(अनिल मालवीय की कलम से)
ग्वालियर घराने के महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया ने आखिरकार कांग्रेस को अलविदा कह दिया। वे अपने साथ लगभग

दो दर्जन के करीब विधायक भी ले गए। इसके चलते मध्यप्रदेश में कमलनाथ की सरकार भले ही अल्पमत में आ गई है और कांग्रेस को बड़ा झटका लगा हो, परंतु स्वयं युवराज की प्रतिष्ठा पर दाग लग गया । उन्होंने साख बढ़ाने के लिए इतनी छोटी लाइन खींची जिसका अंदाज़ा किसी को नहीं था इसे युवराज की दूसरी बड़ी हार कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी । वे न सिर्फ कांग्रेस की नजर में गिर गए बल्कि भाजपा में वे दर्जा नहीं पा सकेंगे जिसके वे हकदार हैं। वर्ष 2019 में अपने प्रतिनिधि कृष्ण पाल यादव से सवा लाख से ज्यादा मतों से हारने वाले युवराज किस मुंह से केपी का सामना करेंगे! वे भाजपा के उन नेताओं को कैसे सफाई देंगे कि उनकी कांग्रेस की मध्यप्रदेश सरकार में सुनवाई की जगह बेज्जती होती थी और उनकी साख भाजपा ने बचाई ।

फिर भाजपा में उनके साथ सही सलूक नहीं हुआ तो कहां जाएंगे ? भाजपा नेताओं का व्यवहार सर्वविदित है ।युवराज की साख बचाने का काम करने वाले ये नेता वक्त आने पर युवराज की छीछालेदर करने में पल भर भी पीछे नहीं रहेंगे। वहीं भाजपा नेता युवराज को पद आदि देकर जो एहसान करने जा रहे हैं वे कैसे उतारेंगे । क्या वे कैलाश विजयवर्गिस के उनके उस नारे का सामना कर सकेंगे जिसमें कहा गया था कि माफ करो महाराज हमारे पास शिवराज। वे शिवराज से दो-दो हाथ कैसे करेंगे ।

वे भूल गए कि उनकी दादी वसुंधरा राजे सिंधिया के साथ भाजपा नेताओं ने क्या व्यवहार किया है । फिलहाल, युवराज राजा दिग्गविजय सिंह और कमलनाथ से एक बार फिर हार गए । युवराज लड़ने की जगह पलायन कर गये ये उनकी बड़ी हार है जिसका दर्द उन्हें आने वाले वक्त में सालता रहेगा।

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