कि आखिर प्रिंटिंग और पार्टी को डिलीवरी का काम आखिर होगा कैसे?

रायपुर , आमतौर पर माना जाता रहा है कि चुनावों के मौसम में पोस्टर्स, फ्लेक्स , पाम्पलेट एवम प्रिंन्टिंग सामग्री का व्यवसाय बहुत होता है, ये भी कि इतना व्यवसाय होता है कि साल भर से ज्यादा का फायदा इससे हो जाता है ,किंतु इस सबसे अलग है इस विधानसभा चुनाव के अवसर पर हालात ।
ऐसे दिशा निर्देश जारी किए गए हैं कि किसी को समझ ही नही आ रहा है कि आखिर प्रिंटिंग और पार्टी को डिलीवरी का काम आखिर होगा कैसे?
बिना आयोग की अनुमति के प्रत्याशी कुछ सामग्री प्रकाशित नही कर सकते ये बात तो समझ में आती है किंतु स्वीकृति प्राप्त सामग्री के प्रकाशन के लिए भी मुद्रक को कई तरह के पापड़ बेलने पड़ते हैं। उदाहरण के लिए – किसी भी मुद्रक को स्वीकृत मैटर के छपाई (प्रकाशन) के बाद एक जिले से प्रत्याशी संबंधित दूसरे जिले में प्रेषित करने के लिए चुनाव आयोग के मुख्यालय रायपुर आना पड़ेगा। यदि बस्तर संभाग कोंडागांव के किसी प्रत्याशी ने दस हजार पाम्पलेट छापने का आदेश जगदलपुर के किसी प्रिंटर को दिया तो छापे गए पोस्टर को रायपुर से कोंडागांव भेजने के लिए उसे अनुमति प्राप्त करने रायपुर चुनाव आयोग आना पड़ेगा क्योंकि किसी भी जिला निर्वाचन अधिकारी को केवल अपने जिले की सीमा तक ही परिवहन की अनुज्ञा देने का अधिकार है।
अब जगदलपुर से कोंडागांव 72 किलोमीटर पोस्टर भेजने के मुद्रक या प्रत्याशी को रायपुर में आ कर वाहन और उसके सारे कागजात, चालक की ID सहित सभी प्रमाणपत्र ले कर सुबह 11 से ले कर शाम 5 बजे तक चुनाव आयोग कार्यालय में डटे रह कर अनुज्ञा प्राप्त करना होगा तब जा कर उसे जगदलपुर से कोंडागांव भेजने के लिए आधिकारिक व्यवस्था हो सकेगी, अन्यथा इस सामग्री को परिवहन में अवैध घोषित माना जायेगा।
इतने बड़े राज्य में एक जिले से दूसरे जिले में कौन निर्दलीय या पार्टी प्रत्याशी रायपुर आकार अनुमति ले सकेगा यह शोचनीय विषय है ।
यह जानना भी दिलचस्प है कि राज्य स्तर पर एक प्रत्याशी को पूरे चुनाव के कार्यकाल हेतु एक बार ही प्रचार सामग्री भेजने की अनुमति प्राप्त होगी । गैरेज या ट्रान्सपोर्ट से प्रचार सामग्री भेजने का प्रावधान ही नहीं है । सभी जानते हैं कि प्रचार सामग्री प्रिंन्टिंग की अधिकांश मशीने व संस्थान रायपुर में ही है ऐसी परिस्थिति में प्रिंन्टिंग सामग्री भेजने कीके इतने कठिन नियम कहीं से भी व्यवहारिक नहीं है इसमें तत्काल परिवर्तन की जरुरत है । प्रचार कार्य हेतु इतने कम समय में पाम्पलेट पोस्टर छाप कर भेज पाना मुद्रकों को संभव प्रतीत नहीं हो पा रहा है ।
कुल मिला कर माना यह जा रहा है की जो प्रचार सामग्री का व्यवसाय सामान्य दिनों से भी कम व्यवसाय करके नोटबंदी और जीएसटी की मार से पहले से ही कराह रहा है इस चुनाव मौसम में कड़ी आचार संहिता ने उसे फिर से नया झटका दिया है .

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here