ये आलेख छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यिक अध्येता नथमल शर्मा ने लिखा और आज ही खबर आई की प्रो जी डी अग्रवाल अब नहीं रहे , दम तोड़ दिया गंगा के इस साधक सेवक ने 112 दिन के अनशन के बाद शहादत दे दी , ढोंगी और निर्मम राजनीति और सरकार के नाकारापन ने जान ले ली एक सच्चे गंगापुत्र की .

86 बरस में 111 दिन…

– नथमल शर्मा , बिलासपुर
मां की आराधना के दिन हैं ये । सब तरफ मां की भक्ति में लीन हैं लोग । ऐसे में एक बेटा गंगा मैया के लिए अनशन कर रहा है । आज उसे एक सौ ग्यारह दिन हो गए उपवास करते हुए । ज्योति कलश की जगमग और मंदिरों की सुंदर तस्वीरों के बीच कहीं भी इस बेटे की कोई खबर ही नही हैं । अखबारों, टीवी चैनलों सबसे ही गायब है यह खबर। यहां तक कि सोशल(?) मीडिया पर भी कोई बात करते नहीं दिख रहा ।

बात प्रो जी डी अग्रवाल उर्फ स्वामी ज्ञान स्वरूप सानन्द की है । आई आई टी में प्रो रहे स्वामी सानंद 86 बरस के हैं । अपने विभाग के प्रमुख भी रहे । एच ओ डी । सेवानिवृत्त होने के बाद से ही गंगा नदी के लिए जैसे खुद को समर्पित कर दिया । दुनिया की सबसे अलग और पवित्र नदी है गंगा । जिसके पानी में रोग प्रतिरोधक क्षमता है। वैज्ञानिक शोधों से यह बात साबित भी हो चुकी है । सिर्फ गंगाजल ही है जो लम्बे समय तक खराब नही होता । करीब ढाई हज़ार किलोमीटर तक बहती है गंगा । गंगा किनारे देश के प्रमुख शहर बसे हुए हैं । लाखों लोगों को जीवन देती है गंगा । यह गंगा प्रदूषण की शिकार हो गई है । हम इसे लगातार प्रदूषित कर रहे हैं। करते जा रहे हैं । 86 बरस के प्रो अग्रवाल की मांग है कि गंगा को प्रदूषण से बचाने के लिए सख्त कानून बनाये जाएं । इस मांग को लेकर करीब चार माह पूर्व 22 जून 2018 से वे हरिद्वार में अनशन पर बैठ गए । अन्न त्याग दिया , सिर्फ़ पानी पीकर अनशनरत रहे । अनशन के एक सौ दसवें दिन यानी कल 10 अक्टूबर से उन्होंने पानी भी त्याग दिया । सरकार की तरफ़ से कोई सुनवाई नही । हो सकता है इस टिप्पणी के छपते तक उन्हें गिरफ्तार कर जबरन अस्पताल में भरती करा दिया जाए । सरकारें ऐसे ही करती है ।

86 बरस का एक व्यक्ति एक सौ ग्यारह दिनों से अनशन कर रहा है । वह भी अपने लिए नहीं । किसी निजी मांग को लेकर नहीं । गंगा की सफाई के लिए। गंगा को प्रदूषण से बचाने के लिए । गंगा के लिए समाज के लोगों को कुछ करने के लिए। वे अब स्वामी सानन्द कहलाते हैं । बहुत पढ़े लिखे हैं । खुद को पर्यावरण वैज्ञानिक भी कहते हैं । लेकिन यह ख़बर सिरे से ग़ायब है । किसी अख़बार में आज एक पंक्ति भी नहीं । किसी खबरिया चेनल पर कोई तस्वीर नहीं । वे (पर्यावरणविद) अपना जीवन दांव पर लगाकर गंगा को बचाने की कोशिश कर रहे हैं । सरकार और समाज सब चुप हैं ? आज कोई नेता गंगा आरती के लिए किसी घाट पर चले जाए तो सारा दिन सारे चेनल वही दिखा दिखा कर धन्य होते रहेंगे । इससे टीआरपी भले ही न बढ़े पर तिजोरी जरूर भरते रहती है । और तिजोरियां भरना ही आज मुख्य मकसद हो गया है । चाहे मीडिया हो या पॉलिटिशियन । सेवा के लिए थोड़े ही आये हैं । व्यापारियों की ही बपौती थोड़े है तिजोरी भरना ? सब भरेंगे । भरने में लगे हुए हैं । सेवा , समाज सेवा के लिए सामाजिक संस्थाएं है न । अब तो हर कम्पनी में सीएसआर फंड अनिवार्य है । इस फंड से होती है समाज सेवा । अब ऐसी सेवा में गंगा को बचाने काकाम क्यों आये भला ? वह तो सरकार का काम है । सरकार कर भी रही है । अपने देश के प्रधान सेवक खुद को गंगापुत्र कहते हैं । गुजरात की नर्मदा को छोड़ गंगा किनारे बनारस आकर चुनाव लड़े और जीते । फिर अपनी सरकार से नमामि गंगे योजना चला रहे हैंं । बाकायदा मंत्रालय ही बना दिया है । ढाई हजार करोड़ रुपयों से ज्यादा का बजट है । पहले की सरकारें भी हजारों करोड़ खर्च करती रहीं हैं । पहले की सरकारों ने भी खूब कोशिश की (?) । पर गंगा और मैली होती गई, होती जा रही है ।

नदियों के किनारे सभ्यता विकसित हुई। गांव बसे । फिर वे शहर बने और फिर महानगर । पानी ने सबको जीवन दिया । खेतों में फसलें लहलहाई तो कारखानों की चिमनियों ने धुंआ उगलना भी शुरू किया। हमने भी अपनी सारी गंदगी नदियों में डालनी शुरू की जो आज भी बदस्तूर जारी है । ऐसी ही हरकत के कारण कुछ बरस पहले मुंबई की मीठी नदी नाराज़ हो गई थी । मुंबई पर संकट आ पड़ा था । ऐसी ही हरकत के कारण हमारी अरपा नदी सूख गई है और बिलासपुर का पानी भी । लगता है जैसे सूखी अरपा की तरह हमारी आँखों का पानी भी सूख गया है। गर्मी आती है तब हम अरपा को बचाने की बात कर लेते हैं और तस्वीरें खिंचवा लेते हैं ।( ऐसा लगभग हर शहर के साथ ही तो हो रहा है)। गंगा की तरह अरपा के आंसू भी किसी को दिखाई नहीं देते । बात करने वाले लड़ते हुए भी नही दिखते । स्वामी सानन्द की तरह कोई आगे आये इसकी तो क्या उम्मीद

करना ? ऐसा करने से वोट नहीं मिलते । ऐसा करने से तिजोरी नहीं भरती । अरपा को (गंगा को भी) बचाने की बात करना और बचाना दोनों में बहुत फर्क है । सरकारें तो आती -जाती रहेंगी। हम शायद इसे सरकार का ही काम समझकर आंदोलन करने की तस्वीरें खिंचवाते रहेंगे । राजनीति, चुनाव और वोट के अलावा भी तो हम कुछ सोच सकते हैं ?

प्रोफेसर और अब स्वामी सानन्द की बात कोई नही सुन रहा है, फिर भी वे अनशन कर रहे हैं । वे सिर्फ़ वोटर ही नही नागरिक भी हैं । दायित्वबोध के साथ लड़ रहे सानन्द स्वामी की बात हरिद्वार के जंगलों में न गूंजे । गंगा की कलकल धारा के शोर में न सुनाई दे पर 86 बरस का वह आदमी अपनी बात कह रहा है । गंगा बह रही है । अरपा भी । हम फिर जुट गए हैं खुद पर राज करवाने के लिए नई सरकार चुनने । चूंकि हम नागरिक नहीं सिर्फ़ वोटर हैं इसलिए अरपा पर कोई सवाल नहीं पूछेंगे , जाहिर है गंगा पर भी नहीं । गंगा की रेत किसी को तो पुकारती है , अरपा की रेत शायद किसी को नहीं ? या अंतःसलिला की तरह अपने भीतर बह रही अरपा की आवाज़ हम सुनना ही नही चाहते ? पुकार तो रही है अरपा भी ।

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