मनमोहन सरकार ने हजारों करोड़ का घाटा सहा, परियोजनाएं रद्द की मोदी ने वापस चालू करा दी,
राहुल ने कहा – उनकी लड़ाई हम आगे बढ़ाएंगे

एजेंसियां . प्रोफेसर जीडी अग्रवाल को स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद के नाम से भी जाना जाता था. जिन्होंने गंगा की अविरलता सुनिश्चित करने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया. उनकी मांग थी कि गंगा की सहायक नदियों पर बन रहे पनबिजली परियोजनाओं को बंद किया जाए और गंगा संरक्षण प्रबंधन अधिनियम लागू किया जाए. गंगा को अविरल बनाने से लिए ‘गंगा संरक्षण प्रबंधन अधिनियम’ की मांग को लेकर अनशन पर बैठे प्रोफेसर को जबरदस्ती उठा कर एम्स ले जाया जा रहा था , वहां पहुंच कर गुरुवार ऋषिकेश के एम्स में पाया गया कि उनका निधन हो गया. प्रोफेसर अग्रवाल पिछले 112 दिन से अनशन पर थे और मंगलवार को उन्होने जल भी त्याग दिया था. जिसके बाद प्रशासन ने उन्हें जबरन उठाकर एम्स में भर्ती करा दिया.
उन्होने गंगा को पुनर्जीवित करने के लिए जिम्मेदार मंत्रियों और प्रधानमंत्री को कई पत्र लिखे. हालांकि, उनके किसी भी पत्र पर संबंधित अधिकारियों की तरफ से ऐसी प्रतिक्रिया नही आई जिसकी उन्हें उम्मीद थी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपनी तीसरी और अंतिम चिट्ठी में उन्होंने लिखा, “3.08.2018 को केंद्रीय मंत्री उमा भारती जी मुझसे मिलने आई थीं. उन्होंने फोन पर नितिन गडकरी जी से मेरी बात कराई, लेकिन प्रतिक्रिया की उम्मीद आपसे है. इसीलिए मैने सुश्री उमा भारती जी को कोई जवाब नहीं दिया. मेरा यह अनुरोध है कि आप निम्नलिखित चार वांछित आवश्यकताओं को स्वीकार करें जो मेरे 13 जून 2018 को आपको लिखे गए पत्र में सूचीबद्ध है. यदि आप असफल रहें तो मैं अनशन जारी रखते हुए अपना जीवन त्याग दूंगा.”
प्रोफेसर जीडी अग्रवाल की पीएम मोदी को लिखी पूरी चिट्ठी
सेवा में,
श्री नरेंद्र भाई मोदीजी, आदरणीय प्रधानमंत्री, भारत सरकार, नई दिल्ली
आदरणीय प्रधानमंत्री,
गंगाजी से संबंधित मामलों का उल्लेख करते हुए मैंने अतीत में आपको कुछ पत्र लिखे थे, लेकिन आपकी तरफ से अब तक मुझे इस संबंध कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है. मुझे काफी भरोसा था कि प्रधानमंत्री बनने के बाद आप गंगाजी के बारे गंभीरता से सोचेंगे. क्योंकि आपने 2014 चुनावों के दौरान बनारस में स्वयं कहा था कि आप वहां इसलिए आए हैं क्योंकि आपको मां गंगाजी ने बुलाया है- उस पल मुझे विश्वास हो गया कि शायद गंगाजी के लिए कुछ सार्थक करेंगे. इस विश्वास के चलते मैं पिछले साढ़े चार साल से शांति से इंतजार कर रहा था.
शायद आपको मालूम होगा कि मैं पहले भी कई बार गंगाजी के हित में कार्यों को लेकर अनशन कर चुका हूं. इससे पहले मेरे आग्रह के आधार को स्वीकार करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने लोहारी नागपाला जैसे बड़े प्रोजेक्ट (जो कि 90 फीसदी पूरा हो चुका था) पर चल रही सभी तरह की गतिविधीयों को न सिर्फ बंद करने का निर्णय लिया बल्कि उसे रद्द भी कर दिया था. इस कारण सरकार को हजारों करोड़ का घाटा भी सहना पड़ा, फिर भी मनमोहन सिंह जी आगे बढ़े और गंगाजी के हित में यह सब किया.
इसके अतिरिक्त तत्कालीन सरकार ने आगे बढ़ते हुए गंगोत्री से लेकर उत्तरकाशी तक भगीरथी जी की धारा को ईको सेंसिटिव जोन घोषित किया. ताकि गंगाजी को नुकसान पहुंचा सकने वाली गतिविधियां फिर कभी न हों.
मुझे आपसे उम्मीद थी कि आप गंगाजी के लिए दो कदम आगे बढ़ते हुए विशेष प्रयास करेंगे, क्योंकि आपने आगे आते हुए गंगा पर अलग से मंत्रालय बनाया था. लेकिन पिछले चार वर्षों में आपकी सरकार द्वारा किए गए सभी कार्य गंगाजी के लिए तो लाभकारी नहीं रहे, लेकिन उनके स्थान पर केवल कॉरपोरेट क्षेत्र और व्यावसायिक घरानों का लाभ देखने को मिला. अब तक आपने केवल गंगाजी से लाभ अर्जित करने के मुद्दे पर सोचा है. गंगाजी के संबंध में आपकी सभी परियोजनाओं से धारणा बनती है कि आप गंगाजी को कुछ भी नहीं दे रहे हैं. यहां तक कि महज बयान को तौर पर आप कह सकते हैं कि गंगाजी से कुछ लेना नहीं है लेकिन उन्हें हमारी तरफ से कुछ देना है.
3.08.2018 को केंद्रीय मंत्री साधवी उमा भारती जी मुझसे मिलने आईं थी. उन्होंने फोन पर नितिन गडकरी जी से मेरी बात कराई, लेकिन प्रतिक्रिया की उम्मीद आपसे है. इसीलिए मैंने सुश्री उमा भारती जी को कोई जवाब नहीं दिया. मेरा यह अनुरोध है कि आप निम्मलिखित चार वांछित आवश्यकताओं को स्वीकार करें जो मेरे 13 जून 2018 को आपको लिखे गए पत्र में सूचीबद्ध है. यदि आप असफल रहे तो मैं अनशन जारी रखते हुए अपना जीवन त्याग दूंगा. मुझे अपना जीवन त्यागने में कोई हिचक नहीं होगी, क्योंकि गंगाजी का मुद्दा मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण और अत्यंत प्रथमिकता वाला है.
मैं आईआईटी में प्रोफेसर, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का सदस्य होने साथ गंगाजी पर बने सरकारी संगठनों का सदस्य रहा हूं. इन संस्थाओं का हिस्सा होने के चलते इतने सालों से अर्जित अपने अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूं कि आपकी सरकार के चार सालों में गंगाजी को बचाने की दिशा में किए गए एक भी कार्य को फलदायक नहीं कहा जा सकता है.
मेरा आपसे अनुरोध है, मैं दोहराता हूं, कि निम्नलिखित आवश्यक कार्यों को स्वीकार किया जाए और क्रियान्वित किया जाए. मैं यह चिट्ठी उमाजी के जरिए भेज रहा हूं.
आवश्यक कार्यों के लिए मेरे चार अनुरोध इस प्रकार हैं:
1. साल 2012 में हुए गंगा महासभा द्वारा तैयार किया गया मसौदा विधेयक तत्काल संसद में लाया जाए और पास कराया जाए (इस मसौदे को तैयार करने वाली कमेटी में मै, एडवोकेट एमसी मेहता और डॉ परितोष त्यागी शामिल थे).
यदि ये नहीं हो पाए तो इस मसौदा विधेयक के चैप्टर 1 (अनुच्छेद 1 से अनुच्छेद 9) पर अध्याधेश लाकर तत्काल राष्ट्रपति से मंजूरी दिलाते हुए लागू किया जाए.
2. उपर्युक्त कार्य के हिस्से के रूप में अलकनंदा, धौलीगंगा, नंदाकिनी, पिंडर और मंदाकिनी पर निर्माणाधीन सभी पनबिजली परियोजनाओं को रद्द किया जाए. इसके साथ ही गंगाजी और उनके पोषित करने वाली सभी धाराओं पर बनने वाले सभी प्रस्तावित पनबिजली परियोजनाओं को भी रद्द किया जाए.
3. मसौदा विधेयक के अनुच्छेद 4(D)-1 वनों की कटाई, 4 (F) जीवित प्रजातियों की हत्या/प्रसंस्करण और 4(G) सभी तरह की खनन गतिविधियों को पूरी तरह से रोका जाए और लागू किया जाए. इसे हरिद्वार कुम्भ क्षेत्र में विशेषकर लागू किया जाए.
4. जून 2019 तक गंगा भक्त परिषद का गठन किया जाए जिसमें आपके द्वारा नामित 20 सदस्य हों, जो गंगाजी के पानी में शपथ ले कि वे गंगाजी और केवल गंगाजी के अनुकूल हितों को लाभ पहुंचाने के हित में ही कार्य करेंगे और गंगाजी से संबंधित सभी कार्यों के संबंध में, इस परिषद की राय निर्णायक के रूप में ली जाएगी.
चूंकि मुझे 13 जून 2018 को आपको भेजे गए पत्र का उत्तर नहीं मिला, इसलिए मैं 22 जून 2018 से अपना अनशन शुरू किया है जैसा कि मैने इस पत्र में लिखा है. इस प्रकाश में यह पत्र आपकी जल्द से जल्द उचित कार्रवाई की उम्मीद के साथ आपका धन्यवाद.
आपका
स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद
(पूर्व में प्रो. जी.डी. अग्रवाल)

गंगा की अविरलता के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले प्रोफेसर जीडी अग्रवाल का अनशन खत्म कराने के लिए पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री उमा भारती उनसे मिलने गई थीं और नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री श्री नितिन गडकरी से उनकी फोन पर बात भी करवाई थी. लेकिन प्रोफेसर अग्रवाल ने गंगा एक्ट लागू होने तक अनशन जारी रखने की बात कही थी.
क्या वाकई मान ली गई थीं प्रोफेसर अग्रवाल की अधिकतर मांगें ?
यह भी गौरतलब है कि जिस दिन प्रोफेसर अग्रवाल को अस्पताल में भर्ती कराया गया उसी दिन यानी बुधवार को केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बाताया कि गंगा के ई-फ्लो के लिए केंद्र सरकार ने अधिसूचना जारी की है. इसके तहत सभी बैराज को निर्देश दिए गए हैं कि उन्हें साल भर किस तरह से गंगा में पानी छोड़ना है ताकि गंगा का प्रवाह निरंतर बना रहे और गंगा को अविरल बनाए रखने के साथ ही निर्मल भी बनाया जा सके.
प्रोफेसर जीडी अग्रवाल के अनशन संबंधी सवाल पर गडकरी ने कहा था कि उनकी 70-80 फीसदी मांगें मान ली गई हैं. गडकरी ने यह भी बताया कि गंगा और उसकी सहायक नदियों पर कुछ पनबिजली परियोजनाओं को रद्द करने की उनकी मांग थी. जिसके लिए सरकार सभी हितधारकों को साथ लाकर मामले को जल्द से जल्द सुलझाने का प्रयास कर रही है. इस संबंध में उन्हें पत्र लिखा गया है और उन्हें भरोसा है कि प्रोफेसर अग्रवाल अपना अनशन खत्म कर देंगे.
प्रोफेसर जीडी अग्रवाल गंगा को बांधों से मुक्त कराने के लिए कई बार आंदोलन कर चुके थे. मनमोहन सरकार के दौरान 2010 में उनके अनशन के परिणामस्वरूप गंगा की मुख्य सहयोगी नदी भगीरथी पर बन रहे लोहारी नागपाला, भैरव घाटी और पाला मनेरी बांधों के प्रोजेक्ट रोक दिए गए थे, जिसे मोदी सरकार आने के बाद फिर से शुरू कर दिया गया. सरकार से इन बांधों के प्रोजेक्ट रोकने और गंगा की अविरलता बरकरार रखने के लिए गंगा एक्ट लागू करने की मांग को लेकर प्रोफेसर अग्रवाल अनशन पर थे.
पीएम मोदी , उमा ने जताया शोक, तोगड़िया भड़के
प्रोफेसर अग्रवाल के निधन के बाद तमाम राजनीतिक हस्तियों ने शोक व्यक्त किया है. प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर लिखा, ”श्री जीडी अग्रवाल जी के निधन से दुखी हूं. सीखने, शिक्षा, पर्यावरण संरक्षण, विशेष रूप से गंगा सफाई की दिशा में उनके जुनून के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा. मेरी श्रद्धांजलि.”
केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने कहा, ”मैं उनके निधन से आहत हूं. मुझे डर था कि ऐसा होगा. मैंने नितिन गडकरी और अन्य लोगों को उनके निधन के बारे में बता दिया है.”
अंतरराष्ट्रीय हिंदू परिषद के अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया ने कहा कि प्रोफेसर अग्रवाल चाहते थे कि प्रधानमंत्री गंगा को अविरल बनाने के उनके प्रोजेक्ट को देखें. उन्होंने कहा प्रोफेसर अग्रवाल पिछले 111 दिन से अनशन पर थे और कमजोर हो चुके थे. फिर भी उन्हें जबरन उठाया गया, ठीक वैसे ही जैसे कुछ दिनों पहले अयोध्या से महंत परमहंस दास को हटाया गया. सरकार से उनसे बेहतर बर्ताव की उम्मीद थी.
राहुल ने कहा – उनकी लड़ाई हम आगे बढ़ाएंगे

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने गुरुवार को पर्यावरण कार्यकर्ता जी डी अग्रवाल की मृत्यु पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि उन्होंने गंगा नदी के लिए अपना जीवन त्याग दिया. राहुल ने यह भी कहा कि अब वह उनकी लड़ाई को आगे बढ़ाएंगे.
हालांकि विपक्ष ने प्रोफेसर जीडी अग्रवाल के निधन को सीधे सरकार की संवेदनहीनता करार देते हुए हमला बोला है. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, “मोदी जी ने कहा था कि मां गंगा ने बुलाया है लेकिन गंगा 2014 से भी ज्यादा प्रदूषित हो गईं. गंगा की सफाई के लिए 22000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए लेकिन उसका एक चौथाई भी खर्च नहीं हुआ. क्या नमामी गंगे भी जुमला है?
हो सकता है जीडी अग्रवाल जी की कुर्बानी अंधी सरकार को रोशनी दिखाए.”
वहीं पूर्व केंद्रीय पर्यावरण मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने प्रोफेसर अग्रवाल के निधन को शहादत करार देते हुए कहा कि वे सिर्फ निर्मल गंगा ही नहीं अविरल गंगा के भी अथक योद्धा थे. ये मेरा सौभाग्य था कि गंगा की अविरलता सुनिश्चित करने के लिए उत्तराखंड में गंगा की सहायक नदियों पर उनके मशवरे को लागू करने का अवसर मिला. मैं उनकी प्रतिबद्धता, निष्ठा, विश्वास और जुनून को सलाम करता हूं.” सारे देश के पर्यावरण वादियों में गुस्सा और क्षोभ है , कहा जा रहा है कि गंगा जैसी अन्तराष्ट्रीय और धार्मिक सांस्कृतिक महत्त्व के मुद्दे पर भी सरकार की काहिली और इस असफलता को प्रो अग्रवाल की शहादत ने प्रमाणित कर दिया है .

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