसके साथ सरकार द्वारा बिना सहमति लिए गए सभी जमीन को वापस लोगों को दिया जाए.
2. किसानों, तटीय समुदायों, खेतिहर मजदूरों, बटायेदारों, भूमिहीन परिवारों, जिनको जमीन अधिग्रहण और विस्थापन के दौरान अत्यंत पीड़ा और भय व्याप्त समय से गुजरना पड़ा, उनके सामाजिक-आर्थिक नुकसान, जमीन के मामले और मानसिक प्रताड़ना की न्यायिक जांच की जाए.
3. पिछले पांच वर्षों में सामाजिक जीवन को पहुंचे नुकसान को देखते हुए दलित और दूसरे निर्दिष्ट भू-मालिकों के लिए विशेष मुआवजे की घोषणा की जाए.
4. कैपिटल रीजन की घोषणा के बाद सक्रिय हुए दलालों, जो दलितों और निर्दिष्ट भू-मालिकों की जमीन खरीदने और उसकी प्रक्रिया में शामिल थे, के ऊपर सख्त कार्यवाही की जाए.
5. दलित किसानों को दस्तावेजों में धांधली कर उन्हें बेदखल करने की कोशिशों को रोका जाए और सभी दलित किसानों को, जिनका जमीन पर वास्तविक कब्ज़ा है, उन्हें 2013 के कानून अनुसार मुआवजा, पुनर्स्थापन और पुनर्वास के लिए वास्तविक भू-मालिक माना जाए.

परियोजना के बारे में:
जून, 2014 में पूर्व के आंध्र प्रदेश राज्य के बँटवारे के बाद, दोनों राज्य, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश ने हैदराबाद को राजधानी के रूप में अगले 10 वर्षों तक रखने का फैसला किया. उसी वर्ष सितम्बर में चंद्रबाबू नायडू, आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री, ने अमरावती को नए राजधानी शहर के रूप में बनाने की घोषणा की. विश्व बैंक और AIIB, इस परियोजना के लिए $715 मिलियन वित्त प्रदान करने पर विचार कर रही थी.
इसके प्रभाव आंकलन में भी इसके सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों को देखते हुए विश्व बैंक ने इस परियोजना को A केटेगरी प्रदान की थी.  कृष्णा नदी घाटी के ऊपर बनाए जाने के लिए, उपजाऊ खेती की भूमि और जंगलों के विनाश, 20000 से अधिक परिवारों को विस्थापित करने, जबरन भूमि अधिग्रहण, और शहर निर्माण में मनचाहे ठेकेदारों को ठेका देने के कारण यह परियोजना बेहद विवादित रही है. 2017 में विश्व बैंक के जवाबदेही तंत्र के ‘इंस्पेक्शन पैनल’ में प्रभावितों ने शिकायत की और विश्व बैंक के नियमों के उल्लंघनों की जांच के लिए कहा. यह शिकायत अभी प्रक्रिया में थी और बैंक की बोर्ड, इंस्पेक्शन पैनल द्वारा इसकी जांच करने के लिए प्रस्ताव का इंतज़ार कर रही थी. छत्तीसगढ़ की नयी राजधयानी अट ल नगर से प्ररभावित्त

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here