प्रतीकात्मक चित्र

नक्सली

लघुकथा  – सुरेश वाहने

  नेताजी के भाषण में भीड़ जुटानी थी। इसके लिए 80 किलोमीटर दायरे से जंगली क्षेत्र के गाँवों से लोगों को लाया गया था। सीना फुला-फुलाकर नेताजी भाषण दे रहे थे। उन्होंने विकास पर अपना भाषण केन्द्रित रखा। आज नेताजी एक प्रयोग करने वाले थे। भाषण के बाद कुछ लोगों के सवालों के तत्काल जवाब देने वाले थे। भाषण के अन्त में इसका भी समय आ गया। कार्डलेस माइक पकड़े उनके सेवक उपिस्थित थे।

काला आदिवासी युवक खड़ा हुआ और पूछने लगा – “मंगलयान मंगल तक पहुँच गया लेकिन कलेक्टर और मंत्रियों की गाड़ी हमारे गाँव तक कब पहुँचेगी? चन्द्रयान ने चन्द्रमा पर पानी की खोज की लेकिन हमारे खेतों की प्यास कब बुझेगी? बार्डर पर सुरक्षा के लिए उपाय किए गए लेकिन हमारी बहू बेटियों पर हो रहे बलात्कार से सुरक्षा कैसे होगी? तेज रफ्तार से चलने वाली रेलगाड़ियों के लिए पटरी बिछा रहे हैं, हमारे गाँव में पक्की सड़क कब बनेगी? हमारे देशी उपग्रह हमारे ही देशी रॉकेटों से ऊपर पहुँचाएँ जा रहे हैं। हम भूखमर्रों के लिए वहाँ से रोटियाँ कब बरसेगी? डिजिटल इंडिया के दौर में हमारे बच्चे स्कूल के अभाव में हिन्दी भी पढ़ नहीं पा रहे हैं। हमारे यहाँ अंग्रेजी की पाठशाला मुफ्त मे कब शुरू होगी? महोदय, आपके विकास से हमारे विकास का दूर-दूर से नाता नजर नहीं आता। यदि हमारा ही विकास नहीं हो रहा है, तो ऐसे विकास हमें नहीं चाहिए। विकास के नाम पर हम जनता के पैसों की बर्बादी क्यों?”

साथ आए लोग तालियाँ पीट रहे थे। नेताजी का चेहरा तमतमा गया। उन्होंने सेवक से पूछा – “ये किसको थमा दिया माइक। बन्द करो।”

इशारा पाते ही पार्टीभक्त और पुलिस उस पर टूट पड़े।

दूसरे दिन अखबारों में खबर सुर्खियों में थी – “नेताजी के सभा में हमला। नेताजी बाल-बाल बचे। इनामी नक्सली को सतर्क पुलिस ने मार गिराया। जांबाज पुलिसकर्मियों का आऊट ऑफ प्रमोशन। करोड़ों का इनाम सहयोगी कार्यकर्ताओं में बाँटी जायेगी।”

इधर घर पर युवक का लड़का रो-रोकर बार-बार कह रहा था – “मोर बाबू ल सौ रूपिया अउ दारू मिलही कहिके लेगे रीहिस अउ मार दिस।”

  • – सुरेश वाहने

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here