खुले में लकड़ी और पत्तियां जलाने पर प्रदूषण होता है, इसलिए लोगों पर 5000 रुपए जुर्माना लगाने का प्रावधान है, पर इन प्रावधानों को बनाने वाले हवन के धुएं से प्रदूषण रोकने की बातें करते हैं…..

जनज्वार। पिछले महीने देश के 500 से अधिक वैज्ञानिकों ने एक पत्र के माध्यम से सरकार से अनुरोध किया था कि गाय के गोबर और मूत्र में कैंसर जैसे रोगों के इलाज खोजने वाले शोध योजनाओं को बंद कर देना चाहिए। पिछले महीने ही आयुष मंत्रालय, डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी और अनेक दूसरे केंद्रीय विभागों ने भावी शोधार्थियों से देसी गाय के गोबर, मूत्र और दूध के औषधीय गुणों को खोजने वाले शोध प्रस्तावना को भेजने का आह्वान किया था, इसी के बाद वैज्ञानिकों ने एकजुट होते हुए यह पत्र लिखा। देश के लगभग सभी अनुसंधान संस्थानों और विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिक इसमें सम्मिलित हैं।

दरअसल आरएसएस-बीजेपी और दूसरे अतिवादी हिन्दू संगठनों का गाय एजेंडा किसी से छुपा नहीं है। पौराणिक कहानियों और ग्रंथों को पूरे विज्ञान का आधार मानने वाले इन लोगों की संख्या बहुत बड़ी है और देश का दुर्भाग्य यह है कि प्रधानमंत्री के साथ साथ दूसरे मंत्री भी इसी विचारधारा के हैं।

अभी हाल में ही कोरोना वायरस का इलाज भी गोबर और गौ मूत्र में खोज लिया गया, विदेशी मीडिया तो ऐसे दावों को एक चुटकुले की तरह प्रकाशित करता है। कोरॉना वायरस ही नहीं, यहां तो कैंसर और एड्स जैसे रोगों का इलाज भी लोग गोबर में खोज लेते हैं। पिछले वर्ष ही स्वघोषित साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने बड़े जोर शोर से प्रचारित किया था कि उनका स्तन कैंसर केवल गोमूत्र के लेप से ठीक हो गया है, जिसका मजाक पूरी वैज्ञानिक बिरादरी ने उड़ाया था।

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