एक वैज्ञानिक जो विज्ञान के साथ साथ सामाजिक सरोकार भी रखता है और फिल्म के माध्यम से भी जनमानस से संवाद कर सकता है, साथ ही अपनी बेहतरीन नज्मों, रचनाओं से श्रोताओं को अभिभूत कर सकता है तो उनका नाम गौहर रज़ा ही होगा.
आज के देशभक्ति और अंध्रराष्ट्रवाद के इस काले दौर में धर्म को चुनौती देते हुए विज्ञान और तर्क पर अपने विश्वास को बनाए रखना महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक जिम्मेदारी का कार्य है. देश में इस कार्य को जाने माने वैज्ञानिक और कार्यकर्ता गौहर रजा बखूबी निभाते आ रहे हैं. हमें ब्रह्मांड की उत्पत्ति, मनुष्य की उत्पत्ति और उसके भविष्य को लेकर गंभीर चिंताएं और जानकारी हासिल करनी होती है. हमें वैज्ञानिक चेतना और साहित्य विषय पर उनकी विद्वता को सुनने का अवसर मिला. साइंस, साइंटिस्ट के साथ जब व्यक्ति अपने ऊसूलों पर विज्ञान के साथ समाज को बदलने के लिए किले की भांति अडिग रहता है तो समझ लीजिए विज्ञान की जीत निश्चित है. हम सभी उपस्थिति लोग उनके वैज्ञानिक ज्ञान से अभिभूत तो हुए ही हैं साथ ही कोशिश है कि उनके द्वारा कही गयी बातों के सम्पादित अंश आप तक पूरी जिम्मेदारी के साथ हम पहुंचा सकें. दुनिया, मनुष्य और भविष्य को लेकर उनकी चिंताएं कैसी है प्रतिक्रिया में आप हमें अवश्य अवगत करायेंगे.
सम्पादक
पूर्णचंद्र रथ
दोस्तों,
मेरे उम्र के इस पड़ाव में मेरी मुलाकात ऐसे लोगों से अक्सर होती है जो या तो मेरे उम्र के होते हैं, जिनकी चेहरों में झुर्रियां आ चुकी होती है या फिर ऐसे लोगों से जिनकी गर्दन झुकी हुई होती है वे लोग उम्र के अंतिम पड़ाव में अपनी महत्वकांक्षाओं और अहंकार में या फिर टूटे हुए सपने के कारण जी रहे होते हैंं. जब बच्चों के पास आता हूं तो उनके चेहरे पर खूबसूरत रोशनी और आंखों से दुनिया बदल देने के ख्वाब देखता हूं.
बहरहाल मेरे पास आपको बताने के लिए कुछ भी नहीं है सारी चीजों को आपके अध्यापक खूबसूरती के साथ बता सकते हैं. मैं सिर्फ अनुभव आपके साथ साझा करना चाहता हूं.
आज सबकी जिम्मेदारी है कि बच्चों को बेहतर बनने के लिए पुराने लोगों के अनुभवों पर सवाल खड़ा करें. इसका मतलब यह नहीं कि पुरानी पीढ़ी का आदर न करें अगर आप बेहत्तर नहीं होंगे तो आसपास के हालतों और पूरी मानवता का विकास रूक जाएगा और पुरानी नस्ल की जिम्मेदारी है कि वह आने वाले नस्लों को सबकुछ बताए और यह भी बताए कि भविष्य में जो काम होना है या आगे नहीं बढ़ सका उसे कैसे पूरा किया जा सकता है? लेकिन देखा यह गया है कि बच्चों से सवाल करने का अधिकार पुरानी पीढ़ी द्वारा छिन लिया जाता है और यह कह दिया जाता है कि चुप रहो, तुम बहुत सवाल करते हो और अगर आप आगे बढऩा चाहते हैं और आपको रोका जा रहा है तो आपको इस बंधन को तोडऩा होगा और इसके लिए संघर्ष करने की जरूरत होगी.
मैं चाहता हूं कि आप कल्पना करे कि जब एक समय कुछ भी नहीं था, और यह कल्पना बड़ी मुश्किल बात है. एक वक्त (टाईम) ऐसा भी था कि कुछ भी नहीं था। फिर इंसान भी नहीं था. जीवन भी नहीं था और हमारा सोलर सिस्टम भी नहीं था. ब्रह्मांड भी नहीं था. ना दूरी थी और ना ही किसी चीज को करीब कह सकते थे, ना प्रकाश था. ना अंधेरा था. यहां तक कि वक्त भी नहीं था और यह इमेजिन करना बहुत मुश्किल है. कुछ भी नहीं था के जवाब में अधिकतर मुझे जैसे कोई छोटे वर्कशाप में कहा जाता है कि, अंधेरा था. उनकी भाषा में वहां अंधेरा तो था लेकिन एक प्राइमोडियल एटम (प्राथमिक कण) था. उसमें सारे ब्रह्मांड की एनर्जी थी. और वह फटा और तब इस ब्रह्मांड की घड़ी ने टीक टीक करना शुरू किया. तब पैदा हुआ वक्त. तब पैदा हुई दूरियां और तब पैदा हुआ तरह तरह के प्रकाश. शुरूआत में भयंकर प्रेशर और भयंकर टेम्परेचर था. इस बीच में एक स्पेस था जिसमें मैटर और एंटी मैटर पैदा हुए. टेन लेस टू पावर माइनस फार्टी सेकंड. लगातार मैटर और एंटी मैटर को खत्म कर रहा था और एंटी मैटर मैटर को खत्म कर रहा था. यह एक रस्साकशी थी. जो दोनों के बीच में चल रही थी. यह एनर्जी धीरे धीरे फैलती जा रही थी. धीरे धीरे समय बीतने के साथ ही टेम्परेचर भी कम हो रहा था और साथ ही प्रेशर भी कम हो रहा था. परिणामस्वरूप मैटर एंटी मैटर से रस्साकशी में जीत गया.
तब कहीं बाद में न्यूट्रान, प्रोट्रान और इलेक्ट्रान अस्तित्व में आए, ये आपस में मिले हाइड्रोजन एटम बना. हाइड्रोजन एटम के साथ हीलियम मैटर्स मिले. फिर धीरे धीरे और टेम्परेचर कम हुआ. फिर गुरूत्वाकर्षण बल पैदा हुआ और उस बल ने कणों को आपस में एकजुट करने का कार्य बखूबी किया, धीरे धीरे फिर सितारे बने बाद में ये मैटर फिर आपस में टकराए एक दूसरे से और इस तरह सितारे चमकने लगे और इन सितारों से बनी लाखों, करोड़ों करोड़ों आकाशगंगाएं. हर आकाशगंगाओं में करोड़ों करोड़ों सितारे. लगभग 6 बिलयन ईयर्स का समय अर्थात 600 करोड़ साल. धीरे धीरे ये आकाशगंगाएं एक दूसरे से दूर जा रही थी. इनमें से एक खाश मिल्की वे. उसमें चार बिलयन सितारा उसमें एक छोटा सा चमकता हुआ सितारा. उस सितारे के चारों तरफ घूमते हुए नौ ग्रह. उन नौ ग्रहों से एक खास ग्रह में एक एक खास सितारा जिसका रंग हरा नीला. उस ग्रह के ऊपर ज्यादातर पानी और थोड़ी सी सूखी जगह.
उस सूखी जगह में तरह तरह के कॉन्टिनेंट्स. उस कॉन्टिनेंट्स में एक खास कॉन्टिनेंट्स. उस खास कॉन्टिनेंट्स में एक खास देश. उस खास देश में एक खास शहर .उस खास शहर में एक खास कॉलेज. उस खास कॉलेज में एक खास कमरा कमरा के हाल में एक बूढ़ा (गौहर रजा)बच्चों के साथ साइंटिफिक टेंपर पर बात कर रहा हैं.
लगभग 13.79 मिलियन का समय इस ब्रह्मांड ने तय किया है, लगभग 1400 करोड़ साल. क्या इस धरती में हम इसलिए हैं कि आपस में धर्मों में मुल्कों में और जातियों में बंटने के लिए संघर्ष करें या फिर धरती पर इसलिए हैं कि हम एक दूसरे से नफरत करें. क्या ब्रह्मांड ने 1400 करोड़ साल इसलिए सृजन में लगाए कि हम एक दूसरे के खिलाफ जंग करे और एक दूसरे के खिलाफ न्यूक्लीयर बॉम गिराए. क्या हम इसलिए हैं कि हम देश के औरतों के ऊपर और दलितों के ऊपर हमले करें. ब्रह्मांड में जो राज छिपे हैं हम उसे जानने का कोशिश करें. और ब्रह्मांड में विकास का जो रास्ता अपनाया है उसे समझने की कोशिश करें. यह फैसला हममें से हरएक को अलग-अलग लेना होगा. तब हम उन लिए गए फैसलों को एक सामूहिक तरीके से उपयोग में ला सकेंगे और पूरे ब्रह्मांड में यदि रेत को इकट्ठा कर ले और उसको गिन भी ले तो उसमें से हम एक सवाल पूछने के बाद सिस्टोमेटिकली आंसर ढूंढऩे का प्रयास करते हैं. यह क्षमता पूरे ब्रह्मांड ने हमें दी है. अगर हम इसे इस्तेमाल नहीं करेंगे तो नेचर का जो कान्सेप्ट है हम उसके विरूद्ध चले जाएंगे। इसलिए सवाल पूछना बहुत जरूरी है.
मैंने हरवक्त यह जानने की कोशिश की है कि इंसान ने सवाल कब पूछना शुरू किया? हम अफ्रीका के जंगलों से निकले, तो क्या हम उस समय सवाल पूछने की क्षमता को हासिल कर चुके थे? मुझे कुछ नहीं मिला और इस सवाल का जवाब ढूंढऩे के बावजूद भी मुझे कोई जवाब नहीं मिला. जाहिर है ऐरिथमेटिक साइंस हो, फिजिक्स हो, हिस्ट्री हो लिचटरेचर हो जवाब नहीं मिला. और हम इस तरह सवालों का सिस्टोमेटिकली जवाब ढूढ़ेंगे. सवाल यह कि कोई भी घटना कैसे घटती है और चीजें क्यों घटती है. वॉय (क्यों) से पूछे जाने वाले सवाल ने भगवान और मानवता के रास्ते खोल दिए. प्रारंभिक रूप में यह कि सूरज क्यों निकलता है-भगवान की मर्जी. पौधे क्यों उगते हैं-भगवान की मर्जी. आसमान का रंग नीला क्यों है- भगवान की मर्जी लेकिन किसी ने यह सवाल पूछा होगा कि सूरज कैसे निकलता है? तब उसका जवाब भगवान की मर्जी और अल्लाह की कारस्तानी नहीं कह सका. तब उसका जवाब मुश्किल था. फूल क्यों खिलते हैं और कैसे खिलते हैं का जवाब अलग अलग है. मैंने ऐसी बहुत कोशिश की कि साइंस की कोई ऐसी परिभाषा गढ़ी जाए जिसमें सबकी सहमति हो. साइंस और साइंस टेंपर में एक चीज तलाशी कि साइंस कैसे सवाल पूछता है और दूसरी ओर सारे धर्म कैसे सवाल पूछते हैं. मैं यह नहीं चाहता कि आप सभी मेरी बात मान ले कि एक बड़े साइंटिस्ट आए थे और अच्छी अच्छी बातें बताई थी. मेरा यह मानना कतई नहीं है कि मैं क्या समझता हूं लेकिन अगर आपकी धारण धार्मिक है तो मैं उसे आहत ना करूं या उसे हटाने की कोशिश ना करूं और यह कतई नहीं करूंगा. मैं सिर्फ यह चाहता हूं कि आप सोचना सीखे और सवाल पूछना सीखे, इस तरह पूरे व्याख्यान का यही मकसद है.
धर्म में यह होता है कि कुछ सवाल पूछे जा सकते हैं और कुछ नहीं. लेकिन विज्ञान के अंदर सभी सवाल जरूरी होते हैं. कोई भी सवाल पूछा जा सकता है और उसका कोई भी जवाब तलाश किया जा सकता है. जब शुरूआत में लोगों ने पूछा होगा कि जिंदा और मुर्दा चीजों में फर्क क्या है. यह लोगों को अजीबोगरीब लगी होगी कि कोई कैसे जिता है और कैसे मर जाता है? एक जवाब आया कि जब मैटर के अंदर आत्मा पहुंच जाती है तो चीज जिंदा हो जाती है और मैटर के अंदर से आत्मा निकल जाती है तो आदमी मर जाता है. अर्थात मैटर के बाहर भी कुछ होता है और इस तरह उसे आत्मा या सोल का नाम दिया. एक कान्सेप्च्यूल सवाल है कि लोग क्यों मर जाते हैं क्यों जिंदा हो जाते हैं.यह खूबसूरत कान्सेप्च्यूल मॉडल था और जितना डेटा उस समय हमारे पास था उस सारे डेटा को एक्सप्लेन किया जा सकता था। दूसरा सवाल कि धरती का आकार कैसा है? और सूरज कैसे निकलता है. उसका भी खूबसूरत जवाब था कि धरती सिक्के की तरह चपटी है और आसमान छतरी की तरह है और उस छतरी में सितारे, चांद, सूरज सारे अपनी धुरी में मंडराते रहते हैं. एक तरफ से दूसरी तरफ. यह भी जरूरी था इंसान की जरूरत को पूरा करने के लिए कोई बाहर नहीं गया था.