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सरकारी मंडप में ‘आदर्श’ नहीं हिंदू-मुस्लिम जोड़े का मेल

रायपुर:- एक तरफ सरकार अंतरजातीय विवाह को प्रोत्साहन दे रही है। समाज में ऊंच-नीच खत्म करना चाह रही है। वहीं सरकार का एक विभाग ऐसा भी है, जो हिंदू-मुस्लिम जोड़े को आदर्श सामूहिक विवाह मंडप में फेरे नहीं लेने दे रहा। सुप्रीम कोर्ट की नजर में भले ही लिव-इन-रिलेशनशिप अपराध न हो, लेकिन विभाग इसे आदर्श विवाह के काबिल नहीं समझता। सिर्फ इसलिए कि उनके पास माता-पिता की परमिशन नहीं।

मुख्यमंत्री निर्धन कन्या योजना के तहत 25 फरवरी को साइंस कॉलेज में होने जा रहे आदर्श विवाह में ऐसे जोड़ों की छंटनी कर दी गई है। महिला एवं बाल विकास विभाग के अफसरों का कहना है कि किसी भी तरह के विवाद से बचने के लिए ऐसा किया जा रहा है। बताया गया कि आदर्श सामूहिक विवाह के लिए 500 का लक्ष्य रखा गया था और 578 आवेदन आए। आवेदनों की पड़ताल के बाद ऐसे तीन जोड़ों की छंटनी कर दी गई, जो पिछले कई सालों से लिव-इन-रिलेशन में रह रहे हैं, लेकिन उनके मां-बाप ने उन्हें शादी की अनुमति नहीं दी। एक मामला हिंदू-मुस्लिम युवक-युवती का भी आया। उन्हें भी परिवार से इजाजत नहीं मिली थी, तो अफसरों ने उन्हें माता-पिता से सहमति पत्र लाने के लिए कहा और इस बहाने उन्हें रिजेक्ट कर दिया।

…तो क्या कानून से ऊपर है विभाग?

कानून कहता है कि शादी के लिए लड़की की उम्र 18 और लड़के की 21 होनी चाहिए। इस उम्र के युवा अपनी मर्जी से शादी के लिए स्वतंत्र हैं। उन्हें किसी के परमिशन की आवश्यकता नहीं। ऐसे में केवल मां-बाप की अनुमति नहीं होने की दुहाई देकर उन्हें शादी करने से रोकना न्याय संगत नहीं लगता।

पहले से सोच लिया- बखेड़ा होगा!

लक्ष्य से ज्यादा जोड़े आए तो साइंस कॉलेज में वेदी की संख्या 125 से बढ़ाकर 145 की गई है। अब वहां 550 जोड़ों का विवाह होगा। इस बीच माता-पिता की परमिशन बिना विवाह का आवेदन करने वाले जोड़ों को लेकर विभाग के अफसरों ने पहले से सोच लिया कि बखेड़ा होगा!

इधर अंतरजातीय विवाह करने पर ये है योजना

इधर प्रदेश में अंतरजातीय विवाह करने वाले को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार शादीशुदा जोड़े को 50 हजार देती है। इसके साथ ही अंबेडकर फाउंडेशन से जोड़े को विशेष प्रोत्साहन राशि के रूप में 2.50 लाख रुपए दिए जाते हैं। इसका मतलब यह है कि कुल मिलाकर विवाहित जोड़े को 3 लाख रुपए की सहायता मिल रही।

माता-पिता की अनुमति जरूरी

लिव-इन-रिलेशन में रहने वाले कुछ जोड़ों का पता चला था कि उन्होंने पहले आर्य समाज में शादी कर ली है। वहीं तकरीबन सात जोड़े हिन्दू-मुस्लिम भी थे, लेकिन उनके पास माता-पिता की परमिशन नहीं थी। कानून ये जरूरी नहीं है, लेकिन आदर्श विवाह के लिए माता-पिता की अनुमति चाहिए ही।

– अशोक कुमार पांडेय, जिला परियोजना अधिकारी, महिला एवं बाल विकास विभाग

असंवैधानिक काम कर रही सरकार

सामूहिक विवाह की प्रक्रिया भी कानून से बंधी हुई है। और कानून के अनुसार कोई भी वयस्क शादी कर सकता है, चाहे वह किसी भी जाति-धर्म का हो। अब अगर ये बोला जाएगा कि हिंदू-मुस्लिम शादी नहीं कर सकते तो ये कानून की भावना के खिलाफ है। संविधान के विरुद्ध है। जब मैरिज एक्ट में ही प्रावधान है तो उसका उल्लंघन सरकार खुद कैसे कर सकती है?

– एचबी गाजी, वरिष्ठ अधिवक्ता, राजनांदगांव

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