यह आदमी जब, जलती अंगीठी लेकर उठ खड़ा होगा
तब इन आलीशान मकानों का क्या होगा?

(गणेश कछवाहा)
रायगढ़:- तत्कालीन मध्यप्रदेश के छत्तीसगढ़ अंचल के एक समृद्ध गांव नरियरा के सामान्य परिवार साव कुल में एक दीपक का जन्म हुआ वह बहुत प्रकाशमय विशेष दिन था 27 मई 1942 बालक का नामकरण रखा गया बलदेव। नरियरा के पुराने बूढ़े पीपल और वट के वृक्षों के शीतल वायु के झोंकों से जहां पूरा वातावरण शीतल व पुष्पों के सुगंध से मन मोहक मदमस्त तथा वनपंखियों के मधु कलरव से मधुगुंजित होता रहा होगा। वहीं मंदिर की घंटियां व मुहल्ले की महिलाओं ने सोहर गाकर नवजात शिशु को आशीर्वाद दिया होगा। यही संस्कार ग्रामीण संस्कृति, परिवेश, माटी प्रेम नन्हें बालक बलदेव के मन में अंकुरित हो गए ।

डॉ बलदेव बहुत सहज व सरल थे पर राष्ट्रीय साहित्य परिदृश्य में काफी सम्माननीय व्यक्ति थे । उनसे वरिष्ठ और समकालीन साहित्यकारों से सीधे सरोकार था ।व्यक्तिगत पत्राचार भी बहुत होते थे।राष्ट्रीय साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मुद्दों पर उनका जिक्र और हस्तक्षेप अवश्य होता था। श्री जगदीश मेहर और मेरे साथ उनका केवल सांस्कृतिक मित्रवत संबंध ही नहीं था वरन बहुत अच्छे पारिवारिक रिश्ते थे। यदि सप्ताह में एक दो बार मेल मुलाकात या वार्तालाप न हो तो कड़ी शिकायत होती थी।

छत्तीसगढ़ विशेष तौर पर रायगढ़ के,कला ,संस्कृति एवं पुरातत्व पर शोध तथा उसे संजोकर ,संरक्षित एवं समृद्ध करने का दुर्लभ व महत्वपूर्ण कार्य किया है डॉ बलदेव साव जी ने।मुझे याद आता है जब पद्मश्री पंडित मुकुट धर पांडेय की कविताओं को संग्रहित कर “विश्वबोध”नाम पुस्तक को प्रकाशित करते हैं तथा राष्ट्र के प्रमुख पत्र पत्रिकाओं में उसकी समीक्षा प्रकाशित कर एक विमर्श पूरे देश में खड़ा करते हैं कि “पद्मश्री मुकुट धर पांडेय छायावाद के प्रवर्तक कवि हैं” ठीक उसी तरह काफी शोधात्मक विश्लेषण कर “रायगढ़ कथक शैली” को ‘ रायगढ़ घराने ‘के नाम से स्थापित करने हेतु संगीत जगत में एक नया इतिहास रचने की कोशिश की है।कथक में केवल दो ही घराने प्रसिद्ध है जयपुर और लखनउ।जैसे ही राष्ट्रीय मंचों पर रायगढ़ कथक शैली की चर्चा शुरू हुई तो एक नई बहस शुरू हुई। जिसपर कथक सम्राट पद्मविभूषण पंडित बिरजू महाराज जी,साहित्यकार अशोक बाजपेई,कथक रश्मि बाजपेई एवं प्रमुख कथक आचार्यों को हस्तक्षेप करना पड़ा और आज रायगढ़ कथक को लेकर कथक नृत्यांगनाओं व गुरुओं द्वारा पूरे देश भर में कलात्मक प्रस्तुति की जा रही है। रायगढ़ गणेश मेला चक्रधर समारोह को राष्ट्रीय पहचान दिलवाने में उनके शोध परख लेख एवं रिपोर्ट की मुख्य भूमिका थी। पुरातत्व के क्षेत्र में अनुपम दास एवं डॉ बलदेव साव ने काफी परिश्रम किया। सिंघन पुर, काबरा पहाड़ के शैल चित्रों और आसपास के क्षेत्रो के पुरातत्व की खोज कर उसे संरक्षित एवं समृद्ध करने का महत्वपूर्ण कार्य किया है।

साहित्य व संगीत के क्षेत्र के प्रारंभिक प्रतिभाओं से लेकर बड़े और प्रसिद्ध शख्सियतों से मिलकर उन्हें जानना समझना और खुद बहुत कुछ सीखने की कोशिश करना उनके शोध का एक हिस्सा हुआ करता था।छोटे बड़े सबको जोड़कर एक साथ लेकर चलने का काम करते थे जिससे वह परम्परा निरंतरता को प्राप्त करती चली गई। उन्होंने पुरानी सांस्कृतिक विरासत के साथ साथ वर्तमान सांस्कृतिक परम्परा को भी सहेजने का काम किया। छत्तीसगढ़ बनने के बाद छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक और पुरातात्विक महत्व को संग्रहित कर राष्ट्रिय पटल पर रेखांकित करने का काम किया।

सबसे पहले शारदा साहित्य सदन के प्रकाशन पर बहुत से साहित्यकारों को साहित्य जगत से परिचित कराया फिर सृजन सम्मान समिति और वैभव प्रकाशन के माध्यम से नए,पुराने और प्रतिष्ठित साहित्यकारों का पूरी ऊर्जा के साथ साहित्य की प्रथम पंक्ति में स्थापित किया। आज छत्तीसगढ़ के बहुत से साहित्यकार,संस्कृति कर्मियों,को हम डॉ बलदेव की भूमिका,संपादन, रचनाओं के संग्रहण, एवं प्रकाशन की विरासत से जान और समझ सकते हैं।प्राप्त सम्मानों की सुदीर्घ सूची है। वस्तुत सम्मान व सम्मान देने वाली संस्थाएं स्वयं गौरवान्वित होती थी।

विशेष उल्लेखनीय है कि- एक समय सागर वि. वि. के बी. ए, रविशंकर विश्वविद्यालय की कक्षा ए.एम. पाठ्यक्रमों में डाँ०बलदेव की किताबें रहीं ।गुरू घासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर के बी.ए में सहायक पुस्तक के रूप में(छायावाद और पंडित मुकुटधर पाण्डेय-लेखक डाँ०बलदेव) शामिल हैं।
उन्होंने इंग्लैड, बहरीन, ओमान तथा देश के प्रायः सभी बड़े शहरों की साहित्यकि यात्रायें भी की।

साहित्य मनीषियों ने एक प्रस्ताव पारित किया था कि उनकी एक मूर्ति एक चौराहे पर पूरे सम्मान के साथ स्थापित किया जाय ताकि पीढ़ियां अपनी विरासत से परिचित होती रहे।साहित्यकारों ने मूर्ति भी बनवा ली है। अतः सरकार पर मूर्ति बनाने का कोई आर्थिक भार नहीं पड़ेगा। नगरनिगम रायगढ़ को चाहिए कि अपनी माटी और सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा करे।अतिशीघ्र स्थान सुनिश्चित कर डॉ बलदेव साव जी की मूर्ति की स्थापना करें।

बहुत सारी बातें साझा करने का मन करता है पर यहीं उनकी कविता की चार पंक्तियों के साथ उन्हें हृदय से सादर नमन करते हुए अपनी भावनाओ को विराम देता हूं –

“पंचमढ़ी : दो कविताएं –डॉ बलदेव
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यहाँ जितने लोग नहीं
उससे ज्यादा मकान हैं
अधिंकाश खाली हैं
बाहर पेड़ो के नीचे / सर्द अंधेरे में
हवाई पट्टी साफ करने वाले लोग
ठिठुर रहे हैं।
अँगीठी आग /
जलती आँखें इन्हें जिलाए रक्खी हैं
इस आग को आदमी ने
अपनी हड्डियाँ रगड़कर पैदा किया
जब ये लोग नहीं थे,
ये मकान नहीं थे, वह शहर नहीं था
तब भी यह आग थी
यह आग पहले पहाड़ों की सन्ध में
अंधी गुफाओं में सुलगती थी
और नीचे तलहटी में बाघ घूमता था
ताजे रक्त की गन्ध आती थी।

जब भी आदमी गुफा से बाहर होना चाहता
बाघ गरज उठता
आँधी आती और बिजलियाँ टूट पड़ती
बारिश घमासान हो जाती

सर्द अंधेरे की कुण्डली कसने लगती
और आग कंझाने लगती
अपना ताप अपनी चमक खोने लगती
और आदमी अपना लहू निचोड़कर /
फूँक मार कर
फिर उसे प्रज्जवलित कर देता।

इसी आग के सहारे एक दिन यहाँ तक चला आया था
और बाघ ताकता ही रह गया था।

दुनिया इसी आग के सहारे
नक्षत्रों की सैर कर आयी
लेकिन आग पैदा करने वाला आदमी
सर्द अंधेरे में सिकुड़ रहा है/ठिठुर रहा है
यह आदमी जब
जलती अंगीठी लेकर उठ खड़ा होगा
तब इन आलीशान मकानों का क्या होगा?

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गुलेल से मार खायी
खून से लथपथ रागगिलहरी
जिन्दगी और मौत से
किस कदर खेलती है
तेज धार चट्टान से डगाल की ओर फँलागने के बीच
एक हरी पत्ती खून से लथपथ हाण्डी
खोह में कैसे गिरती है?

शरण्य की खोज में
दिन को बिलकुल नजर नहीं आने वाले
किन्तु साँझ को उभर आने वाले शिखरों
गहरी घाटियों में लुकता -छिपता
आहत सूर्य गिरि श्रृंगों से
किस कदर लुढ़कता है लोहूलुहान?
दुःखकातर किरणें सर्द अन्धेरे में
कैसे मुंह छिपा लेती है निःशन्द
राज भवन में ठहरे लोग
यह बात नहीं कि नहीं जानते।

 

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