कोविड-19 के प्रसार का इस्तेमाल से  सरकार लोकतांत्रिक अधिकारों को सीमित नहीं कर सकती है.

  (प्रेस की वर्तमान स्थिति को दर्शाने वाला महत्वपूर्ण आलेख ‘दि हिन्दू’ में प्रसिद्ध पत्रकार तथा एशियन स्कूल आफ जर्नलिज्म के प्राध्यापक  ए. एस. पन्नीर्सेल्वन के  “शूटिंग दी मैसेंजर” में पिछले  6 अप्रैल2020  को प्रकाशित हुआ इसका हिन्दी अनुवाद पाठकों के लिए प्रस्तुत है)

जहाँ महामारी से होने वाले आर्थिक नुकसान की विस्तार से चर्चा हो रही है, वहीं लोकतांत्रिक जगहों के लगातार सिकुड़ते जाने के खतरे की तरफ हमारा ध्यान नहीं जा रहा है l इस वैश्विक खतरे को हम स्पष्ट रूप से इस समय हंगरी में देख सकते हैं, जहाँ हाल में प्रधानमंत्री विक्टर ओर्बन ने कठोर कार्रवाई करने के लिए संसदीय स्वीकृति प्राप्त कर ली है l कठोर कार्रवाई में गलत सूचना प्रसारित करने वाले को जेल तक में डाल देने का प्रावधान है l प्रधानमंत्री को एक अध्यादेश द्वारा यह अधिकार दिया गया है और इस आपात स्थिति की कोई स्पष्ट समय-सीमा भी नहीं बताई गई है l इस अध्यादेश में विपक्षी पार्टियों द्वारा दिए गए सुझावों को सत्ता पक्ष ने नहीं माना है, इस समय उसके पास संसद में प्रचंड बहुमत है l

इसी अखबार (दि हिन्दू) के सम्पादकीय “अविवेकी समर्थन” (2 अप्रैल) में एक मुद्दा उठाया गया है कि कैसे भारत के उच्चतम न्यायालय ने बिना सोचे-समझे भारत सरकार के उस आधिकारिक बयान को मंज़ूर कर लिया, जिसमें यह कहा गया कि लॉकडाउन के दौरान उसके तीन महीने तक चलते रहने के ‘फेक न्यूज़’ से ही पूरे देश के प्रवासी मजदूरों के बीच इतनी अफरा-तफरी मची l जैसा अखबार (दि हिन्दू) के सम्पादकीय में बताया गया कि न्यायालय और सरकार दोनों ने इन तथ्यों का उल्लेख करना ज़रूरी नहीं  समझा कि सम्पूर्ण लॉकडाउन के लिए सिर्फ चार घंटे का समय दिया गया, राज्यों के साथ कोई तालमेल नहीं किया गया और न ही कोई स्पष्ट योजना बनाई गई, बिना पैसे और ख़त्म होते भोजन से भयाक्रांत लोग अपने परिवार की चिंता में अपने घर की तरफ चल पड़े! इसी सुनवाई में केंद्र सरकार ने यह भी निर्देश प्राप्त कर लिया कि सरकार द्वारा दिए जा रहे तथ्यों के अलावा मीडिया में “कुछ भी” अलग से छापा और प्रसारित नहीं किया जाए l यह “भारतीय विक्टर ओर्बन-क्षण” है, जहाँ सिर्फ सरकार का आधिकारिक बयान रहेगा, जिसमें प्रचारात्मक तत्व निहित होगा, अब इसे कानून की हरी झंडी भी मिल गई है l

इस मसले में हालाँकि उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 पर खुली बहस के अधिकार को बहाल रखा है, लेकिन साथ ही उसने मीडिया को यह भी निर्देश दिया है कि जनता में अफरा-तफरी और भ्रांत सूचनाएँ न फैलें, इसलिए महामारी के सन्दर्भ में वह केवल सरकार के आधिकारिक बयान का प्रसारण करे l जबकि सचाई यह है कि फेक न्यूज़ और भ्रामक बातें जनता के बीच ऊपर से आती हैं, जिसके पास सत्ता और शक्ति है, वही यह कर सकता है l ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के रायटर्स इंस्टिट्यूट फॉर दि स्टडी ऑफ़ जर्नलिज्म के फेक न्यूज़ सम्बन्धी अध्ययन का निष्कर्ष यही है l

उदहारण के रूप में देखते हैं कि ‘आयुष मंत्रालय’ (आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, और होमियोपैथ) ने इस महामारी के बीच क्या किया? पिछले सप्ताह ‘आयुष’ के राज्य मंत्री श्रीपद नाईक ने कहा कि आयुर्वेद और होमियोपैथी दवाइयों से इंग्लैंड के प्रिंस चार्ल्स कोविड-19 के संक्रमण से ठीक हो गए और उनका स्वस्थ होना “हजारों सालों से चली आ रही हमारी प्राचीन चिकित्सा-प्रणाली को प्रमाणित करता है”l लेकिन राजकुमार चार्ल्स के प्रवक्ता ने इस दावे को गलत बताया l “दि इंडियन एक्सप्रेस” को भेजे अपने ई-मेल में दि क्लारेंस हाउस प्रवक्ता ने कहा –“ यह सूचना गलत है l प्रिंस ऑफ़ वेल्स ने इंग्लैंड के एनएचएस (नेशनल हेल्थ सर्विस) के मेडिकल परामर्श का पालन किया है, इससे ज़्यादा कुछ नहीं!”

दि प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया ने इस घटना-क्रम के बाद तत्काल अपना बयान जारी किया, जो इस प्रकार है – “दि प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया सारे अखबारों को सुझाव देता है कि कोविड-19 के इलाज के सम्बन्ध में आयुष के किसी प्रचार और विज्ञापन को छापना बंद करें l देश में इस समय महामारी से जो संकट आया है, उसे देखते हुए आयुष दवाइयों और सेवाओं के प्रचार-प्रसार से भ्रांतियाँ फैलेंगी, जिन्हें तत्काल रोकना ज़रूरी है l”

इसी सन्दर्भ में हमें सरकार और उच्चतम न्यायालय दोनों को स्वतंत्र प्रेस की महत्ता के बारे बताना चाहिए l लगभग तीन दशक पहले नोबेल पुरस्कार विजेता प्रो. अमर्त्य सेन ने जोर देकर कहा था कि “दुनिया के भयंकर अकालों का इतिहास यही बताता है कि किसी स्वतंत्र और लोकतांत्रिक देश में बिना स्वतंत्र प्रेस के अकाल से नहीं लड़ा जा सकता है l” यूनेस्को का एक अध्ययन यह बताता है कि “प्रेस की स्वाधीनता और सुशासन एक-दूसरे के पूरक हैं l देश के आर्थिक एवं मानव-संसाधन विकास में दोनों एक-दूसरे की मदद करते हैं l”.

  • ए. एस. पन्नीर्सेल्वन

साभार दि हिन्दू, सोमवार, 6 अप्रैल, 2020 /मूल  अंग्रेज़ी से अनूदित – जावेद अख़्तर खान

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